आदमी का जन्म : क़ुरआन-कथा

Aadami Ka Janm : Quran-Katha

हज़रत आदम और हौवा का ज़न्नत से पतन हुआ तो वे सरअन्दीप पहाड़ में आ पड़े और अपनी भूल पर बहुत ही लज्जित हुए। चालीस दिन तक कुछ भी न खाया और दो सौ वर्ष तक बराबर चीख-चीखकर रोते रहे । उनकी आँखों के आँसुओं से नहरें बह निकलीं और उनके किनारे लौंग, जायफल, खजूर के वृक्ष उत्पन्न हो गए।उनका रोना सुनकर ही जिब्राईल आसमान से उतरे और उनके साथ मिलकर रोने लगे। जिब्राईल के रोने की आवाज़ और फरिश्तों ने सुनी तो वे सब भी रोने लगे।आख़िर में जिब्राईल खुदा के पास गए और आदम का सारा वृत्तान्त कहकर उन्हें क्षमा करने की सिफारिश की।तब खुदा ने यह वाक्य–'हे प्रभो! हमने अपने जीवनों पर अन्याय किया और यदि तू हमें (अब) क्षमा न करके हम पर दया न करेगा तो हम बहुत नुकसान उठाएँगे!' आदम के दिल में डाल दिया। आदम ने सच्चे मन से इस वाक्य को कहा और वे तीन सौ वर्ष तक बिलकुल सिर झुकाए खड़े रहे। तब खुदा ने उन्हें क्षमा करके उनकी तोबा स्वीकार कर ली।

हज़रत आदम को तोबा स्वीकार करने के बाद खुदा ने कहा-"जब कोई पैग़म्बर हमारी ओर से कोई इल्हामी पुस्तक लाए तो तुम उस पर विश्वास लाना, क्योंकि जो विश्वास लाएँगे उनके लिए दोज़ख का कुछ भी भय और दुख न होगा, और जो विश्वास नहीं करेंगे और हमारी पुस्तकया हमारे पैग़म्बर को झुठलाएँगे, वे सब दोज़ख की आग में फेंक दिए जाएंगे। यह नहीं होगा कि उनके रोने-चिल्लाने पर उन्हें निकाल लिया जाएगा, फिर तो वे हमेशा उसमें ही रहेंगे!"

इस बार हज़रत आदम हिन्द में उतरे। उनके बदन पर ज़न्नत के वृक्षों के कुछ पत्ते लगे रह गए थे। जिस-जिस वृक्ष पर उन पत्तों की परछाईं पड़ी वे सब चन्दन के सुगन्धमय वृक्ष बन गए।अब हज़रत को पृथ्वी पर आकर खाने-कमाने की फिक्र पड़ी तो जिब्राइल सात टुकड़े लोहे के और थोड़ी-सी अग्नि दरोगा-दोज़ख से माँगकर लाए, ताकि हज़रत आदम को लुहार का काम सिखला दें; लेकिन जब हज़रत ने सीखने के लिए अग्नि को हाथ में लिया तो गर्मी की अधिकता से उनका हाथ जल उठा और उन्होंने उसे तुरन्त ज़मीन पर पटक दिया। ज़मीन पर गिरते ही अग्नि स्वयं ही फिर दोज़ख में पहुंच गई। जिब्राईल उसको फिर दोज़ख से लाए, लेकिन फिर वैसा ही हुआ।इसी तरह सात बार अग्नि लाई गई और वह फिर दोज़ख में पहुंच गई। फिर जिब्राईल ने चकमक से आग निकालकर हज़रत आदम को कृषि सम्बन्धी औजार बनाने सिखलाए और जन्नत से दो बैल और एक मुट्ठी गेहूँ ला दिए, जिससे वे खेती करके अपना पेट भर सकें। हज़रत आदम ने ज़मीन जोतनी शुरू की तो बैलों ने चलने में आनाकानी की। इस पर हज़रत नाराज़ हो उठे और एक-एक लकड़ी दोनों बैलों को झुका दी। बैलों ने कहा-"अगर तुझे अक्ल होती तो जन्नत से ही क्यों निकाला जाता?" बैलों की बात सुनकर हज़रत नाराज़ हो भाग लिए, लेकिन जिब्राईल ने आकर उन्हें समझाया और अल्लाह ने उसी दिन से बैलों की जबान पर मुहर लगा दी। फिर उन्होंने वे गेहूँ पृथ्वी पर बिखेर दिए तो पृथ्वी ने सात घड़ी में उन्हें उगा और पकाकर कहा कि मैं कमज़ोरी के कारण मज़बूर हूँ, नहीं तो इससे भी जल्दी पकाकर तैयार कर देती।वे उन गेहुँओं को कच्चा ही खाना चाहते थे, लेकिन जिब्राईल ने आकर रोटी बनाने की तरकीब बतलाई। अल्लाह ने आदम पर 13-14-15 तारीख का रोज़ा अनिवार्य रूप से रखने की जिम्मेवारी सौंपी।फिर खुदा ने जिब्राईल से कहा कि तुम अपने पंख आदम की कमर पर मल दो, जिससे सन्तानउत्पत्ति हो । जिब्राईल ने ऐसा ही किया तो बहुत-सी सन्तानें उत्पन्न हो गईं।

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