आल्हा और ऊदल : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Aalha Aur Udal : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
मारागुडा घाटी में बिलिभिकम नामक एक भुंजिआ राजा शासन करते थे। बिलिभिकम राजा ने सुनाबेड़ा घाटी को भी अपने क़ब्ज़े में कर रखा था। सुनाबेड़ा की घाटी में बिलिभिकम राजा जंगली जानवरों का शिकार करते थे। एक दिन जासल के सैनिक शिकार करने के लिए सुनाबेड़ा घाटी में आए थे। जासल के सैनिक शिकार करके लौट रहे थे, उसी समय राजा बिलिभिकम के सैनिक शिकार करने के लिए सुनाबेड़ा घाटी जा रहे थे। राजा बिलिभिकम के सैनिकों ने राजा जासल के सैनिकों के साथ झगड़ा किया। उन्होंने कहा कि हमारे राजा बिलिभिकम कई सालों से इस इलाक़े पर शासन कर रहे हैं, इसलिए यह इलाक़ा हमारे राजा का है। इस इलाक़े में कोई और प्रवेश नहीं कर पाएगा।
राजा जासल के सैनिकों ने अपने राजा के पास जाकर सुनाबेड़ा के महत्व का बखान करते हुए उसे अपने क़ब्ज़े में ले लेने के लिए कहा। राजा जासल ने सोचा कि मारागुड़ा और सुनाबेड़ा को अपने अधीन रखने पर उनको बहुत फ़ायदा होगा। इसलिए जासल ने राजा बिलिभिकम को युद्ध का पैग़ाम भेजा और अपने सैनिकों को मज़बूत बनाने में जुट गए। बिलिभिकम ने भी अपनी सेना को मज़बूत किया और एक उपाय सोचा। उन्होंने बिनिआ धंस, गोधंस, खरल-धंस, योगी धंस, गिरि ब्राह्मन सब पहाड़ों पर बहुत सारे चिकने रास्ते बनवाए।
हर रास्ते के आख़िर में राजा बिलिभिकम ने बड़े-बड़े गड्ढे खुदवाए। राजा ने सोचा कि जासल के सैनिक चिकना रास्ता देखकर अपने घोड़ों को सरपट दौड़ाएँगे और रास्तों के छोर पर पहुँचते-पहुँचते अपना संतुलन खो देंगे और गड्ढे में गिर जाएँगे। फिर सैनिक उस गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाएँगे और वहीं पड़े-पड़े मर जाएँगे। सारे गड्ढे सौ-डेढ़ सौ हाथ गहरे थे। राजा जासल और राजा बिलिभिकम ने लड़ाई शुरू की। राजा जासल घोड़े पर चढ़कर युद्ध करने आए। चिकना रास्ता देखकर सैनिक अपना घोड़ा सरपट दौड़ाने लगे और संतुलन खोकर गड्ढों में गिर गए। इसी तरह जासल के सारे सैनिक गड्ढों में गिरकर मर गए। जासल ने जब देखा कि उनके सारे सैनिक मर गए तो वह पहाड़ के नीचे से छुपकर भागने लगे। भागते-भागते रास्ते में जासल का घोड़ा जलकि (एक पोखर जिसमें ऊपर पानी और अंदर कीचड़ होता है) में फँस गया। जलकि से जासल और उनका घोड़ा बाहर नहीं निकल पाए। उसी समय बिलिभिकम ने वहाँ पहुँचकर जासल को मार दिया।
जासल युद्ध में मारे गए। उस समय जासल की पत्नी रानी देवला गर्भवती थीं। कुछ महीने बाद रानी ने आल्हा और ऊदल दो जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया। रानी देवला का एक भाई था, महिल। महिल ने आल्हा और ऊदल दोनों को पढ़ाया। युद्ध-विद्या में दोनों को पारंगत बना दिया। युद्ध-विद्या सीखते-सीखते दोनों जवान हुए। बड़े होने पर आल्हा अपने देश के राजा बने। एक दिन देवला ने आल्हा और ऊदल को अपने पास बुलाकर बिलिभिकम और जासल के बीच हुई लड़ाई के बारे में बताया कि कैसे बिलिभिकम ने राजा जासल और उनके सैनिकों को मार दिया। आल्हा और ऊदल ने सारी बातें सुनकर राजा बिलिभिकम को मारने का संकल्प लिया।
राजा बिलिभिकम की तीन रानियाँ थीं, पर तीनों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन दोनों भाई आल्हा और ऊदल ने राजा बिलिभिकम को युद्ध का पैग़ाम भेजा। उस समय राजा बिलिभिकम की छोटी रानी कमलासती गर्भवती थी। बिलिभिकम रानी कमलासती से बोले, “मैं आल्हा और ऊदल से युद्ध करने जाऊँगा। उस समय मैं साथ में एक कबूतर ले जाऊँगा। युद्ध में मैं हार जाऊँगा तो वे मुझे मार देंगे, तब वह कबूतर तुम्हारे पास लौट आएगा। तब तुम मारागुडा छोड़कर चली जाना।” राजा बिलिभिकम तब तक वृद्ध हो चुके थे। आल्हा और ऊदल कुछ दिन बाद राजा बिलिभिकम के साथ युद्ध करने के लिए मारागुड़ा घाटी आए। राजा बिलिभिकम भी अपने सैनिकों को लेकर आल्हा और ऊदल से लड़ने के लिए युद्ध के मैदान में पहुँचे। वहाँ आल्हा और ऊदल ने राजा बिलिभिकम को हरा कर उन्हें मार दिया। राजा बिलिभिकम की मौत के बाद उनके पास से कबूतर उड़कर रानियों के पास पहुँच गया। कबूतर को देखकर रानियाँ जान गईं कि राजा की मौत हो गई है और ख़ूब रोईं। कमलासती से दोनों बड़ी रानियों ने कहा, “तुम हमारे वंश की रक्षा करोगी। इसलिए इस जगह को छोड़कर कहीं और चली जाओ। आल्हा और ऊदल अगर हमें मार भी दें तो कोई बात नहीं।” कमलासती वहाँ से छुपकर सुनाबेड़ा के पास के एक गाँव गड़भरा में जा पहुँची।
वहाँ अपने रहने के लिए दुर्ग बनाने लगी, पर फिर कमलासती के मन में आया कि मारागुड़ा से सुनाबेड़ा का फ़ासला काफ़ी कम है। ऐसे में अगर आल्हा और ऊदल सुनाबेड़ा कभी पहुँच जाएँ तो उसके बारे में जान जाएँगे और वहाँ पहुँचकर उसे मार देंगे। यह सोचकर कमलासती गड़भरा को छोड़कर सान दोहेल पहाड़ चली गई। सान दोहेल में एक घर बनाकर कमलासती वहीं रहने लगी। कुछ दिन वहाँ रहने के बाद उनका महीना पूरा हुआ। वहीं प्रसव वेदना शुरू हुई और एक लड़के को जन्म देकर वह बेहोश हो गई।
एक जंगल में एक बिंझाल और उसकी पत्नी बिंझालिन रहते थे। दोनों जंगल, पहाड़ से लकड़ी इकट्ठा करके घार्गुलि में रहने वाले एक ब्राह्मण के घर बेच आते थे और उसी पैसे से गुज़र-बसर करते थे। उस दिन भी बिंझाल-बिंझालिन लकड़ी इकट्ठा करने के लिए सान दोहेल पहाड़ गए थे। उन्होंने देखा कि पहाड़ की तलहटी में एक औरत एक बच्चे को जन्म देकर बेहोश पड़ी है। कमलासती को देखकर दोनों ने मन में सोचा कि ज़रूर यह राजघराने की होगी। दोनों कमलासती के पास पहुँचे। बिंझाल ने कुल्हाड़ी और तीर से नवजात शिशु की नाल को काटने की कोशिश की, पर सफल नहीं हुआ। उसके बाद बिंझाल बाँस की पतली पट्टी काटकर लाया और उससे नाल को काटा। कमलासती को होश आने पर उसने उन्हें सारी बातें बताईं।
बिंझाल और उसकी पत्नी बिंझालिन कमलासती और उसके बेटे को साथ लेकर घार्गुलि पहुँचे और वहाँ के ब्राह्मण के घर दोनों को रखवाया। घार्गुलि के ब्राह्मण ने कमलासती को अपनी बेटी की तरह रखा। धीरे-धीरे कमलासती का लड़का बड़ा होने लगा। बड़ा होकर जवान हुआ तो वह ब्राह्मण के घर के कामों में हाथ बँटाने लगा। एक दिन कमलासती का लड़का गाय-बैलों को चराने के लिए पास के जंगल में गया। उस दिन अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई। जंगल के बड़े-बड़े पेड़ टूट गए। बहुत तेज़ बारिश होने लगी। शाम को कमलासती का लड़का घर वापस नहीं लौट पाया। रात में गाय-बैलों के साथ वहीं जंगल में रुक गया। कमलासती का बेटा एक पेड़ के नीचे बैठा था, उसी समय जंगल में कहीं से एक साँप निकला और कमलासती के लड़के के सिर पर अपना फन फैलाकर बरसात के पानी से उसका बचाव किया। उस रात को कमलासती और वह बूढ़ा ब्राह्मण कोई भी सो नहीं पाए। सभी चिंताग्रस्त रहे। सुबह होने पर ब्राह्मण कमलासती के लड़के को ढूँढ़ने निकला।
जंगल में पहुँचकर उसने देखा कि कमलासती का लड़का एक पेड़ के नीचे बैठा है और एक साँप ने उसके सिर पर फन फैला रखा है। ब्राह्मण को देखते ही साँप जंगल में चला गया। ब्राह्मण ने यह दृश्य देखा तो वह समझ गया कि यह लड़का एक-न-एक दिन बड़ा आदमी बनेगा। ब्राह्मण ने कमलासती के लड़के को पास बुलाकर सारी बातें पूछीं और गाय, बैल और लड़के को साथ ले घर लौटा। उसी दिन से बूढ़ा ब्राह्मण कमलासती के लड़के की देखभाल ख़ूब अच्छे ढंग से करने लगा।
पाटणा देश के राजा के यहाँ एक समस्या आ गई थी। वहाँ की रानी के गर्भ में एक नाग साँप था। एक दिन रात को सोते समय रानी के गर्भ से उस साँप ने निकलकर राजा को काट लिया और राजा मर गए। उसके बाद एक-एक करके राजा के भाई राजा हुए। पर उन सब को भी उस साँप ने रानी के गर्भ से निकलकर काट लिया और वे मर गए।
अब राज्य का शासन चलाना मुश्किल हो गया। इसलिए अब बारी-बारी से हर घर के एक व्यक्ति राजा होने के लिए आते और दूसरे दिन मर जाते। इस तरह एक दिन के लिए ही लोग राजा बनते। वहाँ सात प्यादे थे और हर दिन सुबह वे राजा के शव को लेकर दाह कर आते।
इसी तरह पाटणा देश के हर घर में एक की बारी आती। कुछ साल बीत जाने पर घार्गुलि के ब्राह्मण के घर की बारी आई। उसका सिर्फ़ एक ही लड़का था। ब्राह्मण के घर में सभी दुःखी होकर रोने लगे। वे सब सोचने लगे कि कल हमारा लड़का पाटणा देश जाएगा, वहाँ एक दिन के लिए राजा बनेगा और फिर मर जाएगा।
उसी समय कमलासती का लड़का उनके घर पहुँचा और देखा कि सभी रो रहे हैं। उसने ब्राह्मण से रोने का कारण पूछा। बूढ़े ब्राह्मण ने अपनी बारी के बारे में बताया। तब कमलासती के लड़के ने कहा, “आपने हमारा कितना उपकार किया है। मुझे और मेरी माँ को आश्रय दिया, अपने परिवार के सदस्य की तरह रखा। कल मैं आपके लड़के की जगह राजा बनने पाटणा देश जाऊँगा।” यह कहकर वह घर पहुँचा और अपनी माँ से सारी बात कह सुनाई।
कमलासती पाटणा देश के राजा के बारे में सब जानती थी। उसने लड़के से कहा कि, राजा होने के लिए जो तू जाएगा तो मेरी कुछ शर्तें हैं, जिसे तू मानेगा, तभी तुझे मैं जाने दूँगी। मैं तुझे एक बड़ी तलवार दूँगी। उस तलवार को तू हमेशा पकड़े रहना। जिस समय वह साँप रानी के पेट में से निकलेगा उस तलवार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर देना और टुकड़ों को जला देना। यह है मेरी पहली शर्त।”
“दूसरी शर्त है रातभर सोना मत। रखवाली करते रहना।”
“तीसरी शर्त है, जब सुबह होगी तो सातों प्यादे शव लेने के लिए अंदर आएँगे, तब तू तलवार की एक ही चोट से सातों को मार देना।”
“इन तीन शर्तों को पूरा करेगा तो तू सदा के लिए उस देश का राजा बन जाएगा।”
कमलासती के लड़के ने सारी बातों को याद रखा। उस दिन रात को परिवार के सभी लोगों ने एक जगह बैठकर गपशप करके रात बिताई। दूसरे दिन सुबह राजा के लोग बूढ़े ब्राह्मण के घर आकर कमलासती के लड़के को पाटणा का राज बनाने के लिए ले गए। उसे एक दिन के लिए पाटणा का राजा बना दिया। दिनभर कमलासती के लड़के ने राज्य का कार्यभार सँभाला। रात में सोने के लिए रानी के कमरे में गया।
रात में रानी सो गई, पर कमलासती का लड़का सोया नहीं, जागता रहा। रात में जब रानी के गर्भ से साँप निकला तो माँ की दी हुई तलवार से उस साँप के टुकड़े-टुकड़े करके काट डाला और उन्हें जला दिया। सुबह होने से पहले राजा मर गया होगा, ऐसा मानकर सातों प्यादे जब राजा का शव लेने पहुँचे, तब कमलासती के लड़के ने अपनी माँ की दी हुई तलवार की एक ही चोट से सातों प्यादों का सिर काट डाला। रानी गहरी नींद में थीं, इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला।
सुबह उठकर रानी ने देखा राजा नहीं मरे हैं। वह आश्चर्यचकित भी हुई और ख़ुश भी। उन्होंने राजा से सब बातें पूछीं। राजा ने सब बताया। राजा के परिवार के लोगों ने देखा कि राजा मरे नहीं हैं। यह बात चारों तरफ़ प्रचारित कर दी गई। पाटणा देश की प्रजा यह सुनकर ख़ूब ख़ुश हुई। पूरे धूमधाम से राजा का राज्याभिषेक हुआ। रानी के साथ उनका विवाह कराया गया। उसी दिन से कमलासती का बेटा पाटणा देश का राजा बना। उसे सब रमेइ कुमार राजा कहने लगे। रमेइ कुमार राजा ने पाटणा देश पर शासन किया और सभी को ख़ुश रखा।
(साभार : अनुवाद : सुजाता शिवेन, ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)