आदर्श चोर : जे.एच.आनन्द
यहूदी धर्मग्रन्थ तालमूद (प्रथम शताब्दी) कथाओं का भी एक महाग्रन्थ है। ये कथाएँ स्पष्ट रूप से बताती हैं कि यहोवा के अनुयायी भी पर्याप्त रूप से संशयवादी थे और उन्होंने अपनी स्वाभाविक जिज्ञासाओं और मानवीय गुणों को दबा नहीं दिया था।
महात्मा ईसा के समकालीन यहूदी धर्मशास्त्रों के महापण्डित तथा प्रजा और राजा, दोनों की श्रद्धा के पात्र गमलीएल नामक एक धर्मगुरु थे। वह यहूदी नियमशास्त्र (तोरह) के आचार्य थे।
एक बार वह यहूदी राजा को यहोवा (यहूदी ईश्वर का नाम) की दस आज्ञाओं की व्याख्या समझा रहे थे। आठवीं आज्ञा यह थी : तू चोरी न करना।
राजा ने मुसकराकर कहा, “रब्बी (गुरु) गमलीएल, पर उपदेश कुशल बहुतेरे!”
गमलीएल ने राजा से आश्चर्य से कहा, “महाराज, मैं आपकी बात नहीं समझा।”
“आप तो जानते ही हैं कि हमारी आदि माता हव्वा की रचना किस प्रकार हुई थी। जब आदि पुरुष आदम सो रहा था, तब यहोवा ने उसकी एक पसली चुरा ली, और उस चुराई हुई पसली से हव्वा का निर्माण किया।”
“महाराज, यह ईश-निन्दा है,” गुरु बोले।
“मैं यहोवा की निन्दा नहीं कर रहा हूँ। पर क्या मैंने गलत कहा?”
यहूदी धर्म शास्त्रों के महापण्डित गमलीएल निरुत्तर थे। वह घर लौट आए। उन्होंने यहूदी धर्म महासभा के सत्तर सदस्यों की आपात्कालीन बैठक बुलायी। ये सत्तर महापुरुष भी शास्त्रों के पण्डित थे। पर वे भी नहीं जानते थे कि राजा के कथन का किस प्रकार उत्तर दिया जाए।
जब गुरु गमलीएल की पुत्री को पिता की चिन्ता का कारण ज्ञात हुआ, वह महल में राजा के पास पहुँची। उसने राजा से कहा, “महाराज, मुझे न्याय चाहिए।”
“न्याय!”
“जी हाँ। कल रात मेरे घर में एक चोर घुस आया। उसने मेरा चाँदी का दीया चुरा लिया। लेकिन वह उसके स्थान पर सोने का दीया छोड़कर चलता बना।”
राजा ने गगनभेदी अट्टहास किया।
गुरु गमलीएल की पुत्री राजा की हँसी के बन्द होने की प्रतीक्षा करती रही। उसने अपनी माँग दुहरायी, “महाराज, मुझे न्याय चाहिए।”
राजा ने मुसकराकर कहा, “काश कि मेरे महल में प्रतिदिन ऐसा आदर्श चोर आए!”
गुरु गमलीएल की पुत्री ने गम्भीर स्वर में कहा, “महाराज, आपका कथन शत-प्रतिशत उचित है। हमारे परमेश्वर यहोवा ने यही तो किया था। उसने आदिपुरुष आदम से एक पसली ले ली। पर बदले में उसको एक सुन्दर नारी दे दी!”