आगे बढ़ने का भेद (प्रेरक कथा) : यशपाल जैन

Aage Badhne Ka Bhed (Prerak Katha) : Yashpal Jain

एक बार दो भाई एक मुकदमे में फंसकर अदालत में पहुंचे। उनमें एक भाई लखपति था, दूसरा कंगाल । न्यायाधीश को यह बात मालूम हुई तो उसे बड़ा अचरज हुआ । उसने पैसे वाले से पूछा, "क्यों जी, तुम दोनों सगे भाई हो, लेकिन तुम इतने अमीर हो और तुम्हारा भाई इतना गरीब है । ऐसा क्यों है ?"

धनी भाई न्यायाधीश की बात सुनकर बोला, “आज से कोई पांच साल पहले हमारे पिता मरे तो उनकी दौलत हम दोनों भाइयों को बराबर मिली। दो लाख रुपये मेरे हिस्से में आये और उतने ही मेरे इस भाई को मिले ।"

न्यायाधीश ने अचरज से कहा, "अच्छा! तब पांच साल के भीतर इसके इतने सारे रुपये कैसे उड़ गये ?"

भाई बोला, “इसके हाथ में जैसे ही पैसा आया, यह अपने को धनी समझने लगा। बहुत से नौकर रख लिये। उन पर हुक्म चलाता— 'जाओ, यह करो, वह करो ।' अपने हाथ से तिनका भी न तोड़ता । धीरे-धीरे इसे आलस ने घेर लिया। नौकरों ने देखा कि मालिक की आंखें बन्द हैं और वह हाथ-पैर हिलाना नहीं चाहता तो वे मनमानी करने लगे । उन्होंने पैसा पानी की तरह बहाया। देखते-देखते वह दिन आ गया, जब इसके पास कौड़ी भी न रही।"

"लेकिन,” न्यायाधीश ने पूछा, “तुमने क्या किया ?"

भाई ने कहा, "मैंने ? पैसे मिल जाने पर भी अपने हाथ-पैर की मेहनत नहीं छोड़ी। नौकर मेरे यहां भी थे, लेकिन मैं अपने इस भाई की तरह उनसे यह नहीं कहता था कि 'जाओ, यह काम करो, वह काम करो ।' मैं तो कहता था - 'आओ, मेरे पीछे आओ।' यानी काम करने में मैं हमेशा आगे रहता था। किसी ने कहा है न कि जो अपनी मदद आप करता है उसकी मदद सब करते हैं। मैंने कभी दूसरों के ऊपर काम नहीं छोड़ा । छोटा-बड़ा जो भी काम हुआ, मुस्तैदी से किया । दूसरों से बस मदद ली । आप जानते हैं, इसका नतीजा क्या हुआ ?"

न्यायाधीश ने कहा, “क्या ?"

वह बोला, “मेरी आंखें हमेशा खुली रहीं । कौड़ी - कौड़ी पर मेरी निगाह रही और मैं कभी किसी के भरोसे नहीं रहा । इससे मेरी दौलत बढ़ी और आज मेरे पास लाखों रुपये हैं । अगर मैं अपने इस भाई की तरह दूसरों पर निर्भर रहा होता तो मेरी भी वही हालत हुई होती, जो इसकी हुई।"

  • मुख्य पृष्ठ : यशपाल जैन की कहानियाँ, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां