Aadami Ka Devtava (Hindi Story) : Ramdhari Singh Dinkar
आदमी का देवत्व (कहानी) : रामधारी सिंह 'दिनकर'
सृष्टि के आरम्भिक दिनों की बात है। देवता तो कुछ-कुछ पुराने हो चले थे, किन्तु आदमी
बस अभी-अभी तैयार हुआ था, यहाँ तक कि उसके बदन की मिट्टी भी अभी ठीक से सूख न पायी
थी। मगर, आदमी तो आरंभ से ही आदमी था। उसने इधर-उधर नजर दौड़ायी और देखा कि देवता
छोटे हों या बड़े, उनकी इज्जत खूब है। फिर उसने अपनी ओर देखा और वह सोचने लगा कि देवताओं
से भला मैं किस बात में कम हूँ। और तब भी लोग मुझे महज आदमी समझते हैं और कहते हैं कि मैं
देवता नहीं हूँ।
एक दिन जब ब्रह्मा को घेरकर सभी देवता बैठे हुए थे, आदमी भी वहाँ जा
पहुँचा और सब के सामने उसने यह घोषणा कर दी कि मिट्टी का होने से मैं कुछ
अपदार्थ नहीं हो गया। आज से आप लोग नोट कर लें कि किसी-न-किसी तरह का
देवता मैं भी हूँ।
देवताओं ने आदमी की घोषणा बड़े ही ध्यान से सुनी और सोच-समझ कर यह निर्णय
दे दिया कि आदमी को देवता समझने में हमें कोई आपत्ति नहीं है।
मगर, आपत्ति उन्हें थी और यह निर्णय उन्होंने अपनी खुशी से नहीं दिया था।
असल में, उन्हें मालूम था कि आदमी की रचना ब्रह्मा ने किन तत्वों से की
है। वे स्वर्ग में यह भी सुन चुके थे कि ब्रह्मा जिस नये जीव की रचना कर
रहे हैं, वह बड़ा ही उपद्रवी होगा। वह मिट्टी का होने पर भी समुद्र पर राज
करेगा, बिना पाँख का होने पर भी आकाश में उड़ेगा और जो ताकतें पहाड़ और वन
को हिलाती रहती हैं, धरती और जंगल को जलाती रहती हैं और जिनकी चिग्घाड़ से
स्वर्ग भी काँपने लगता है, वे सब इसके कब्जे में रहेंगी। समुद्र में जो
रत्न हैं, वन में जो फल और जीव हैं तथा धरती के भीतर जो धन है, उन सब का
उपभोग इस नये प्राणी के लिए सुरक्षित रखा गया है। यही नहीं, बल्कि, देवता
जिसे सूँघकर रह जाते हैं, उसे यह नया जीव हाथ से छू सकेगा, दाँतों से
चबाकर अपने उदर में डाल सकेगा और इस प्रकार, जिन चीजें को देखकर देवता
ललचाकर रह जाते हैं, वे चीजें आदमी के लहू में समा जाएँगी, मन और बुद्धि
में जा बसेंगी, साँस का सौरभ बन जाएँगी।
और, यद्यपि, यह मरनेवाला होगा, मगर बड़े-बड़े अमर इसके भय से भागते
फिरेंगे। नहीं तो एक दिन यह उन्हें पकड़कर चटकल में भरती कर सकता है।
देवताओं ने सोचा, अरे, अब तो यह हमारा भी गुरू निकलेगा।
देवता, आरंभ से ही, आदमी से डरे हुए थे, इसलिए आदमी ने जब यह कहा कि एक
तरह का देवता मैं भी हूँ, तब वे उसके इस दावे को झुठला नहीं सके। मगर, वे
छिपे-छिपे इस घात में लगे रहे कि इस नये जीव को बेबस कैसे किया जाए।
निदान, यह निश्चित हुआ कि आदमी का देवत्व चुरा लिया जाए। और इस विचार के
आते ही देवता खुशी से उछल पड़े। और सोये हुए आदमी का देवत्व चुराकर
देवताओं ने उसे अपने पास कर लिया।
लेकिन, फिर तुरंत उनका चेहरा उतर गया, क्योंकि एक देवता ने सवाल किया,
‘‘अगर आदमी इतना धूर्त और सयाना है, इतना प्रतापी और
शक्तिशाली है, तो फिर उसका देवत्व चुराकर रखा कहाँ जाएगा ? आकाश और पाताल,
आदमी तो दोनों जगह घूमेगा। रह गयी धरती, उस पर तो आदमी का रात-दिन का वास है।
और अगर यह कहो कि कोई देवता उसे अपनी मुट्ठियों में बन्द किये रहे, तो
हम में ऐसा कौन है, जो इस नये जीव से दुश्मनी मोल ले ? कहीं ऐसा न हो कि
क्रोध में आकर आदमी स्वर्ग पर ही धावा बोल दे !’’
देवताओं को उदास देखकर ब्रह्मा बोले, ‘‘अच्छा, लाओ, आदमी का देवत्व मेरे हाथ में दे दो।’’
देवत्व ब्रह्मा के हाथ में आया, उन्होंने अपनी मुट्ठी बन्द की और फिर चीज
उसमें से गायब हो गयी। देवता दंग रह गये।
तब ब्रह्मा ने कहा, ‘‘चिन्ता न करो। मैंने आदमी के देवत्व को एक ऐसी जगह पर छिपा
दिया है, जहाँ उसे खोजने की बात आदमी को कभी
सूझेगी ही नहीं। मैंने यह प्रकाश स्वयं उसी के हृदय में छिपा दिया
है।’’