आलसियों का स्वर्ग (उड़िया बाल कहानी) : डॉ. कुलमणि महापात्र/କୁଳମଣି ମହାପାତ୍ର
Aalsiyon Ka Swarg (Oriya Children Story) : Dr. Kulamani Mahapatra
प्राचीन काल में हमारे देश में धन्वंतरि नामक एक राजा थे । वे बड़े न्यायप्रिय और प्रजापालक थे। अपनी प्रजा के हित के लिए हमेशा सोचते रहते थे। परन्तु लोगों का कहना था कि वे बड़े मनमौजी व्यक्ति भी थे। रुपये-पैसे के मामले में वे एक आदर्श राजा थे। अपने ऐशो-आराम के लिए वे एक पैसा भी खजाने से नहीं लेते थे। देश का धन केवल प्रजा की सुख- सुविधा के लिए व्यय किया जाता था। इसलिए सभी उनकी सराहना करते थे ।
संयोग से उस समय देश में बहुत आलसी थे। राजा धन्वंतरि ने देश के आलसियों को इकट्ठा कर एक अजायबघर में रख दिया। अजायबघर के चारों ओर लोहे की सलाखों के बाड़े लगवा दिये, ताकि कोई बाहर निकल न सके । उनका कहना था कि आलसी देश का शत्रु होता है। आलस एक छुआछूत की बीमारी है। आलसी की संगति से दूसरे लोग भी आलसी बन जाते हैं । इन्हीं लोगों के कारण देश की कोई भी योजना सफल नहीं होती । आलसी आदमी कुछ नहीं करता, सिर्फ दूसरों के नाम बेकार की गप्पें लड़ाता है। ऐसों से मेल-जोल करने से अक्लमंद भी बुद्ध बन जाता है। आलसी पशु के बराबर होता है ।
राजा धन्वंतरि के आदेश का विरोध भला कौन कर सकता है ? सभी बेवकूफ की तरह चुप थे। किसी की समझ में यह नहीं आता था कि क्या किया जाये। अंत में महाभालू नाम का एक नागरिक आगे आया जो स्वभाव से बिचौलिया था । उसने जनता को उकसाया। लोगों से कहा, 'राजा आदमी को पशु मानता है । कितना पाखण्डी है! आइए, सब चलें और माँग करें कि हमारे सब आलसी भाई रिहा कर दिए जाएँ। आलसी हुए तो क्या हुआ, आखिर वे भी हमारे भाई हैं।'
लगातार अथक प्रयास से एक सभा का आयोजन किया गया। आलसियों के स्वागत के लिए अलग से एक मण्डप बना। देश के सभी आलसी इकट्ठे हुए। आलसियों की सभा देखने के लिए लोगों की जोरदार भीड़ थी । सर्वश्रेष्ठ आलसी से अध्यक्षता करने के लिए अनुरोध किया गया। अध्यक्ष की कुर्सी पर मोटा गद्दा रखा गया। गद्दे पर बैठते ही अध्यक्ष महोदय को नींद लग गई। सभा के आयोजक महाभालू जी बड़े संकट में फंस गये । अध्यक्ष जी तो मीठी नींद में थे। सभा का संचालन कौन करेगा ? आयोजक ने एक आदमी को अध्यक्ष के पीछे बिठाया और उसको एक नुकीला काँटा थमा दिया। इसलिए कि जब अध्यक्ष जी ऊँघने लगें तो वह पीछे से काँटा चुभा देगा, ताकि उसकी नींद उचट जाए।
महाभालू ने अपना भाषण शुरू किया, 'मित्रो, आपका राजा बड़ा पाखण्डी है। उसने आदमी को पशु कहकर, मानव जाति का अपमान किया है । ऐसा अपमान सहन करना पाप है। आप लोग इसका खुला विरोध कीजिए।' वह सिर्फ इतना ही बोला था कि अध्यक्ष जी की नाक गरजने लगी। कुछ आलसियों के सिर कंधे की ओर लुढ़क गये। उनके खुले मुँह से घरर्" "घरर् का गाना शुरू हो गया। कुछ आलसियों के मुँह पर तो मक्खियाँ भी भिनभिनाने लगीं। जो आदमी अध्यक्ष के पीछे काँटी लेकर बैठा था उसकी पलकें भी भिंच गयी थीं। महाभालू ने पीछे से उसे एक लात मारी । उसने चौंक कर जोर से अध्यक्ष की पीठ पर काँटी चुभा दी।'मर गये ... मर गये ।' चिल्लाकर अध्यक्ष उठ खड़े हुए।
महाभालू ने अध्यक्ष से अनुरोध किया कि वे वक्ताओं को अपने-अपने विचार रखने के लिए सादर बुलाएँ। अध्यक्ष ने वक्ताओं को बुलाया । पर कोई नहीं आया। अंत में बड़ी जबर्दस्ती करने पर एक आदमी खड़ा हुआ और चारों ओर नजर घुमाकर बोला, 'वाह, क्या खुशी का दिन है आज ? जाने कितने लोग खड़े हैं। वाह कितना सुन्दर स्थान है यह !' उसे बैठने के लिए मजबूर किया गया। उसके बाद एक और व्यक्ति खड़ा हुआ और बोला, 'भाइयो, हमारा मकान इतना छोटा है कि सोने के लिए भी स्थान नहीं है। दिन के बारह बजे तक चैन से सोना कभी संभव नहीं होता । यहाँ तो राजा साहब ने हम लोगों पर बड़ी कृपा की है। सब को एक-एक खाट दी गयी है । कुत्ते, बिल्ली घुसकर कहीं नींद न हराम कर दें, इसलिए चारों तरफ लोहे के बाड़े भी लगवा दिये हैं। सचमुच महाराज कितने दयालु हैं। कैसे आभार प्रकट करूँ, शब्द नहीं मिल रहे हैं !' उसने इतना ही कहा था कि उसे बैठने के लिए मजबूर किया गया। आलसियों के भाषण सुनकर लोग ठठाकर हँसते और उछलते थे । हँसी-ठहाके के बीच दोनों वक्ता गहरी नींद में परमानन्द प्राप्त करने लगे।
महाभालू जी खूब शर्मिन्दा हुए। उन्होंने एक और आदमी को उठाया । वह बिगड़ कर बोला ।'कैसे बदमाश आदमी हो तुम। हम तो अपनी सभा में आराम कर रहे हैं। तुम कौन होते हो जी हमारी नींद बिगाड़ने वाले? हमें सभा- वभासे कोई मतलब नहीं, हटो।' इतना कहकर वह भी उसी वक्त खर्राटे लेने लगा ।
उस समय यह देखा गया कि स्वयं महाराज द्वार पर उपस्थित हैं। सभी चुपचाप किनारे हो गये, सभा के आयोजक महाभालू चुपके से खिसक गये । महाराज बोले- 'तुम लोगों की आम धारणा यह है कि मैं इन्हें ऐसे ही कैद करके रखना चाहता हूँ । परन्तु यह नहीं है । इनके आलस रोग के उपचार के लिए मैंने विदेश से विशेषज्ञ बुलवाए हैं। उन पर लाखों का खर्च होगा। मैं प्रजा की भलाई के लिए खर्च की परवाह कभी नहीं करता। आप लोग देखेंगे कि ये लोग देश के सच्चे सपूत बनकर निकलेंगे।'
अकस्मात् कहीं से शोरगुल की आवाज सुनाई दी।'क्या हुआ क्या हुआ ।'सब के मुँह से निकला । एक आदमी सही जानकारी के लिए भाग कर गया। उसने लौटकर सभा को बताया कि कोई खास घटना नहीं है। अजायबघर में आलसी सो गये हैं, यह उनके खर्राटों का शोर है। महाराज आगे कुछ बोले नहीं, सिर्फ मुस्कराए। जब वे जाने लगे, जनता ने उनका जय-जयकार किया - ' महाराज धन्वंतरि की जय, महाराज धन्वंतरि की जय ।
(संपादक : बालशौरि रेड्डी)