आखिरी किस्त (कहानी) : गुरुदत्त
Aakhiri Kist (Hindi Story) : Gurudutt
लगभग बीस वर्ष पूर्व गाँव की ही मसजिद में रामधन को हिंदू से मुसलमान बनाकर उसका नाम दीनमुहम्मद रख
दिया गया । पड़ोसी की लड़की की काली चमकीली आँखें इसमें कारण थीं । लड़की के पिता ने रामधन को एक रात
के अँधेरे में उस लड़की को आलिंगन और चुंबन करते देखा, तो उसको इसलाम स्वीकार करने के लिए विवश
किया , अन्यथा धमकी दे दी कि उसको भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इस प्रकार उसने अपनी विधवा माता तथा
छोटे भाई को छोड़, गाँव की मसजिद में इसलाम धर्म में शरण ले ली तथा फातिमा के पति के रूप में नूरुद्दीन के
घर का अंग बन गया ।
इसलाम ग्रहण करने पर भी उसका अपनी माता तथा भाई के प्रति प्रेम कम न हुआ, किंतु अपना मुख उन्हें
दिखाते हुए वह बहुत डरता था । इस पर भी फातिमा से निकाह से पूर्व अपनी माता से मिलकर उसका आशीर्वाद
ग्रहण करने की तीव्र भावना को वह दबा नहीं सका । निकाह रात को पढ़ा जानेवाला था और रात के अँधियारे में
अवसर पाकर वह अपने श्वसुर के घर से खिसक गया । अपनी माँ के पास पहुँच, उसके पैर पकड़कर वह फूट
फूटकर रोने लगा । माँ भी इस सबका कारण जानती थी और अत्यंत दु: खी थी , किंत कोई रास्ता न पा सकने के
कारण शांत थी । वह जानती थी कि यदि रामू फातिमा से विवाह अस्वीकार कर देता है, तो नूरुद्दीन रामू को और
अवसर मिला, तो उसके छोटे भाई को भी मार डालेगा और फातिमा से विवाह करने के लिए उसका मुसलमान
बनना जरूरी था । यह तो उसके मस्तिष्क में कभी नहीं आया था कि उसकी संतान अथवा उसके लड़के की संतान
गोहत्यारी और गोमांस- भक्षक बन सकेगी । ज्यों ही उसके मन में यह विचार उठा , उसने रामू की ओर से मुख फेरते
हुए कहा, " तुम मुझसे क्या चाहते हो ? "
अपनी माँ के इस प्रकार के व्यवहार को देखकर उसे धक्का लगा । उसे माँ से बहुत प्यार था । नीचे जमीन की
ओर देखते हुए वह बोला, " माँ , मैं विवाह से पूर्व तुम्हारा आशीर्वाद लेने के लिए आया हूँ । "
इसमें माँ का हृदय कुछ पिघला, परंतु यह विचार कि वह गो -भक्षक बन रहा है , अभी भी उसे परेशान कर रहा
था । उसने कहा, " केवल एक शर्त पर मैं आशीर्वाद दे सकती हूँ । "
" क्या ? "
" तुम गऊ की हत्या नहीं करोगे और गोमांस -भक्षण नहीं करोगे। "
" मैं वचन देता हूँ । "
" तो ठीक है । जाओ, ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे । "
रामू ने अपना वचन निभाया और माँ का आशीर्वाद भी निष्फल नहीं हुआ । ईश्वर की कृपा से वह धनी होने के
साथ- साथ गाँव का मुखिया भी हो गया और चार सुंदर पुत्र भी उसके हो गए । इस प्रकार बीस वसंत और पतझड़
आए और गए । उसका सबसे बड़ा लड़का रहमान इस समय उन्नीस वर्ष का था और सबसे छोटा बारह वर्ष का ।
अंदर से दीनमुहम्मद हिंदू ही रहा, किंतु बाहर से तो वह मुसलमान के अतिरिक्त अन्य कुछ हो भी नहीं सकता
था । जिस दिन बलात् उसे मुसलमान बनाया गया था , उसके बाद वह कभी मसजिद में नहीं गया और जब कभी भी
वह शिवमंदिर के सामने से गुजरता , वह सिर नवाना न भूलता था । उसके धनी होने के कारण उसका आदर होता था
और किसी प्रकार जाति - पाँति का भेदभाव किए बिना गाँव के सभी लोग उसकी शरण में आते थे ।
दीनमुहम्मद का छोटा भाई शिवधनी भी फला-फूला। वह कलकत्ता चला गया और वहाँ जाकर उसने खूब धन
कमाया । पाँच वर्ष कलकत्ता में रहने के बाद वह वापस अपने गाँव में आ गया । उसने शादी की और गाँव के मध्य
में एक सुंदर मकान बनवाया । उसने बड़े- बड़े खेत खरीदे और उनकी जुताई आदि के लिए बड़ी- बड़ी मशीनें मोल
ले लीं । बाढ़ के जल की भाँति पैसा आ रहा था । सारा गाँव उसके खेत , मशीन तथा अन्य व्यवस्था की चर्चा करता
था । गाँव का कार्य शांति एवं सुव्यवस्था से चल रहा था ।
परंतु गाँव के बाहर का संसार शांति से नहीं चल रहा था । द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हुआ और जापान तथा
जर्मनी की नितांत पराजय के साथ उसका अंत हो गया । बर्तानिया की सरकार को भारत सरकार को जनतांत्रिक
राज्य बनाना लाभप्रद प्रतीत हुआ । इससे वे लोग, जो अब तक सरकार द्वारा रक्षित थे तथा भारत की उन्नति में
बाधक बनने के लिए प्रोत्साहन पा रहे थे, सचेत हो गए । ब्रिटिश सरकार की ओर से जिन्हें सुविधा और सम्मान
प्राप्त था , उनके पाँव तले से मानो धरती खिसकने लगी । जनतंत्र का अभिप्राय सबके लिए समान अवसर सुविधा
प्राप्त करना, सभी को जीवन के लिए समान संघर्ष करना था ।
उचित अथवा अनुचित किसी प्रकार से हो , मुसलमान समझते थे कि उनको ब्रिटिश सरकार का संरक्षण प्राप्त है ।
इस कारण इस समान अवसर की बात सुनकर वे चिंतित हो गए । जब तक उनको पृथक् क्षेत्र नहीं मिल जाता, जहाँ
कि वे उसी सुविधापूर्वक रह सकें , जैसे ब्रिटिश सरकार के अधीन रहते थे, तब तक वे जनतंत्र की स्थापना न होने
देने के लिए कत- संकल्प हो गए । जनतांत्रिक प्रणाली में अनुचित सुविधा की प्राप्ति संभव नहीं थी । अतः देश के
समस्त मुसलमान इससे चिंतित हो गए । पाकिस्तान उनका नारा बना और मसजिदें उनकी प्रगति की पालना बनीं ।
मसजिदों में मुल्ला लोग मुसलमानों के कानों में पाकिस्तान का मंत्र फूंकते हुए अंग्रेजों को अपनी माँग पूरी करने के
लिए कहने लगे ।
इन बातों का गाँव के वातावरण पर भी गहरा प्रभाव पड़ा । पुराने मुतवल्ली के स्थान पर गाँव की मसजिद में
दिल्ली से एक मुल्ला आकर नमाज पढ़ाने लगा ।
मसजिद के अंदरवाली काररवाई बाहर के व्यक्ति के लिए सदा गुप्त ही रहती है । बाहर कोई भी मुसलमान
उसकी चर्चा नहीं करता, विशेषतया गैर -मुसलिम के साथ ।
किसी प्रकार से बात निकल गई और यह गाँववालों का साधारण चर्चा का विषय बन गया कि मुल्ला उनको
पढ़ाता है कि वे गाँव के मध्य में गाय काटने तथा मसजिद के सम्मुख बाजे न बजने के अधिकार पर दृढ़ रहें ,
क्योंकि हिंदुओं को ये दोनों बातें स्वीकार नहीं, इसलिए मुल्ला ने समझा दिया कि पाकिस्तान का बनना आवश्यक है
और गाँव के मुसलमानों ने इस पर अपनी सहमति जता दी । मुसलमानों ने कभी अहिंसा पर विश्वास नहीं दिखाया
और इसलिए अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए बल का प्रयोग करने में चूके भी नहीं । उन्होंने निश्चय किया कि इस
गाँव में भी इसी प्रकार किया जाएगा ।
शिवधनी के लड़का उत्पन्न हुआ था और इस प्रसंग में उसके घर खुशियाँ मनाई जा रही थीं । लड़के के जन्म के
ग्यारहवें दिन सारे गाँव को भोजन का निमंत्रण दिया । उसने समीप के नगर से दिन भर बजाने के लिए बैंड और रात
को आतिशबाजी चलाने का प्रबंध कर रखा था । मुल्ला ने इस पर आपत्ति उठाई । अपने सहायकों के साथ मुल्ला
गाँव के मुखिया के पास जाकर उसे शिवधनी को समझाने के लिए कह आया । शिवधनी के कलकत्ता से लौटने के
बाद रामू, जो अब दीनमुहम्मद था , पहली बार अपने छोटे भाई के सामने गया और उसने गाँव के मुल्ला और
मुसलमानों की भावना के विषय में बताया । शिवधनी अपने भाई के ही मुख से ऐसी बात सुनकर, जो कि गाँव की
नीति के अनुकूल नहीं थी, किंकर्तव्यविमूढ़ सा रह गया । उसने पूछा, " बैंड क्यों नहीं बजाना चाहिए ? "
" मुसलमान चाहते हैं कि गाँव में मसजिद के होने पर बाजा न बजाया जाए । "
" पर ऐसा तो यहाँ सदा होता आया है, मेरे विवाह के अवसर पर इस प्रकार की कोई आपत्ति नहीं उठाई गई
थी । "
" शिव, जमाना बदल गया है । मुसलमान अपनी इच्छा को पूरी होते देखना चाहते हैं । "
" ठीक है , किंतु हमारी इच्छाओं का क्या होगा ? मेरी इच्छा और मनुष्य का अधिकार कि अपने घर में वह जो
चाहे करे? "
" एक व्यक्ति की सुविधा से मसजिद की पवित्रता अधिक आवश्यक है । "
" पर मेरे घर पर बाजा बजने से मसजिद की पवित्रता किस प्रकार भ्रष्ट हो जाएगी? "
" बाजे की ध्वनि मसजिद तक पहुँचेगी, उससे जो वहाँ नमाज पढ़ने जाते हैं , वे नमाज नहीं पढ़ पाएँगे । "
" मेरे यहाँ समारोह तो बुधवार को है, जुमे के दिन नहीं । "
" इससे क्या फरक पड़ता है ? लोग नित्य ही नमाज पढ़ने जाते हैं । "
" पर वे सारा दिन तो वहाँ नमाज नहीं पढ़ते ? "
" तो तुम नमाज पढ़ने के समय बाजा बंद करवा देना । "
" यदि आप ऐसा कहते हैं , तो मैं बंद करवा दूंगा । यद्यपि मैं इसे अपने अधिकारों का हनन समझता हूँ । मेरी समझ
में नहीं आता कि जीवन में एक - दो बार भी इस साधारण रूप में मुझे अपने घर पर खुशियाँ क्यों नहीं मनाने दी
जातीं । क्या उस केवल एक दिन के लिए वे नमाजी किसी अन्य मसजिद में नहीं जा सकते । "
"शिव, " उसके बड़े भाई, जो कि अपने छोटे भाई के तर्क को समझ गया था , ने कहा, " यह तुम्हारे और मेरे
निर्णय करने की बात नहीं है कि दूसरे क्या करें अथवा क्या न करें । मैं तो केवल तुमसे यह कहने के लिए आया था
कि मुसलमान लोग नमाज के समय बैंड बजना पसंद नहीं करेंगे । यदि तुमने फिर भी बाजा बजवाया तो उसका
परिणाम भी तुम्हें भुगतना होगा । "
शिवधनी का दिल इससे खट्टा हो गया । गाँव के मुखिया की धमकी और आदेश वह समझ न पाया। केवल एक
मास पूर्व ही तो इमामदीन के लड़के की बारात मसजिद के सामने से निकली थी और उसमें गाँव का बैंड भी बज
रहा था , किंतु उस समय किसी ने ऐसी आपत्ति नहीं उठाई । जो हो , उसने निश्चय किया अपने वचनानुसार वह
नमाज के समय बैंड रुकवा देगा ।
बुधवार के दिन, जिस दिन समारोह था, दीनमुहम्मद ने अपने बड़े लड़के रहमान को एक बड़ा सा चाकू तेज
करते हुए देखा। लड़के ने जब देखा कि उसका बाप उधर आ रहा है , तो उसने चाकू छिपाने का यत्न किया, किंतु
वह ऐसा नहीं कर सका । बाप ने पहले ही उसकी चमक देख ली थी । उसने लड़के से पूछा, " तुम क्या कर रहे
हो ? "
लड़के ने तथ्यहीन उत्तर देते हुए कहा, " कुछ नहीं । "
बाप को उस समय आवश्यक काम से लगभग दो मील दूर पर स्थित एक गाँव में ठहरे हुए तहसीलदार के पास
जाना था , इसलिए वह चला गया और लड़के ने अपने काम में मन लगाया ।
दीनमुहम्मद जब तहसीलदार के पास से लौट रहा था , तो उसे स्मरण हो आया कि उसको शिवधनी के निमंत्रण
पर जाना है । इसलिए वह उसके घर की ओर चल दिया ।
बहुत से लोग शिवधनी के घर के बाहर एकत्र थे और खूब कोलाहल हो रहा था । दीनमुहम्मद ने अनुभव किया
कि मानो प्रत्येक व्यक्ति अपने पूरे बल से बोल रहा है । सहसा उसे ध्यान आया कि कहीं बैंड के कारण कोई झगड़ा
न हो गया हो । यद्यपि उसने अपने भाई से कहा था कि नमाज के समय वह बैंड रुकवा दे। अत : वह जल्दी से उस
ओर चलने लगा । इसी समय उसे अपने लड़के का चाकू तेज करना भी स्मरण हो आया । वह जानता था कि रहमान
नियमित रूपेण मसजिद में जाता है और मुल्ला वहाँ लोगों को बैंड के विरुद्ध भड़काया करता था । इससे उसको
चिंता लग गई और उसका मन कुशंकाओं से भर गया । अपने कदम तेज कर वह वहाँ पहुँचा किंतु तब तक दुर्घटना
हो चुकी थी ।
लगभग 11 बजे प्रातः बैंड बजाना शुरू हुआ । युवक - समूह के लाठी और चाकुओं से सुसज्जित होकर निकलने
के लिए यह सूचना ही थी । गाँव के लगभग सभी प्रतिष्ठित जन शिवधनी के घर उपस्थित थे और उन्होंने देखा कि
शस्त्र - सज्जित युवकों का दल तूफान की भाँति उनकी ओर आ रहा है । सभी उठकर खड़े हो गए । वे जानना चाहते
थे कि उनके इस क्रोध का कारण क्या है । रहमान उस समूह के आगे - आगे था । उन्मत्त की भाँति वह अपना चाकू
घुमा रहा था । शिवधनी के मकान के आगे एकत्रित लोगों में से कुछ लोग उठकर उनकी ओर जा हाथ खड़ा कर
शांत रहने का संकेत करने लगे । रहमान और उसके सहयोगी मुल्ला के उपदेशों को सुनकर ऐसे क्रुद्ध हो गए थे
कि वे कोई भी कारण सुनने के लिए तैयार नहीं थे। जो आदमी उन्हें शांत कराने के लिए आया था , रहमान ने उसके
छुरा घोंपने का यत्न किया । आदमी पीछे हट गया । इस प्रकार उसने स्वयं को बचा लिया । इससे तो शिवधनी के घर
पर एकत्रित लोगों में भी क्रोधाग्नि भड़क उठी और कुछ लोग रहमान तथा उसके साथियों से निपटने के लिए आगे
आ गए । दोनों दलों में गुत्थम - गुत्था होने लगी । लाठी, छुरी, चाकू, फावड़ा आदि- आदि जिसके हाथ में जो था ,
उससे वह काम लेने लगा । दोनों दलों में व्यक्ति घायल हो रहे थे और मर रहे थे।
शिवधनी के घर पर एकत्र लोग लड़ने के लिए तैयार होकर नहीं आए थे। इस कारण वे भागने लगे । इस समय
दीनमुहम्मद वहाँ पहुँच गया । उसने देखा कि आहतों के खून से लथपथ उसका बड़ा लड़का रहमान तेजी से उसके
भाई के जनानखाने की ओर जा रहा है । वह उसकी कुत्सित वृत्ति समझ गया । उसके मन में यह विचार बिजली की
तरह कौंधा कि रहमान महिलाओं पर आक्रमण करने गया है । अत: वह भी तेजी से उसके पीछे भागा ।
शिवधनी अपने हाथ में लाठी लेकर जनानखाने के दरवाजे पर खड़ा था । कमरे के भीतर उसकी माँ और रुग्ण
पत्नी थी । शेष सभी औरतें पिछले द्वार से भाग गई थीं । अब तक शिव ने एक आक्रामक को अपनी लाठी से
घायल कर दिया था और अब दूसरे को घायल करने के लिए जब उसने लाठी उठाई, तो सामने खड़े व्यक्ति को
पहचानकर वह रुक गया । उसने लाठी नीचे की और कहने लगा, " रहमान, मैं तुम्हारा चाचा हूँ और भीतर तुम्हारी
चाची है । "
क्षण भर के लिए रहमान रुका और अपने चाचा को देखकर बोला, " चाचा? नहीं, तुम काफिर हो । " और
अपना चाकू उठाकर वह उस पर झपटा । इतने में शिव की माँ बीच - बचाव करने उन दोनों के बीच आ गई और
चाकू उसकी छाती को चीरता हुआ उसके हृदय के टुकड़े कर गया । बुढिया दोनों के पैरों में लुढ़क पड़ी । अपने
चाचा पर दूसरा वार करने के लिए रहमान चाकू निकालना चाहता था । इतने में दीनमुहम्मद वहाँ पर पहुँच गया और
अपनी माँ को खून से लथपथ जमीन पर पड़ी और अपने लड़के को चाकू खींचते देख वह क्रोध से भड़क उठा ।
अपनी माँ के प्रति उसे बहुत स्नेह था और बचपन में उसके लिए उसकी माँ ने जो कष्ट सहे थे, उन्हें वह भूला नहीं
था । उसने रहमान की गरदन पकड़ ली और चिल्लाकर कहने लगा, " धूर्त ! पिशाच! "
शिवधनी की , जो बाप-बेटे को गुत्थम- गुत्था देख विमूढ़ सा खड़ा था , अचानक दृष्टि उन लोगों पर पड़ी, जो
शस्त्र - सज्जित हो घर में घुसकर जनानखाने की ओर बढ़ रहे थे। अपनी पत्नी तथा नवजात शिशु की रक्षा का विचार
मन में आते ही उसने उन लोगों को मारने के लिए लाठी उठाई । उसकी लाठी ने दो का काम तमाम किया और शेष
भाग गए । उसके पीछे दोनों बाप- बेटे अभी भी लड़ रहे थे। रहमान की गरदन उसके बाप के हाथ से छूट गई थी
और वह पास पड़े हुए चाकू की ओर पहुँचने का असफल प्रयत्न कर रहा था । रहमान जवान था । उसका पिता
थकान अनुभव करने लगा था । वह उसे चाकू से दूर रखने का भरसक प्रयत्न कर रहा था , किंतु शनै:- शनैः लड़का
उस ओर बढ़ता ही जाता था । अगले ही क्षण वह चाकू तक पहुँचकर उसे उठा , पता नहीं अपने पिता पर ही वार
कर देता कि शिवधनी की पत्नी बाहर आई, उसने चाकू उठाया और फिर अंदर चली गई ।
तब तक शिवधनी को भी बाहर के आक्रामकों से अवकाश मिल गया था । उसने पीछे मुड़कर देखा तो बाप- बेटा
दोनों लड़ रहे थे। उसने अपनी लाठी जमीन पर पटकी और उन दोनों को छुड़ाने का यत्न करने लगा । उसे भी इसमें
सफलता न मिलती यदि बाप पूर्णतया थक न गया होता और लड़का वहाँ से भाग न जाता । ज्यों ही उन दोनों को
छडाने में सफलता मिली, रहमान घर से भाग गया ।
इस लड़ाई में दीनमुहम्मद को कई चोटें आई थीं । शिवधनी ने उसे जमीन से उठाकर बैठाया और उसकी चोटों पर
लगी धूल साफ करने लगा । समीप ही उसने मृत माता का शव पड़ा देखा, तो उसका हृदय भर आया । अश्रुपूरित
नयनों से वह बोला, " दादा, मैं तुम्हें घर छोड़ आऊँ अथवा तुम अकेले चले जाओगे? "
दीनमुहम्मद की गरदन झुक गई और उसकी आँखों में आँसू बहने लगे । उसको अपनी भावनाओं पर नियंत्रण
करना कठिन हो गया और वह रो पड़ा । मृत माँ के पैर पकड़कर वह कहने लगा, " माँ, मैं पापी हूँ, मुझे शाप दो , मैं
ही पापी हूँ । "
पुलिस ने मसजिद में छिपे रहमान को पकड़ लिया । लंबी- चौड़ी जाँच-पड़ताल के बाद दो अन्य साथियों के साथ
रहमान पर धारा 303, 302 , 307 तथा इसी प्रकार की अन्य अनेक धाराओं के अंतर्गत अभियोग चलाया गया ।
अभियोग में विशेष जान नहीं थी , क्योंकि कोई भी आँखों- देखा गवाह पुलिस को मिल नहीं पाया था । सभी लोग
रहमान के पिता के कारण डरते थे। वे जानते थे कि दीनमुहम्मद ने स्वयं सबकुछ अपनी आँखों से देखा है । यदि
वह पुलिस की सहायता के लिए आगे नहीं आ रहा , तो कोई अन्य क्यों आगे आए ?
पुलिस ने शिवधनी को, जिसके घर पर यह दुर्घटना हुई थी , नहीं छोड़ा । उसको अदालत के सामने गवाही देने के
लिए बुलाया गया । जिस दिन उसे गवाही देने के लिए जाना था, उसकी पहली रात को फातिमा शिवधनी के घर पर
आई और उसने उसकी पत्नी के पैरों में सिर रख दिया । शिवधनी की पत्नी अपने छोटे बच्चे को दूध पिला रही थी
और वह वहीं समीप बैठा था । ऐसे समय अपने लड़के की जीवन -रक्षा के लिए फातिमा ने जो विनती की , वह
शिवधनी के हृदय में घर कर गई । आँसू भरी आँखों से उसने कहा, " भाभी, तुम मुझसे क्या कहलवाना चाहती
हो ? "
" कोई भी बात , जिससे कि रहमान छूट जाए । "
" बहुत अच्छा, " उसने गहरा साँस लेते हुए कहा, " मैं वही करूँगा, जो तुम चाहती हो । "
अभियोग में शिवधनी की मुख्य गवाही थी । उसने मजिस्ट्रेट को बताया, "मैं घर के भीतर जनानखाने की रक्षा
कर रहा था । मैंने रहमान को वहाँ नहीं देखा । मेरे खयाल में न तो वह गुंडों की अगवाई कर रहा था और न ही मेरे
मकान में घुसा । " उसने आगे कहा , " मैं उस समय परेशान हो गया था । कोई मेरे मकान में घुसा था , मैंने शायद
उसे लाठी मारी और वह उससे मर गया । मैंने उस समय पहचाना नहीं । मैं नहीं समझता कि वह रहमान था । "
शिवधनी की गवाही से पुलिस का केस बिलकुल सारहीन हो गया था और प्रोसीक्यूटर केस वापस लेने की सोच
रहा था । इस समय दीनमुहम्मद कचहरी के कमरे के अंदर घुसकर मजिस्ट्रेट से बोला, "मैं इस केस में गवाही देना
चाहता हूँ । "
" आपने इसके लिए पुलिसवालों से संपर्क स्थापित क्यों नहीं किया ? "
" पुलिस ने मुझे नहीं खोजा । यह तो पुलिस बताएगी कि मुझ जैसा आँखों देखा गवाह विद्यमान होने पर भी पुलिस
ने मुझसे पूछताछ क्यों नहीं की ? मैं सोचता हूँ कि गाँव का मुखिया होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है कि घटना की
सभी बातें स्पष्ट हो जाएँ, कोई चीज छिपी न रह सके । "
तब उसने रहमान के चाकू तेज करने, उसकी माँ को मारने और फिर उसे ही मारने का यत्न करने की पूरी
कहानी सुना दी । अंत में उसने बताया, "रहमान मेरा लड़का है । कुछ भी हो , वह हत्यारा है । "
उसने मुल्ला के विषय में भी बताया किंतु वह तब तक गाँव छोड़कर भाग गया था और उसका पता नहीं चला ।
उस दिन शाम को दीनमुहम्मद ने अपनी पत्नी से कहा , " आज मैंने तुम्हारे प्रेम के मूल्य की आखिरी किस्त चुका
दी है । "