आग के बीज : चीनी लोक-कथा
Aag Ke Beej : Chinese Folktale
आदिम काल में मानव जाति अग्नि से अनभिज्ञ थी। मानव नहीं जानता था कि आग क्या चीज है! वह अपने जीवन में आग का उपयोग नहीं जानता था। उस जमाने में जब रात होती, तो हर तरफ अंधेरा छाया रहता था। जंगली जानवरों की हुंकारें सुनाई देती थी। लोग सिमटकर ठिठुरते हुए सोते थे। रोशनी न होने से रात बहुत ठंडी और डरावनी होती थी। उस समय आग नहीं होने के कारण मानव कच्चा खाना खाता था। वह अधिक बीमार पड़ता था और उसकी औसत आयु भी बहुत कम होती थी।
स्वर्ग लोक में फुशि नाम का देवता रहता था। जब उसने धरती पर रहने वाले मानव का दूभर जीवन देखा, तो उसे बड़ा दुख हुआ और दया आई। उसने सोचा कि मानव को आग से परिचित करवाया जाए। उसे एक उपाय सुझा। उसने अपनी दिव्य शक्ति से जंगल में भारी वर्षा के साथ बिजली गिरायी। एक भारी गर्जन के साथ जंगल के पेड़ों पर बिजली गिरी और पेड़ आग से जल उठे। देखते ही देखते आग की लपटें चारों तरफ तेज़ी से फैल गईं। लोग बिजली की भंयकर गर्जन और धधकती हुई आग से भयभित हो कर दूर भाग गये। कुछ समय के बाद वर्षा थम गई और बिजली का गर्जन शांत हुआ। रात हुई तो वर्षा के पानी से ज़मीन बहुत नम और ठंडी हो गई। दूर भाग चुके लोग फिर इकट्ठे हुए, वे डरते-डरते पेड़ों पर जल रही आग देखने लगे। तभी एक नौजवान ने पाया कि पहले जब रात होती थी तो जंगली जानवर हुंकार करते सुनाई देते थे लेकिन अब ऐसा नहीं हुआ। क्या जंगली जानवर पेड़ों पर जलती हुई इस सुनहरी चमकीली चीज़ से डरते हैं? नौजवान मन ही मन इसपर विचार करता रहा। वह हिम्मत बटोरकर आग के निकट गया तो उसे महसूस हुआ कि उसका शरीर गर्म हो उठा है। आश्चर्यचकित होकर उसने लोगों को आवाज दी - "आओ, देखो, यह जलती हुई चीज खतरनाक नहीं है, यह हमें रोशनी और गर्मी देती है। इसके पश्चात मानव ने यह भी पाया कि उनके आसपास जो जानवर आग से जल कर मरे, उनका मांस बहुत महकदार था। चखा, तो स्वाद बहुत अच्छा लगा। सभी लोग आग के पास जम आए, आग से जले जानवरों का मांस खाया। उन्होंने इससे पहले कभी पके हुए मांस का स्वाद नहीं लिया था। मानव को समझ आ गई कि आग सचमुच उपयोगी है। अब तो वे पेड़ों की टहनियाँ और शाखाएं एकत्रित करके जलाने लगे और आग को सुरक्षित कर रखने लगे। लोग रोज बारी बारी से आग के पास रहते हुए उसे बुझने से बचाते रहे। एक रात आग की रक्षा करने वाले व्यक्ति को नींद आ गई और वह सो गया। लकड़ियां पूरी तरह जल जाने के कारण आग बुझ गई। इस एक व्यक्ति की नींद के कारण मानव जाति पुनः अंधेरे और ठंड से जूझने लगी। जीवन दुबारा बहुत दूभर हो गया।
देवता फुशी ने ऊपर में यह जाना, तो उस ने उस नौजवान मानव को सपना दिखाया, जिस में उस ने युवा को बताया कि दूर दराज पश्चिम में स्वी मिन नाम का एक राज्य है , वहां आज की बीज मिलती है , तुम वहां जा कर आग की बीज वापल लाओ । सपने से जाग कर नौजवान ने सोचा , सपने में देवता ने जो बात कही थी, मैं उस का पालन करूंगा, तब वह आग की बीज तलाशने हेतु रवाना हो गया।
ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों को लांघ, गहरी नदियों को पार कर और घने जंगलों से गुजर, लाखों कठिनाइयों को सहते हुए वह अंत में स्वी मिन राज्य पहुंचा। लेकिन यहां भी न कोई रोशनी, न आग मिलती थी, हर जगह अंधेरा ही अंधेरा थी। नौजवान को बड़ी निराश हुई, तो स्वी मु नाम के एक किस्म के पेड़ के पास बैठा और विश्राम करने लगा। सहसा, नौजवान की आंखों के सामने चमक चौंधी, फिर चली, फिर एक चमक चौंधी, फिर चली गई, जिस से चारों ओर हल्की हल्की रोशनी से जगमगा उठा। नौजवान तुरंत उठ खड़ा हुआ और चारों ओर नजर दौड़ते हुए रोशनी की जगह ढूंढ़ने लगा। उसे पता चला था कि 'स्वी मू' नाम के पेड़ पर कई पक्षी अपने कड़े चोंच को पेड़ पर मार मार कर उस में पड़े कीट निकाल रही हैं, जब एक बार वे पेड़ पर चोंच मारती, तो पेड़ में से तेज चिनगरी चौंध उठी। यह देख कर नौजवान के दिमाग में यह विचार आया कि कहीं आग के बीज इस पकार के पेड़ में छिपे हुए तो नहीं? उस ने तुरंत 'स्वी मू' के पेड़ पर से एक टहनी तोड़ी और उसे पेड़ पर रगड़ने की कोशिश की, सचमुछ पेड़ की शाखा से चिनगरी निकली, पर आग नहीं जल पायी। नौजवान ने हार नहीं मानी, उस ने विभिन्न रूपों के पेड़ की शाखाएं ढूंढ़ कर धीरज के साथ पेड़ पर रगड़ते हुए आजमाइश की, अंत में उसकी कोशिश रंग लायी। पेड़ की शाखा से धुआँ निकला, फिर आग जल उठी, इस सफलता की खुशी में नौजवान की आंखों में आंसू भर आए।
नौजवान गृह स्थल वापस लौटा। वह लोगों के लिए आग की ऐसी बीज लाया था, जो कभी खत्म नहीं होने वाले थे। आग के बीज थे - लकड़ी को रगड़ने से आग निकालने का तरीका। तभी से संसार के मानव को आग का लाभ प्रपट हुआ। अब उन्हें सर्दी से कोई भय न था। इस एक नौजवान की बुद्धिमता और बहादुरी का सम्मान करते हुए लोगों ने उसे अपना मुखिया चुना और उसे 'स्वी रन' यानी आग लाने वाला पुरूष कहते हुए सम्मानित किया।
- रोहित कुमार 'हैप्पी'