आशाएँ (स्वीडिश कहानी) : फ्रेड्रिका ब्रेमर
Aashayen (Swedish Story in Hindi) : Fredrika Bremer
बिना अधिक कष्ट उठाए जीवन के कठिन पथ पर घूमने का मेरा विलक्षण ढंग था; भले ही शारीरिक एवं नैतिक दृष्टि से मैं प्रायः नंगे पाँव ही घूमता था। मैं आशा करता था; प्रतिदिन मेरी प्रातःकालीन आशाएँ सायंकाल पर निर्भर रहती थीं, सायंकाल की प्रात:काल पर; पतझड़ की आशाएँ वसंत पर और वसंत की पतझड़ पर; इस वर्ष की अगले वर्ष पर, और इस प्रकार केवल आशाओं के बीच, तमाम अभावों के साथ, मैंने जीवन के लगभग तीस वर्ष गुजार दिए। तो भी बाहर खुली हवा में मैंने आसानी से अपना ढाढस बंधाया, परंतु ड्राइंग रूम में मुझे हमेशा अपनी एडियों के सुन्न भाग के कारण दुःखदायी रूप में मुड़ना पड़ता। वस्तुतः मेरे लिए यह एक अधिक कठिन साधना थी कि मैं दुर्गति के क्षणों में केवल दयालु शब्दों से ही ढाढस बँधा सकता था।
हजारों व्यक्तियों की तरह मैंने भाग्य-चंद्र पर आशाजनक दृष्टि डालते हुए इस दार्शनिक टिप्पणी के साथ संतोष किया कि 'जब समय आता है, सलाहकार भी आ जाता है।'
देहाती पादरी के विनीत सहायक के नाते, अल्प वेतन और बहुत कम सुविधाओं के साथ, गाली-गलौज करनेवाले गृहस्वामी के अधीन, नैतिक रूप से मलिन होते हुए, शराबी पादरी द्वारा जान-बूझकर मूर्ख बनते हुए, मूर्ख और भद्र युवकों के बीच तथा घर की उन बेटियों के साथ जो गर्वीले कंधोंवाली थीं, सुबह से रात तक मैं मिलने-मिलाने में लगा रहता था। मुझे कोमलता एवं प्रसन्नता का अद्भुत अनुभव हुआ, जब मेरे एक परिचित ने मुझे लिखा कि स्टाकहोम में मेरे चाचा मरचीट पी., जिसको मैं ठीक-ठीक नहीं जानता था और जो अब मरने वाला था, ने रोग के आवेश में पारिवारिक प्यार से अपने निकम्मे भतीजे की बाबत पता किया।
एक छोटी सी गठरी और लाखों बहुमूल्य आशाएँ लिये कृतज्ञ भतीजे ने देहात में चलनेवाली बहुत ही कष्टदायक गाड़ी में ऊपर-नीचे हिलते हुए सफर शुरू कर दिया और हलचल मचाता राजधानी पहुँच गया।
जिस सराय में मैं रुका वहाँ अपने लिए थोड़े-केवल थोड़े नाश्ते का ऑर्डर दिया-मामूली सा-थोड़ी डबल रोटी और कुछ अंडे।
मकान मालिक और एक मोटा भद्र पुरुष कमरे में इधर-उधर घूम रहे थे।
"नहीं, मैं यह जरूर कहूँगा, " मोटे भद्र पुरुष ने कहा, "यह मरचीट पी., जो परसों मर गया, भला पुरुष था।"
"हाँ, हाँ, '' मैंने विचार किया—“आह, एक भला पुरुष, जिसके पास काफी धन था! सुनते हो, मेरे मित्र? (बेयरे से) क्या तुम मेरे लिए हिरन का मांस या वैसी ही कोई ठोस डिश ला सकते हो? सूप का एक कप लाना मत भूलना, सुनते हो? जरा जल्दी!"
"हाँ, " मेजबान ने कहा, "यह काफी बड़ी राशि है। छह हजार पाउंड! समस्त संसार में कोई भी व्यक्ति छह हजार का स्वप्न नहीं देख सकता!"
"छह हजार पाउंड, " मैंने अपनी प्रसन्न आत्मा से दोहराया—"छह हजार! सुनते हो बेयरा? जल्दी करो, मुझे छह हजार...नहीं, मेरा मतलब है, एक गिलास शराब दो।"
और तुरही की हर ताल के साथ बार-बार मेरे अंदर सिर से लेकर दिल तक गाया गया—'हजार, छह हजार!' "हाँ, " मोटे भद्र पुरुष ने कहना जारी रखा–''क्या तुम विश्वास करोगे कि उधार की राशि में एक सौ अस्सी पाउंड कटलटों के लिए और एक हजार पाउंड गैंप्पन के लिए थे और अब उसके तमाम लेनदार अपने मुँह खोले मुस्तैदी से खड़े थे; घर में रखी सारी वस्तुओं का मूल्य मुश्किल से आधी पैनी होगा और घर के बाहर क्षतिपूर्ति के नाम पर केवल हवाखोरी के लिए गाड़ी थी!"
"ओह, यह कुछ भिन्न ही है! सुनते हो जवान बेयरा! ऐ, यहाँ आओ! यह मांस, जूस और शराब पुनः ले जाओ, और सुनो, ठीक तरह से जाँच लो कि मैंने इनमें से एक लुकमा भी नहीं खाया। मैं खा भी कैसे सकता था; प्रातः जब से मैंने अपनी आँख खोली है, खाने के सिवा कुछ किया है क्या? (एक भयानक झूठ) और अब मुझे खयाल आता है कि इस प्रकार के भोज के लिए खर्च करना अनावश्यक है।"
"परंतु तुमने वास्तव में इसके लिए ऑर्डर दिया है।" बेयरे ने उत्तेजना की स्थिति में उत्तर दिया।
"मेरे मित्र, " मैंने उत्तर दिया और अपने आपको कान के पीछे पकड़ा; कान वह स्थान है जहाँ व्याकुलता की स्थिति में एक तरह की जरूरी सहायता मिल जाती है—"मेरे मित्र, यह मेरी गलती थी जिसके लिए मुझे दंड मिलना चाहिए, लेकिन यह मेरा दोष नहीं था कि एक धनी उत्तराधिकारी, जिसके लिए मैंने नाश्ते का ऑर्डर दिया था, वह एकाएक गरीब हो जाए; हाँ, कई शैतानों से भी अधिक गरीब! क्योंकि वह आधे से भी अधिक अपने वर्तमान साधन भविष्य के लिए खो चुका है। वह इन परिस्थितियों में, जिनका तुम अनुमान लगा सकते हो, इतने महँगे नाश्ते का मूल्य नहीं दे सकता, फिर भी जो अंडे मैंने नष्ट कर दिए हैं, उनका मूल्य देने में मुझे कोई आपत्ति नहीं और जो कष्ट तुमने उठाया है उसके लिए भी उत्तम चीज दे सकता हूँ, क्योंकि जरूरी काम के कारण मुझे यहाँ से तुरंत जाना होगा।"
श्रेष्ठ तर्क और 'उत्तम चीज' से मैंने अपने दुःखी दिल को सांत्वना दिया और पानी भरे मुँह से उस प्यारे नाश्ते को अपने गले से हटा दिया। फिर अपनी छोटी गठरी को हाथ के नीचे दबाया और सस्ते मकान की तलाश में शहर में आगे बढ़ गया, यह सोचते हुए कि इसके लिए पैसे कहाँ से लाऊँगा।
आशा और वास्तविकता में प्रबल टक्कर के परिणामस्वरूप मेरे सिर में दर्द हो गया, परंतु भ्रमण करते हुए मैंने फीतों और सितारों से सजे एक भद्र पुरुष को अपनी शानदार गाड़ी से उतरते देखा उसका रंग हलका पीला था, गहरी झुरींदार भौंहों में कुत्सित रसिकता का बोध होता था। वह युवा काउंट था, जिससे मेरी जान-पहचान उपसाला विश्वविद्यालय में हुई थी। आयु और जीवन की थकावट के कारण वह इस तरह चल रहा था कि अब नाक के बल गिर जाएगा। यह देखकर मैंने अपना सिर थाम लिया और वायु को अंदर खींचा जो दुर्योग से उस स्थान पर भुने जा रहे एक कबाब की गंध से भरी हुई थी जो मानो निर्धनता तथा स्वच्छ हृदय की प्रशंसा से भरी थी।
अंत में, दूर एक गली में एक छोटा सा मकान मुझे मिल गया जो मेरी आशाओं की अपेक्षा अंधकारमय भविष्य से अधिक उचित था।
मैंने स्टाकहोम में शरद् ऋतु व्यतीत करने की आज्ञा ले ली थी और जैसी आशा की जाती थी, उसके विपरीत किसी दूसरे ढंग से व्यतीत करने के लिए मैंने सोचा, परंतु करना क्या होगा? साहस खो बैठना सबसे बुरी बात है। खाली हाथों से आकाश की ओर ताकना भी बहुत अच्छा नहीं है। 'भले कोई आशा करे या न करे, सूर्य को तो उदय होना ही है।' नगर के ऊपर शरद् ऋतु के भारी बादलों को मँडराते हुए देखकर मैंने सोचा। पेस्टरजी की रक्षा के जो रुग्ण साधन उपलब्ध थे, उनकी अपेक्षा भविष्य में कुछ प्रीतिकर साधनों के साथ अच्छी जीविका अर्जित करने के लिए सभी साधनों का प्रयोग करने का मैंने निश्चय किया और इस बीच प्रतिदिन की बातों को दुःखी हितकर बातों को दुःखी परिस्थितियों में लिखने का भी।
ईमानदारी से खोखले सिरों की खोखली उपज को लिखनेवाले पेशे में ऐसे कानों को ढूँढ़ने के लिए, जो बहरे न हों, मैंने व्यर्थ के प्रयासों में दिन गुजारे। मेरे भोजन में कमी होने तथा बढ़ती हुई आशाओं के साथ, एक सायंकाल मैंने अपने पंचांग पर क्रॉस का चिह्न लगा दिया।
मेरा मेजबान मुझे अभी-अभी प्यारी चेतावनी देकर गया है कि पहले चतुर्मास का किराया कल तक अदा कर दूं और यदि नहीं करता हूँ तो अपने सामान के साथ नगर की सड़कों पर मुझे इधर-उधर भटकना पड़ेगा।
नवंबर की अवर्णनीय शरद्। रात के आठ बजे थे जब मैं अपने एक बीमार मित्र के लिए वस्तुतः बिना सोचेसमझे अपना बटुआ खाली करके लौटा था और आते ही ये प्यारी बातें मुझे सुननी पड़ी थीं।
मैंने अपनी पतली मद्धिम मोमबत्ती को अपनी अंगुलियों से बुझाया; कमरे को इस तरह निहारा जैसे भविष्य में मुझे यहाँ सोने-बिछाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
निःश्वास लेते हुए मैंने एक लोकोक्ति दोहराई और धीरे से खिड़की के पास पड़ी लंगड़ी मेज को अपनी ओर खींचा खिड़की के बाहर वर्षा और हवा रुकने का नाम नहीं लेती थी। उस समय मेरी दृष्टि रसोई में तेज जलती हुई आग की तरफ गई जो मेरे उस बदहाल कमरे के सामने थी और जिसकी अँगीठी इतनी काली थी जितनी वह हो सकती थी।
खाना बनानेवाले, मर्द और औरतों के सामने वे प्रसन्नचित्त व्यक्ति थे, जिनको वे खाना परोस रहे थे। मैंने गुप्त इच्छा से जलती आग के साथ खेलना चाहा। मैंने विचार किया कि लोहे के बरतनों और तसले-कड़ाहियों के बीच आग की चमक चिमटे को डंडे की तरह थामे, अपने देदीप्यमान राज्य में महारानी की तरह खड़ी थी।
एक मंजिल ऊपर, खिड़की से, जिसको किसी ईर्ष्यालु परदे ने नहीं ढका था, मैंने तेज रोशन कमरे को देखा, जहाँ चाय की मेज, जिसपर प्याले और डबल रोटी की टोकरियाँ रखी थीं, के इर्दगिर्द कई परिवार बैठे थे।
सरदी और नमी से मेरा सारा शरीर थक गया। मैं नहीं कह सकता कि वह भाग, जिसको सामान रखने का गोदाम कह सकते हैं, कितना खाली था, परंतु आह, ईश्वर भला करे! मैंने विचार किया कि वह सुंदर लड़की, जो मोटे भद्र पुरुष को चाय-अमृत और श्रेष्ठ कीमती रस्क दे रही है और जो संतुष्टि के कारण सोफे से पीठ नहीं लगा सकता है, यदि अपना प्यारा हाथ थोड़ा बढ़ा दे तो हजारों चुंबन मिल जाएँ–मगर व्यर्थ! संतुष्ट भद्र पुरुष अपना प्याला लेता और रस्क को इस अनंत धीरज से उसमें तर करता है जैसे वह शराब हो। अब रमणीय लड़की उससे आलिंगन करती है। मैं हैरान हूँ कि वह उसका प्यारा पिता है, या चाचा या...। आह, ईर्ष्यालु मर्त्य! परंतु नहीं, यह बिलकुल संभव नहीं है; वह उससे कम-से-कम चालीस वर्ष बड़ा है। देखो, वह वास्तव में उसकी पत्नी होगी-बड़ी महिला जो उसके पास सोफे पर बैठी है और जो छोटी महिला को रस्क देती है। बड़ी महिला अति प्रतापी दिखाई देती है लेकिन वह अब किसके पास जा रही है? मैं उस व्यक्ति को देख नहीं सकता। खिड़की में सेएक कान और कंधे का थोड़ा हिस्सा ही नजर आता है। मैं इसको वास्तव में भ्रम नहीं कहूँगा कि सम्माननीय व्यक्ति मेरी ओर पीठ मोड़ लेता है, परंतु वह उस छोटी महिला को पंद्रह मिनट अपने सामने खड़ा रखता है, उसका अभिवादन करता है और अच्छी चीज भेंट करता है—यह पूरी तरह से मुझे उत्तेजित करता है। यह महिला ही होगी—एक पुरुष ऐसे दिव्य व्यक्ति के प्रति इतना अविनीत नहीं हो सकता, परंतु...या...वह प्याला लेती है-ओह, शोक! एक महान् आदमी का हाथ रस्कों की टोकरी में जाता है—जंगली! और वह अपनी सहायता स्वयं कैसे करता है—गँवार! मैं जानना चाहता हूँ कि वह भद्र पुरुष इसका भाई है-वह शायद भूखा है, विनीत व्यक्ति! अब एक के बाद एक, दो प्यारे बच्चे आते हैं जो बहन की तरह ही हैं। अब मुझे हैरानी होती है कि एक कानवाले भले व्यक्ति ने कुछ बाकी भी छोड़ा है। अत्यंत रमणीय लड़की अब छोटे बच्चों का आलिंगन करती है, उनको चूमती है और श्रीमान् गोबेल की अंगुलियों से बचे हुए रस्क और केक उन्हें देती है। अब वह महिला उत्सव से बच रही चीजें लेती है—सुगंध, मेरी तरह!
एकाएक कमरे में यह क्या हलचल हुई! बूढ़ा आदमी अपने आपको सोफे से उठाता है; एक कानवाला व्यक्ति आगे बढ़ता है और ऐसा करने में युवती को धक्का देता है जिसके फलस्वरूप वह चाय की मेज से टकरा जाती है, जिसके कारण विनीत महिला, जो सोफे से उठना ही चाहती थी, पुनः सोफे पर गिर जाती है। बच्चे इधर-उधर कूदते हैं और तालियाँ बजाते हैं। दरवाजा खुल जाता है; एक युवा अधिकारी अंदर आता है-युवती अपने आपको उसकी बाँहों में फेंकती है। इसी तरह, वास्तव में। आह, अब मजा आया है! मैंने बडील को इस तेजी से बंद किया कि वह कड़क गई और वर्षा से भीगते हुए, काँपते घुटनों के साथ, मैं कुरसी पर बैठ गया।
मुझे खिड़की पर करना ही क्या था? यह प्रश्न तभी उठता है जब किसी चीज की जिज्ञासा करता हूँ।
आठ दिन पहले यह परिवार गाँव से मेरे सामनेवाले सुंदर मकान में आया था; और अभी तक मुझे नहीं सूझा कि मैं पता करूँ कि वे कौन लोग हैं और कहाँ से आए हैं? आज भी उनके घरेलू मामलों को नाजायज तौर पर जानने की क्या जरूरत थी? उसमें मुझे रुचि कैसे हो सकती थी। मैं भी अप्रसन्न था; संभवतः मैंने हृदय में थोड़ी पीड़ा महसूस की। परंतु यह सब होते हुए भी, चिंताजनक विचारों को, जिनसे कोई लाभ न हो, स्थान देना मेरे निश्चय के अनुरूप नहीं था। मैंने अकड़ी अंगुलियों में कलम पकड़ी और अपने संताप को दूर करने के लिए, घरेलू प्रसन्नता को, जिसका मैंने अभी आनंद नहीं लिया, वर्णन करना चाहा। इसके अतिरिक्त अपने अकड़े हाथों पर फूंक मारकर मैंने अपने को सचेत किया।
क्या मैं ही वह पहला व्यक्ति हूँ जिसने कल्पनाशक्ति की उग्र लड़ी में उस सच्ची लगन को चाहा है जिसको वास्तविकता के कठोर संसार ने वंचित रखा है? पच्चीस शिलिंग जलानेवाली लकड़ी के एक तोल के लिए! हाँ, विश्वास करो, दिसंबर से पहले तुम नहीं ले सकोगे! मैंने लिखा-
"वह परिवार प्रसन्न है, तिगुना प्रसन्न है जिसके सिकुड़े दायरे में किसी के दिल में निर्जनता से रक्तस्राव होता है, अचल निर्जनता से आनंदित होता है। कोई दृष्टि, कोई मुसकान बिना उत्तर पाए नहीं रहती और जहाँ मित्र, शब्दों से नहीं बल्कि कृपा से एक-दूसरे को रोज कहते हैं, 'तुम्हारी रक्षा, तुम्हारी प्रसन्नता, तुम्हारा आनंद, सभी मेरे भी हैं!'
"शांतमय और सुखी घर प्यारा है जो जीवन में थके यात्री की रक्षा करता है जो अपनी मित्रतापूर्ण जलती अँगीठी से, लाठी पर झुके हुए बूढ़े आदमी, शक्तिशाली पुरुष, प्यारी पत्नी और प्रसन्न बच्चों को विश्राम देता हैबच्चों को, जो उछलते और शोर मचाते हैं, अपने सांसारिक स्वर्ग में नाचते हैं और खेल में दिन गुजारकर सायंकाल मुसकराते होंठों से धन्यवाद की प्रार्थना को दोहराते हैं और अपने माता-पिता की छाती पर सो जाते हैं, जबकि उनकी माँ की मंद आवाज उन्हें लोरी सुनाती है-
नन्हें देवदूत खड़े हैं चक्र में
रक्षा करने उन बच्चों की
सो रहे हैं जो आनंद से
अपनी-अपनी सुखद शय्या पर।"
अब मुझे यह सब छोड़ना पड़ा क्योंकि वर्षा की बूंदों से मिलते-जुलते कण मेरी आँखों में आ गए और मैं स्पष्ट देख नहीं सका।
ज्यों ही मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरे पुनर्विचारों ने उदासी का रूप धारण किया, मैंने सोचा 'कितने व्यक्ति हैं जो अपनी व्यथा में सांसारिक जीवन की सर्वाधिक प्रसन्नता–घरेलू प्रसन्नता के बिना रह सकते हैं!'
क्षण भर के लिए मैंने अपने कमरे में रखे पूरे दर्पण–सचाई के दर्पण में मनन किया और उद्विग्न भावनाओं को पुनः लिखना आरंभ कर दिया—“अनाश्रित को वास्तव में अप्रसन्न कह सकते हैं, जिसको जीवन के व्याकुल और उदासीन क्षणों में (जो कभी-कभी आते हैं) कोई अपने सच्चे दिल से नहीं लगाता, उसकी आहों को नहीं लौटाता, जिसके मौन शोक को यह कहकर दूर नहीं करता—'मैं तुम्हें समझता हूँ, मैं तुम्हारे दुःख में दुःखी हूँ।'
"वह नीचे गिराया जाता है, उसे कोई नहीं उठाता; वह रोता है, उसे कोई नहीं देखता; वह जाता है, कोई उसका पीछा नहीं करता; वह आता है, कोई उसे मिलने नहीं आता; वह आराम करता है, कोई उसकी रखवाली नहीं करता। वह अकेला है। ओह, वह कितना अभागा है! वह मर क्यों नहीं जाता? उसके लिए रोएगा कौन? वह कब्र कितनी ठंडी है जिसको प्रेम के आँसू तर नहीं करते!
"वह सरदी की रात में असहाय है, पृथ्वी पर उसके लिए फूल नहीं हैं और अंधकार स्वर्ग की बत्तियों को जलाता है। वह घूमता क्यों है-वह असहाय; वह प्रतीक्षा क्यों करता है, वह उड़ क्यों नहीं जाता—सायों के संसार को? आह, वह अब भी आशा करता है; वह भिक्षुक है जो आनंद की भीख माँगता है, जो अंतिम समय में भी माँगता है कि दयालु हाथ उसे भिक्षा दे दें!
"वह पृथ्वी का केवल एक फूल चुनेगा, अपने दिल पर लगाएगा। इसलिए वह अपने आपको अकेला, असहाय न समझे और अंतिम आराम के लिए चल दे।"
यह मेरी अपनी स्थिति थी जिसका मैंने वर्णन किया है; मैंने अपने आप पर विलाप किया।
माता-पिता से शीघ्र ही वंचित हो गया, न भाई-बहन, न कोई मित्र, न संबंधी, मैं संख्या में इस तरह अकेला और असहाय खड़ा था; अंदर परमात्मा पर भरोसे और स्वाभाविक प्रसन्न प्रकृति के सिवाय, मैंने कई बार इस घृणित संसार को छोड़ देने की इच्छा की। अब तक मैंने लगातार अच्छे भविष्य की आशा की थी और यह अधिकतर अंदरूनी भावना के कारण थी, इसलिए अति उत्तम थी, बजाय इसके कि दर्शन की सहायता से स्पष्ट इच्छाओं को वर्तमान के लिए दबाया जाए क्योंकि यह संभावना के बिलकुल विरुद्ध था। कुछ समय के लिए मेरे साथ उलटी बात रही। मैंने अनुभव किया, विशेषकर आज सायंकाल जिसको शब्दों में नहीं कहा जा सकता कि मैं भी किसी को प्रेम करूँ मेरे पास कोई हो, कोई मेरे साथ चिपटे—जो मित्र की तरह रहे-दूसरे शब्दों में (संसार में मेरे लिए अति उत्तम परम सुख) पत्नी–प्यारी अनुरक्त पत्नी! ओह, वह मुझे आराम देगी, मुझे प्रसन्न करेगी! दरिद्र-से-दरिद्र झोंपड़ी में भी मुझे राजा बनाएगी। मुझे शीघ्र ही लगा कि मेरे हृदय की प्रेमाग्नि मेरे विश्वसनीय को मेरे पास ठंडा होने से सुरक्षित रखेगी। पूर्व की अपेक्षा अधिक हतोत्साह होते हुए, मैंने अपने कमरे में कुछ चक्कर लगाए (अर्थात् दो कदम दाएँ चलकर पुनः लौट जाना)। मेरी स्थिति की चेतना ने दीवार पर साए की तरह मेरा पीछा किया। जीवन में पहली बार मैंने अपने आपको उदास पाया और अपने अंधकारमय भविष्य पर धुंधली नजर डाली। मेरा कोई संरक्षक नहीं था। इसलिए चिरकाल तक अपनी उन्नति की बाबत नहीं सोच सकता था, फलस्वरूप अपनी रोटी, मित्र और पत्नी की बाबत भी!
'परंतु समस्त संसार में क्या है?' एक बार पुनः मैंने अपने आपसे गंभीरता से कहा, 'दिमाग को मारने में कौन सहायता करता है?' चिंताजनक विचारों से मुक्त होने के लिए मैंने एक बार फिर प्रयास किया। 'काश! कोई क्रिस्तानी आत्मा आज सायंकाल मेरे पास आती-कोई भी मित्र या शत्रु, तो एकांत से बेहतर होता। हाँ, भूतों की दुनिया में रहनेवाला भी यदि दरवाजा खोलता तो मैं उसका भी स्वागत करता! यह क्या? दरवाजे पर तीन बार दस्तक? मुझे विश्वास नहीं होता-पुन: तीन बार! मैंने दरवाजा खोला; वहाँ कोई नहीं था, केवल हवा सीढियों पर ऊपर-नीचे चल रही थी! मैंने दरवाजा जल्दी से बंद कर दिया और अपने हाथों को जेबों में डाल ऊँचे स्वर में गुनगुनाते हुए इधर-उधर चला। कुछ क्षणों के बाद मैंने निःश्वास अनुभव किया। मैंने मौन रहकर सुना। दोबारा नि:संदेह नि:श्वास था—गहरा और शोकाकुल। मैंने हैरानी से पूछा, "कौन है वहाँ?" कोई उत्तर नहीं मिला।
क्षण भर के लिए मैं शांत खड़ा सोचता रहा कि वास्तव में इसका क्या मतलब हो सकता था। इतने में एक भयानक शोर हुआ, मानो भद्दी तरह से चिल्लाती हुई बिल्लियों को सीढियों पर छोड़ दिया गया हो जो अंत में मेरे दरवाजे पर जोर से टकराई हों। इसने मेरे संदेह का अंत कर दिया। मैंने मोमबत्ती और छड़ी उठाई और बाहर जाने के लिए चला। जब मैंने दरवाजा खोला, मेरी मोमबत्ती बुझ गई। एक भारी-भरकम सफेद आकृति मेरे सामने टिमटिमाने लगी और मुझे महसूस हुआ कि दो शक्तिशाली बाँहों ने मुझे जकड़ लिया है। मैंने सहायता के लिए शोर मचाया और अपने आपको उसके चंगुल से छुड़ाने के लिए इतना जोर लगाया कि मैं और मेरा शत्रु-दोनों भूमि पर गिर गए, परंतु मैं उसके ऊपर पड़ा था। तीर की तरह मैं फिर ऊपर उछला और लैंप पकड़ने ही वाला था कि किसी चीज से टकरा गया–परमात्मा जानता है कि वह क्या था (मेरा पूर्ण विश्वास है कि किसी ने मेरे पैरों को दृढ़ता से पकड़ रखा था) जिसके कारण मैं दूसरी बार गिरा। मेज के कोने पर मेरा सिर लगा और मैं सुध खो बैठा, जबकि शंकायुक्त शोर, जो ठहाके से मिलता-जुलता था, मेरे कानों में गूंजा।
जब मैंने दोबारा आँखें खोली तो चकाचौंध रोशनी नजर आई। मैंने आँखें दोबारा बंद कर ली और अपने आसपास एक संभ्रांत शोर सुना—फिर आँखें थोड़ी खोली और आस-पास पड़ी चीजों को पहचानने की कोशिश की; ये इतनी अजीब और गूढार्थक लगीं कि मैं डर गया, मेरा दिमाग चल गया था। मैं सोफे पर लेटा था और नहीं, मैंने वास्तव में अपने आपको धोखा नहीं दिया वह रमणीय लड़की जो आज सायंकाल निरंतर मेरे खयालों में तैरती रही थी, वह वास्तव में मेरे सामने खड़ी थी और सहानुभूति की दिव्य आकृति लिये मेरे सिर को सिरके से धो रही थी। एक नवयुवक, जिसका मुख मेरा जाना-पहचाना लगता था, अपने हाथों से थामे हुए था। मैंने उस मोटे आदमी को, एक पतले-दुबले को, महिला को एवं बच्चों को देखा और दूर संधि-प्रकाश में चाय की मेज की दिव्य जगमगाहट भी देखी। संक्षेप में, मैंने अपने आपको उस परिवार में पाया जिसके प्रति एक घंटा पहले सहानुभूतिपूर्वक विचार किया था।
जब मैं पूरी तरह चेतन हो गया तो नवयुवक ने कई बार फौजी गरमजोशी से मेरा आलिंगन किया।
"तुम मुझे अब नहीं जानते?" ज्यों ही मेरे शरीर और आत्मा को सख्त होते देखा, वह क्रोध से चिल्लाया -"क्या तुम अगस्त डी. को भूल गए हो जिसके जीवन को अपनी जान खतरे में डालकर कुछ समय पहले तुमने बचाया था? यह देखो! मेरे पिता, मेरी माँ, मेरी बहन व्हिलमा!'
मैंने उसका हाथ दबाया और उसके माता-पिता से आलिंगन किया। मेज पर मुक्का मारते हुए अगस्त का पिता चिल्लाया—"और चूँकि मेरे बेटे की जान बचाई है, और तुम अत्यंत ईमानदार और अच्छे व्यक्ति हो, दूसरों को खिलाने के लिए स्वयं भूखे रहते हो, इसलिए तुम्हें वास्तव में श्रेष्ठ पुरुष माना जाएगा। हाँ, तुम पादरी बनोगे, मैं कहता हूँ और पूरा विश्वास रखता हूँ, समझे न?"
काफी देर तक मैं समझ नहीं पाया, सोच नहीं पाया और बोल भी नहीं पाया। बातों-बातों में जब स्पष्ट भी हो गया, फिर भी मैं स्पष्टता से समझ नहीं पाया सिवाय इसके कि वह व्हिलमा नहीं थी, व्हिलमा अगस्त की बहन थी।
वह आज सायंकाल नौकरी की यात्रा से लौटा था जिसके दौरान बीती गरमियों में मैंने उसे जवानी की आग और उत्साह की अधिकता के खतरे से बचाने का शुभावसर प्रदान किया था। उस घटना के बाद मैं उससे नहीं मिला था; उससे पहले, उससे क्षणिक जान-पहचान हुई थी, विश्वविद्यालय में भाईचारा हुआ और उसके बाद वह मुझे भूल गया।
उसने जवानी के उबलते जोश में, मेरी बाबत जानते हुए या न जानते हुए, उस घटना को अपने परिवार को बताया। पिता, जिसको जीवनदान मिला था, (जिसका मुझे बाद में पता चला)। खिड़की में से मेरी छोटी मेज की बाबत उसने टिप्पणी की थी और बेटे की प्रार्थना पर वह मुझे गरीबी से उठाकर अच्छे भाग्य के शिखर पर बैठाने के लिए तैयार हो गया। अगस्त ने विभोर होकर मेरे सौभाग्य की घोषणा उसी समय कर दी और मजाक में डूबकर मेरी सीढियाँ इस प्रकार समाप्त की कि मेरी कनपटी पर खतरनाक न सही, एक भारी चोट लगी और मैं अचानक सड़क पार करके गहरे अंधकार से चमकीली रोशनी में आ गया। अच्छे नौजवान ने अपनी लापरवाही के लिए हजार बार क्षमा माँगी और मैंने हजार बार उसे विश्वास दिलाया कि इतनी छोटी सी चोट के लिए बार-बार क्षमा माँगने का कष्ट नहीं करना चाहिए। और वास्तव में जीना गुलमेहंदी है जिससे इस न दिखाई देनेवाले घाव की बजाय बड़ा घाव भी हो सकता था।
हैरान और कुछ व्याकुल होकर मैंने देखा कि कान और कंधेवाला आदमी, जिसने रस्कों की टोकरी को बुरी तरह पकड़ा था और जिसके प्रति मैंने कठोरता दिखाई थी, वह और कोई नहीं, बल्कि अगस्त का पिता और मेरा संरक्षक था। मोटा आदमी, जो सोफे पर बैठा था, व्हिलमा का मामा था।
मेरे नए मित्रों की मेहरबानी और हर्ष ने मुझे अपने घर का सुख प्रदान किया, बड़े आदमियों ने मुझे घर के बच्चे का प्यार दिया, छोटों ने भाई माना और दो बच्चों ने, ऐसा लगा, कि मुझसे गहरी मित्रता की आशा की!
व्हिलमा के सुंदर हाथों से दो कप चाय लेने के बाद, जिन्हें लेने से मैं डरता था, अचेत अवस्था में, अपने विशिष्ट संरक्षक से अधिक रस्क लेकर, मैं जाने के लिए आज्ञा लेता हुआ उठा। उन्होंने वहीं रात गुजारने के लिए काफी जोर दिया, परंतु मैं अपनी पहली आनंदमयी रात अपने पुराने स्थान पर गुजारने के अपने निश्चय का, अपने भाग्य के महान् राजा का धन्यवाद करते हुए, पालन करना चाहता था।
उन्होंने नए सिरे से मेरा और मैंने हृदय की गहराई से सबका आलिंगन किया, व्हिलमा का भी, भले ही इसमें उसकी सहमति न थी। 'यदि इस आलिंगन को पहला और अंतिम होना है तो यह बेहतर होता कि मैं न ही करता।' मैंने बाद में सोचा। लौटते समय अगस्त मेरे साथ आया।
उलटी-सीधी पड़ी मेज-कुरसियों के मध्य मेरा मेजबान ऐसी आकृति लिये खड़ा था जो वर्षा और धूप में बदलती थी; उसके चेहरे पर एक ओर कान तक अनैच्छिक मुसकराहट थी तो दूसरी ओर दोहरी ठुड्डी तक पीड़ा छाई हुई थी; उसकी आँखों में भी वही दया थी जबकि वे लड़ाई की दृष्टि लिये हुए थीं जब अगस्त ने अपने स्वर में यह जताया कि वह हमें अकेला छोड़ दे। यह सबकुछ मित्रतापूर्ण ढंग से ही हो गया और मालिक दाँत पीसता हुआ नम्रतापूर्वक सलाम करके दरवाजे से गुम हो गया।
अगस्त मेरी मेज, कुरसी, चारपाई इत्यादि के बारे में निराश था। इस प्रकार के घटिया माल के लिए किराया वसूल करने के लिए, अगस्त को पीटने की बुरी कार्यवाही से मैंने मेजबान को रोका। मैंने उसे निश्छल आश्वासन से संतुष्ट किया कि अगले ही दिन अविलंब मैं उन्हें हटा दूंगा। "परंतु उसे बता देना, " अगस्त ने प्रार्थना की ____"पूर्व इसके कि तुम उसे पैसे दो, वह–चांडाल है, सूदखोर और धोखेबाज है—अथवा यदि तुम चाहो तो मैं...।'
"नहीं, नहीं! परमात्मा हमारी रक्षा करे।" मैंने समझाया-"चुप रहो, मुझे केवल प्रबंध करने दो।"
जब मेरा युवा मित्र चला गया तो मैं कई घंटों तक अपने भाग्य के परिवर्तन के बारे में सोचता रहा और परमात्मा का धन्यवाद किया। मेरे विचार पादरी के घर का भ्रमण करने लगे; और ईश्वर जानता है कि किन मोटे गाय-बैलों को, किन फूल-फलों और सब्जियों के साथ आनंदपूर्ण भू-खंड में, मैंने अपनी आत्मा को नए स्वर्ग के वातावरण में देखा जहाँ मेरी पत्नी मेरे हाथों का सहारा लिये मेरे साथ घूमती है। असंख्य प्रसन्न और भद्र लोगों के समूह को गिरजा से निकलते हुए देखा जहाँ मैंने उपदेश किया था। अपनी प्यारी जाति का हृदय की गरमी और जोश के साथ बपतिस्मा किया, उन्हें प्रणाम किया और आराम पहुँचाया और केवल अंत्येष्टि को भूल गया।
प्रत्येक विनीत पादरी, जिसने आजीविका ग्रहण की है, प्रत्येक मर्त्य, विशेषकर संबंधियों की इच्छा ने अचानक ही साथ दिया है। वे मेरी स्थिति का चित्र आसानी से देख सकते हैं।
अंततः रात को यह सब किसी आवरण की तरह मेरी आँखों के सामने डूब गया। मेरे विचार शनैः-शनैः व्याकुलता से घिरने लगे और हर ओर अद्भुत चित्र दिखे। मैंने गिरजे में अच्छी ऊँची आवाज में प्रवचन किया और लोग सोते रहे। प्रार्थना के बाद लोग गाय-बैलों की तरह निकले और जब मैं उनको डाँटता तो मेरे विरुद्ध डकारते। मैं अपनी पत्नी का आलिंगन करना चाहता था, परंतु उसे बड़े शलजम से जुदा न कर सका जो हर क्षण बढ़ता चला गया और अंत में हमारे दोनों हाथों पर उग आया। मैंने स्वर्ग की सीढ़ी पर चढ़ने का प्रयास किया जिसके सितारों ने कृपा करते हुए और चमकते हुए मुझे बुलाया, परंतु आलुओं, घास, उड़द के पौंधों और मटर ने मेरे पाँव को निर्दयता से जकड़ लिया और मेरे कदमों में रुकावट डाली। अंत में सिर के बल चलते हुए मैंने अपने आपको अपनी संपत्ति में देखा जबकि अपनी निद्राग्रस्त आत्मा में अत्यंत हैरान हुआ कि यह सब कैसे संभव हो सकता था। मैं अपने स्वप्न को याद करता हुआ गहरी निद्रा में सोया, किंतु फिर भी मैंने अपनी अचेतावस्था में पादरी के विचारों पर सोचना जारी रखा होगा क्योंकि प्रातः जागने पर मैंने अपनी ही आवाज में कहा, 'आमीन!'
पिछली शाम की घटनाएँ स्वप्न नहीं बल्कि सच्ची थीं। जब तक कोई मुझे मिलने और अपने माता-पिता के साथ खाना खाने के लिए बुलाने नहीं आया, मैं अपने आपको कठिनाई से आश्वस्त कर सका।
जीवित व्हिलमा, खाना, भविष्य की आशाओं की नई कड़ियाँ जो वर्तमान के चमकीले सूर्य से चमक रही थीं, इन सबने मुझे नए सिरे से, प्रसन्नता से हैरान कर दिया जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
कृतज्ञापूर्ण दिल की गहरी भावना से मैंने नए जीवन को, जो मेरे सामने था, सलाम किया, इस इरादे के साथ कि 'जो कुछ भी हो ठीक करो और सर्वोत्तम की आशा करो।'
इसके दो वर्ष बाद शरद ऋतु की एक शाम को मैं अपने पादरी के घर में अँगीठी के पास बैठा था। मेरे पास ही मेरी प्यारी पत्नी मधुर व्हिलमा बैठी बुनाई कर रही थी। अगामी रविवार को प्रचार के लिए दिए जानेवाला धर्मोपदेश मैं उसे सुनाने वाला था, जिससे अपनी मानसिक उन्नति की आशा करता था। जब मैं पन्ने पलट रहा था तो एक ढीला कागज उनमें से नीचे गिरा। यह वही कागज था जिसपर दो वर्ष पूर्व उस शाम को, जब मैं कठिन स्थिति में था, अपने विचार लिखे थे। उसे अपनी पत्नी को दिखाया। उसने पढ़ा; आँखों में आँसू भरकर मुसकराई और कपटी सूरत, जो मुझे अच्छी लगती थी, के साथ कलम उठाई और उसी कागज की दूसरी ओर लिखा-
"लेखक अब, ईश्वर को धन्यवाद है, वह विवरण दे सकता है जो पहले विवरण से पूरी तरह उलट होगा और जो कभी अँधेरे क्षणों में ऐसे अभागे व्यक्ति के लिए था, जैसा वह तब था।"
अब वह अकेला नहीं है, न ही त्यागा गया है। उसके मौन विश्वासों का उत्तर दिया जाता है, उसके गुप्त दुःख पत्नी द्वारा बाँटे जाते हैं जो विनम्रता से उसे समर्पित है। वह जाता है तो पत्नी का दिल पीछा करता है; वह लौटता है तो मुसकराहट के साथ उसे मिलती है, उसके आँसू अनदेखे नहीं बहते, वे उसके हाथ से पोंछे जाते हैं और उसकी हँसी पुनः उसकी हँसी में मिल जाती है। उसकी भौंह में पिरोने और रास्ते में बिछाने के लिए वह फूल इकट्ठे करती है। उसकी अपनी अँगीठी है; मित्र उसके प्रति समर्पित हैं और जिनका कोई नहीं है, उन्हें अपना संबंधी मानता है। वह प्रिय है, उसे प्यार किया जाता है। वह दूसरों को प्रसन्न करके स्वयं प्रसन्न होता है।
मेरी व्हिलमा ने वास्तव में वर्तमान को सचाई के साथ पेश किया; और ऐसा लगने लगा कि वसंत ऋतु के सूर्य की किरणों की तरह प्रसन्न और मधुर भावनाओं से उत्तेजित होकर मैं आगे के लिए अपनी छोटी आशाओं के समुदाय को भविष्य के साथ बाँध दूंगा।
मैं यह भी आशा करता हूँ कि अगला रविवार मेरा धर्मोपदेश सुननेवालों के लिए लाभकारी रहेगा यदि हठी लोग सोते भी रहते हैं। मैं आशा करता हूँ कि न ही यह और न ही इससे बड़ी या कम अप्रियता, जो मुझे हो सकती है, वह मेरे हृदय में जाकर मेरी शांति को क्षुब्ध कर सकती है। मैं अपनी व्हिलमा को जानता हूँ और विश्वास के साथ अपने आपको भी जानता हूँ और दृढ़ आशा रखता हूँ कि मैं उसको प्रसन्न कर सकता हूँ। सुंदर फरिश्ते ने मेरी आशा बँधाई है कि हमारे प्रसन्न परिवार में शीघ्र ही एक जीव की बढ़ोतरी होगी। मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में परिवार और भी बढ़ेगा। अपने बच्चों के लिए मेरे हृदय में सब प्रकार की आशाएँ हैं। यदि मेरे यहाँ लड़का होता तो मुझे आशा है कि वह मेरा उत्तराधिकारी बनेगा; यदि लड़की होती है, फिर—यदि अगस्त प्रतीक्षा करे—परंतु मेरा खयाल है कि वह विवाह करने वाला है।
मैं आशा करता हूँ कि अपने धर्मोपदेशों के लिए समय रहते ही प्रकाशक ढूँढ़ लूँगा। मैं अपनी पत्नी के साथ सौ वर्ष जीना चाहता हूँ।
हम, अर्थात् व्हिलमा और मैं आशा करते हैं कि इस बीच हम अपने अनंत आँसू खुश्क कर लेंगे और पृथ्वी के बच्चों की भाँति, जितनी आज्ञा हुई, कम-से-कम बहाएँगे!
हम एक-दूसरे के बाद नहीं जिएंगे।
अंत में सदा आशा करने की आशा करते हैं; और जब समय आए कि अनंत असंशय की साफ रोशनी के सामने हरी पृथ्वी की आशाएँ लुप्त हो जाएँ, तब हम आशा करें कि परम पिता परमात्मा हमारे सुशोभित और आशावान बच्चों पर अपने आशीर्वाद की वर्षा करें।
(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)