आधा-आधा स्वाह : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Aadha-Aadha Swah : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
एक बार की बात है कि एक किसान के खेत में मनमोहिनी-सुन्दर कपास पैदा हुई। कपास को देखकर पुरोहित ने अपने यजमान किसान से कपास मांगी किन्तु किसान बिल्कुल मुकर गया।
कुछ दिनों के उपरान्त अचानक किसान की बेटी की शादी लग गई। किसान ग्रह-लग्न देखने पुरोहित के पास गया। कपास के लिए पुरोहित के मन में पानी अभी तक सूखा न था। उसने ग्रहों की शान्ति के लिए बेदी के चारों स्तम्भों के पास एक-एक बोरी कपास रखने का उपाय बताया। ग्रहों की शान्ति के लिए कपास का दान गुणवाला जान कर किसान भोले-भाव से मान गया। उसने वैसा ही किया।
विवाह के दिन लग्न के समय पर दुल्हे के पक्ष के पुरोहित ने हवन-यज्ञ में तिल-चावल-घी और पता नहीं क्या-क्या फेंकते अत्यन्त चतुराई से कहा
“बेद में बैठे बाह्मण कैसी रखी कपाह।” “चुप रहे बाह्मण आधी-आधी स्वाह।”
करसाण के पुरोहित ने मंत्र पढ़ने की तरह यज्ञ में हवन सामग्री फेंकते उतर दिया। दुल्हे के पक्ष का पुरोहित चुप हो गया, उसे दो बोरी कपास भी मिल जानी थी। उसकी तो लॉटरी लग गई थी। तो जी, इस तरह किसान के पुरोहित ने दो बोरी कपास निकाल ही ली।
(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)