आराशे कमान-गर का बलिदान : ईरानी लोक-कथा
Aarashe Kamaan-Gar Ka Balidan : Lok-Katha (Iran)
बहुत दिन हुए, ईरान के एक छोटे से गांव में आराशे नाम का एक सिपाही रहता था। बचपन में उसने बड़े-बूढ़ों से ऐसी- ऐसी बहुत सी कहानियां सुनी थीं, जिनमें बताया गया था कि लुटेरे तुर्क उसके देश को हमेशा से लूटते आये हैं । उन तुर्की हमलावरों का सामना करना आसान नहीं था, शायद इसीलिए ईरान की प्रजा उनसे हमेशा भयभीत रहती थी। आराशे बचपन में ही तुर्क सेनाओं के एकाध हमले देख चुका था ।
इन लड़ाइयों में ईरान की प्रजा को बहुत सताया जाता था । उनके घर जला दिये जाते थे। उनकी खेतियां तहस-नहस कर दी जाती थीं । उनके पशु चुरा लिए जाते थे । उनके वृद्ध योद्धाओं को मृत्यु-घाट उतार दिया जाता था तथा जवान- जवान सैनिकों को बंदी बना लिया जाता था । उनकी बहू-बेटियों की इज्जत लूट ली जाती थी । और ऐसी लड़ाइयों में पकड़े गये सैनिकों को तुर्की के खुले बाजारों में बेच दिया जाता था, जिन्हें खरीदार दास बना कर अपने पास रख लेते थे ।
आराशे ने बचपन में ही यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि एक दिन वह इन आतताइयों से अवश्य ही बदला लेगा । इसीलिए उसने बचपन से ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। सबसे पहले उसने धनुष-बाण चलाना सीखा था । तलवार चलाने में अथवा गदा चलाने में उसने प्रवीणता प्राप्त की। इसके अलावा उसने घुड़सवारी में भी दक्षता हासिल की थी।
इसीलिए जब वह पूर्ण यौवनावस्था में पहुंचा, तब उसने अपने गांव के समस्त वयस्क योद्धाओं में अपनी धाक जमा ली थी ।
इसी समय दुर्भाग्य से तुर्कों ने ईरानियों के साथ पुनः युद्ध छेड़ दिया । तुर्की के पास बहुत विशाल सेना थी । उसका सामना ईरान की अल्पसेना कभी नहीं कर सकती थी । इसका परिणाम यह निकला कि तुर्की की सेनाओं ने ईरान देश के बहुत बड़े भाग पर अधिकार कर लिया। इस पराजय से ईरान का बादशाह ही नहीं, वहां की प्रजा भी बहुत परेशान थी, परन्तु वे कुछ भी तो नहीं कर सकते थे ।
आराशे ईरान की सेना में एक साधारण सिपाही था। एक दिन वह अपने गांव के किसी एकान्त स्थान में धनुष चलाने का अभ्यास कर रहा था। तभी उसने एक अलौकिक घटना देखी । एकाएक आकाश में काले-काले बादल दौड़ने लगे । बड़े जोरों से बादल गरजने लगे और देखते-देखते आकाश में एक भीषण आंधी उठ गयी। ऐसे भयानक वातावरण में एक भयानक आवाज सुनाई दी :
"आराशे कमान-गर ! तुम इस बाण को स्वीकार करो । इसमें अलौकिक शक्ति है। इसका निशाना सैकड़ों मील तक जा सकता है। इसके एक निशाने से तुम ईरान की खोई हुई जमीन को फिर से हासिल कर सकते हो, परन्तु इस बाण को छोड़ते ही तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी ।"
इसके बाद आंधी जैसे आयी थी, वैसे ही चली भी गयी । आराशे के सामने वह बाण पड़ा था । उसने झुक कर बाण उठाया और उसे अपनी पेटी में रख लिया ।
उन्हीं दिनों वह अपने गांव की एक अत्यन्त खूबसूरत लड़की से प्रेम करने लग गया था । निकट भविष्य में दोनों की शादी होने वाली थी । परन्तु होनी को कौन रोक सकता था !
इस घटना के कुछ ही दिनों बाद तुर्की ने ईरान पर दुबारा हमला किया। तुर्की सेना ईरान की ज़मीन में घुस आयी और एक विशाल मैदान में अपना पड़ाव डाल दिया। इस बार भी ईरान की सेना सामने आयी । जब दोनों सेनाएं आमने- सामने खड़ी हो गयीं, तब तुर्कियों के सेनाध्यक्ष ने ईरानी सेनाध्यक्ष से कहा, "तुम अपने सबसे वीर सैनिक को हुक्म दो, जिससे वह अपनी सर जमीन से एक बाण चलाये । उसका बाण जहां जाकर गिरेगा, वहीं से ईरान देश की सीमा समझी जायेगी।" ईरानी सेनाध्यक्ष ने इस बात का ऐलान अपनी सेना में कर दिया । लेकिन उसे विश्वास नहीं था कि उसके किसी एक सैनिक का निशाना ईरान की खोयी हुई जमीन जीत सकता है ।
परन्तु आराशे को विश्वास था अपने उस अनोखे बाण पर, इसीलिए वह ईरान की खोयी हुई जमीन को जीतने के लिए बेचैन हो गया और उसे अपनी मृत्यु की जरा भी चिन्ता नहीं हुई।
इसी उद्देश्य को लेकर आराशे सेनाध्यक्ष के पास गया । उसने आग्रह किया कि उसे निर्णायक बाण चलाने का मौका दिया जाय । ईरानी सैनिकों में से अभी तक कोई सामने नहीं आया था, इसीलिए सेनाध्यक्ष ने आराशे की मांग स्वीकार कर ली और तुर्की सेनाध्यक्ष के पास सन्देश भेज दिया ।
आराशे जानता था कि निकट भविष्य में उसकी मृत्यु होने वाली है, इसीलिए वह अपने गांव गया । उसने अपने माता-पिता, भाई-बन्धु से विदा ली। अन्त में उसने अपनी प्रेमिका से भी विदा ली। परन्तु उसने किसी को भी नहीं बताया कि अब वह लौट कर नहीं आयेगा ।
दूसरे दिन ठीक समय पर वह लड़ाई के मैदान में पहुंचा। उसके आते ही दोनों सेनाध्यक्षों में बातें हुईं। आराशे ने उनसे आग्रह किया । वह बोला, “मुझे उस पहाड़ की चोटी पर से बाण छोड़ने की आज्ञा दी जाए।" तुर्की सेनाध्यक्ष ने इस पर कोई आपत्ति प्रकट नहीं की ।
तब दोनों सेनाओं के बीच से होते हुए आराशे अपना धनुष-बाण लिए उस पर्वत की ओर चला । कुछ देर चढ़ाई करने के बाद वह चोटी पर चढ़ गया । नीचे से ईरान के सेनाध्यक्ष ने झंडी से इशारा किया और सेनाध्यक्ष का संकेत पाते ही आराशे ने अपना अलौकिक बाण धनुष पर चढ़ाया । फिर उसने डोरी को पूरी ताकत से खींचा और उत्तर दिशा की ओर निशाना साध कर आकाश में बाण छोड़ दिया ।
परन्तु यह क्या ! बाण के छूटते ही आकाश में एक भीषण आंधी उठी । बादल गड़गड़ाने लगे। बिजली चमकने लगी । उस बाण ने आंधी का रूप धारण किया और उत्तर की ओर गायब हो गया। इस भयानक दृश्य को देखकर शत्रु सेना बहुत भयभीत हो गई ।
परन्तु आराशे का वह बाण ईरान की खोयी हुई समस्त भूमि को पार कर गया। यही नहीं, कास्पियन द्वीप को भी लांघा और तुर्की के दक्षिण में जाकर गिरा । वादे के अनुसार तुर्की सेना को वहीं लौटना पड़ा और ईरानियों की सीमा हमेशा के लिए निर्धारित हो गई ।
तुर्की की पराजय पर ईरानियों ने नाच-गाकर खूब खुशियां मनायीं। इस माहौल में लोगों ने आराशे को भी शामिल करना चाहा । परन्तु जब उसे ढूंढा गया तो वह कहीं नहीं मिला । अन्त में उसकी लाश उसी पहाड़ की चोटी पर मिली ।
आराशे की मृत्यु के समाचार ने सबको दुःखद सागर में डाल दिया । जिस चोटी से उसने बाण छोड़ा था और जहां उसकी लाश पड़ी थी, वहीं पर उसका मकबरा बनाया गया। उसी समय से पर्वत की वह चोटी ईरानियों का तीर्थस्थान बन गया है ।
आज भी ईरानी लोग उस चोटी की यात्रा करके आराशे की कब्र पर श्रद्धा के धागे बांध बांध कर उससे दुआएं मांगते हैं और उसके पावन बलिदान की यादों को ताजा कर लेते हैं ।