आलसी मोर (उड़िया बाल कहानी) : डॉ. विजया लक्ष्मी मोहंती/ବିଜୟଲକ୍ଷ୍ମୀ ମହାନ୍ତି
Aalsi Mor (Oriya Children Story) : Vijaya Lakshmi Mohanty
यह एक बहुत पुरानी कथा है। उस जमाने में ऐसी-ऐसी घटनाएँ घटती थीं कि आज हमें बहुत आश्चर्य होता है। एक मोर और एक मुर्गे ने मिलकर एक जमीन खरीदी। आपस में दोनों ने यही तय किया कि जमीन से जो भी फसल मिलेगी, वह बराबर-बरावर बॅटेगी। इसलिए खेती का काम दोनों को करना होगा।
मुर्गे ने भोर में उठकर अपना रोजाना का काम खत्म किया । तड़के जगना उसकी आदत है। उसने दातून करना, नहा-धोकर पूजा-पाठ निपटाना, नाश्ता लेना आदि काम जल्दी खत्म कर दिया और मोर को बुलाने के लिए बाँग लगायी ।'मोर भैया, मोर भैया, आओ । खेत में जाना है। आज जमीन पर हल चलाना है।'
मोर ने मुर्गे की पुकार सुनकर कुछ सोचा और बोला, 'आज तो जाने क्यों नाचने का जी चाहता है। देखो न मुर्गा भाई, मेरे नूपुर अपने आप रुनझुन रुनझुन बज रहे हैं। तुम पहले हल लेकर जाओ और जमीन जोतो । मैं पल भर में पहुँच रहा हूँ।'
मोर की बातें सुनकर मुर्गे को बड़ा आश्चर्य हुआ। जमीन की खेती और नाचने की चाह - बड़ी अजीब-सी बात । विवश होकर वह अकेले हल चलाने खेत की ओर चल दिया। जमीन में उसने दिन भर काम किया। हल चलाया, ढेले तोड़े, घास-फूस कचरे साफ किये। खेत को धान की बुआई के लायक, शाम तक बना दिया। घर लौटकर बैलों को बाँध सानी-पानी खिलाई, और मुर्गे ने खुद खा-पीकर चैन की नींद ली।
दूसरे दिन भी तड़के से उठकर अपने काम-धाम से निपटकर मुर्गे ने मोर को बुलाया, 'मोर भैया, पौ फटने लगी है। आओ, आज बुवाई होगी। मैंने कल हल चला कर जमीन तैयार कर रखी है। जल्दी आ जाओ । धान की बुआई खत्म होते-होते साँझ हो सकती है।'
उसकी बात सुनकर मोर बोला, 'मुर्गा भैया, क्या बताऊँ जाने आज क्यों सिर्फ सोचने को दिल चाहता है। मैं केवल खाने-पीने की बात नहीं सोचता, और बहुत सारी बातें बैठे-बैठे सोचना चाहता हूँ । धान की बुआई में मैं तो आज कतई नहीं आ सकता। तुम जाकर बुआई कर दो। मुझे जरा सोचने का मौका दो ।'
मुर्गा अकेले चला और बुआई का काम साँझ तक करता रहा। अकेले सब कुछ करने में उसे तकलीफ होती थी। पर वह मजबूर था। मोर का दिल आज कुछ चाहता है तो कल कुछ ।
देखते-देखते एक हफ्ता निकल गया। धान के अंकुर आ गये। पानी देना जरूरी हो गया। नहीं तो पौधे सूख जाएँगे। मुर्गा मोर से बोला, 'भाई, धान के अंकुर आ गये । क्यारी में पानी देना जरूरी है। चलो मिलकर पानी चढ़ाएँगे, नहीं तो अंकुर सूख जाएँगे ।
मुर्गे की बात सुनकर मोर मल्हार की राग अलापने लगा। बोला, 'मुर्गा भैया, आज तो मेरा जी गीत गाने को चाहता है। मैंने संगीत शुरू किया कि घटा उमड़ेगी और रिमझिम रिमझिम पानी बरसेगा । खेत की अपने आप सिंचाई हो जायेगी। और फिर सिंचाई करना तो कोई कठिन काम नहीं है । तुम सिंचाई खत्म करके जल्दी घर लौट आना । मेरा संगीत सुनना ।
उसने गाना शुरू कर दिया। उसका गाना सुनकर मुर्गे का कान फट गया। वह बिगड़ गया। वहां से उठ खड़ा हुआ और चला खेत की सिंचाई करने। सिंचाई का काम करने में उसे खुशी मिल रही थी। वह रोज खेत में जाता था और सिंचाई का काम करता था। देखते-ही-देखते धान के हरे-हरे पौधे खड़े हो गये । हरे-भरे पौधों में वालियाँ निकल आयीं। लहलहाती बालियाँ पक गयीं। पीले-पीले धान के खेत ... झुकी झुकी लम्बी-लम्बी बालियाँ - देखते ही बनता था। मुर्गा अपनी फसल को देख फूला नहीं समाता था। कटाई का वक्त आ गया। मुर्गे ने मोर से कहा, 'मोर भैया, धान पक चुका है। चलो, कटाई करें। नहीं तो, चोरी का डर है।'
मोर बोला, 'न, न, नहीं जा सकता। आज तो खेलने को जी चाहता है। माफ करना । आज जाना संभव नहीं है। धान काटने ऐसा कठिन काम कोई दूसरा नहीं है। तुम अकेले भी काट सकते हो। मुझे क्यों बुलाते हो। मैं आज जरा जी भर कर खेलूँगा ।'
मुर्गा अकेले चला। उसने कटाई की, बीड़े बाँधे और ढो-ढोकर खलिहान में जमा भी किया। उसका मन इसलिए दुखी था कि उसका दोस्त हाथ नहीं बँटाता था ।
खलिहान में धान जमा करके वह फिर मोर के पास गया और बोला, 'मोर भैया, खलिहान में धान फैला रखा है, बारिश आ सकती है। जल्दी मड़ाई कर दिया जाए। नहीं तो सब सड़कर बरबाद हो जाएगा।'
मुर्गे की बात सुनकर मोर बोला, 'आज तो मैं बेहद खुश हूँ। मैं आज अपने पंख साफ करूँगा । धान की मड़ाई ऐसा कोई कठिन काम तो है नहीं कि दो जन लगें। तुम अकेले वह काम आराम से कर सकते हो। मुझे क्यों बुलाते हो। मुझे बस एक दिन और मौका दो। मैं आज अपने पंख साफ कर देता हूँ, कल से जो कहोगे, करूँगा।'
मुर्गा क्या करता । उसने अकेले मड़ाई करके पुआल अलग किया। मोर के पास आकर वह बोला, 'मड़ाई तो हो गयी। जल्दी उड़ाई करके धान निकाल लेना चाहिए । भूसा अलग से बिकेगा। धान खाने के लिए रख लिया जाएगा। तूफान का मौसम है। कल तूफान उमड़ा कि सब मिट्टी हो जाएगा । दोनों लग गए तो उड़ाई का काम आसान हो जाएगा।'
मुर्गे की बात सुनकर मोर बोला, 'भाई, तुम ठीक ही कहते हो । पर आज तो किताब पढ़ने को मेरा जी चाहता है। मैं आज कई किताबें पढ़ डालूँगा । धान की उड़ाई करने के लिए मेरे पास वक्त कहाँ ? अरे हाँ, उड़ाई तो बड़ा आसान काम है। तुम अकेले भी कर सकते हो। मुझे क्यों बुलाते हो ।'
मुर्गे ने अकेले सफाई की। धान के दाने अलग और कुट्टी अलग। इस काम निपटाने में उसे कई दिन लगे। धूप में काम करते-करते उसका माथा भी गरम हो जाता था। लेकिन वह हरेक काम यतन के करता था। कुट्टी का ऊँचा ढेर खड़ा हो गया। धान का ढेर उसके सामने लग गया था।
उसी वक्त मोर आहिस्ते-आहिस्ते खलिहान में आ पहुँचा। मुर्गे से बोला- 'मुर्गा भाई, आज काम करने को मेरा जी चाहता है। मैं किसी काम से कभी जी नहीं चुराता । तुमने तो सब छोटे-मोटे काम किए जो आसान थे । अब अनाज बाँटने का काम मेरा है। यह आसान काम तो है नहीं। खैर, मैं अकेले कर लूँगा। तुम चिंता मत करो।'
मुर्गे ने सोचा यही मौका है जबकि मोर को अच्छा सबक सिखाया जा सकता है। आलसी मोर अभी पधारे हैं। अनाज का बँटवारा करने, जबकि सारा काम खत्म हो चुका है। उसे मालूम है कि मोर धान और कुट्टी का ढेर पहचानता नहीं । उसने मुस्कुराते हुए मजाक में कहा, 'भाई, मैंने तो हल चलाया, धान बोये, फसल की कटाई की, मानी सब कुछ किया इसलिए बड़ा वाला ढेर मैं ले रहा हूँ और छोटा वाला तुम लो।' मोर क्या जाने बड़े ढेर और छोटे ढेर में क्या अंतर है। किसकी कीमत ज्यादा है।
मोर ने कहा, 'क्यों, मैं तो तुमसे बड़ा हूँ। बड़ा हिस्सा मेरा होगा। मैं ही बड़ा ढेर लूँगा। यह कहकर मुर्गे को धकेल कर वह कुट्टी के ढेर पर चढ़ गया।
मुर्गे को धान ही धान मिला। धान बेचकर उसे काफी पैसे मिले। वह अमीर बन गया। सब लोग उसके पास धान खरीदने आये । कुट्टी खरीदने मोर के पास भला कौन जाता । कुट्टी बेचने वह बाजार गया तो एक बोरा दो-दो रुपये में बिका। अपना सा मुँह लेकर वह रह गया।
आलसी और लोभी की जो दुर्गति होती है, वही गति मोर की हुई । अंत में मोर को बुलाकर मुर्गा बोला-
मोर भाई भोर भाई
बात करूँ सही-सही
तुम्हारा दिन रोने का
मेरा दिन हँसने का
(संपादक : बालशौरि रेड्डी)