आदम : क़ुरआन-कथा

Aadam : Quran-Katha

कहते हैं कि जब खुदा ज़मीन-आसमान बना चुका तो एक दिन उसने अपने दरबार में फरिश्तों के सामने हज़रत आदम के उत्पन्न करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन फरिश्तों को यह प्रस्ताव पसन्द न आया और उन्होंने इसका विरोध करना आरम्भ कर दिया। उन्होंने कहा-"हम आपका हरेक काम हर समय करने के लिए तैयार हैं और आपको किसी भी नये प्राणी की आवश्यकता नहीं है तो आप आदम को पैदा करने का विचार मन में क्यों लाते हैं? क्या आप जमीन पर ऐसे जीव को पैदा करना चाहते हैं, जो वहाँ झगड़े-फसाद करके खून बहाए? हमारी राय में तो आपको आदम के बनाने की कोई जरूरत नहीं है। आगे जैसी आपकी मरजी!" ।

फरिश्तों ने प्रस्ताव स्वीकार न किया तो अल्लाह मियाँ जरा नाराज़ हो गए और उन्होंने गम्भीर होकर उन सबसे कहा-"देखो, इस समय आदम का पैदा करना बहुत जरूरी है। आदम को पैदा करने के पीछे क्या रहस्य है, यह तुम नहीं समझ सकते। आदम को जरूर पैदा किया जाएगा।" इतना कहकर उन्होंने जिब्राईल फरिश्ते को हुक्म दिया-"जाओ, ज़मीन पर से एक मुट्ठी मिट्टी ले आओ, जिससे हम आदम को बनाएँ।"

जिब्राईल ने ज़मीन के पास जाकर उससे एक मुट्ठी मिट्टी माँगी, लेकिन ज़मीन ने साफ मना कर दिया। उसने कहा-"अल्लाह की कसम, आदम पैदा होकर मेरे ऊपर खून-खराबा करेगा, इसलिए मैं हरगिज़ भी अपनी मिट्टी न दूंगी। जाओ, तुम खुदा से यही कह देना।"

जमीन की बात सुनकर जिब्राईल लौट आए और सारा वृत्तान्त अल्लाह को सुना दिया।

इस बार अल्लाह ने 'मेकाईल' फरिश्ते को ज़मीन से मिट्टी लाने के लिए भेजा, लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिल सकी। फिर अल्लाह ने 'इस्त्रफील' को खूब समझा-बुझाकर भेजा, लेकिन ज़मीन ने इनको भी वही उत्तर देकर टरका दिया और यह जैसे खाली हाथ गए थे, वैसे ही आकर खड़े हो गए। इस्त्रफील भी खाली आकर खड़े हो गए तो अल्लाह मियाँ को रोष हो आया। उन्होंने कहा-"आज ज़मीन इतना दुःसाहस कैसे कर रही है ? और इन सब फरिश्तों को भी क्या हो गया है ? हर कोई जो ज़मीन से मुट्ठी-भर मिट्टी ला सके?"

अल्लाह की बात सुनकर फरिश्ता ‘इज़राईल' खड़ा हुआ और उसने कहा-"जो आपका हुक्म है मैं उसे अभी दम-भर में बजा लाता हूँ।" और इज़राईल ने फौरन ज़मीन के पास आकर कहा-"एक मुट्ठी मिट्टी फौरन हाज़िर करो!"

दूसरे फरिश्ते के लौट जाने से ज़मीन कुछ मुँह-लगी हो गई थी। उसने उन्हें भी वही रूखा जवाब देकर टालना चाहा, लेकिन इज़राईल ने उसे बड़े ज़ोर की धमकी दी-"ऐ ज़मीन! तू या तो चुपचाप मुझे मुट्ठी-भर मिट्टी दे दे, नहीं तो मैं तुझे कल को ही उठाकर ले जाऊँगा। इस घमण्ड में न रहना कि तीन फरिश्ते आकर लौट गए। मेरा नाम इज़राईल है, मैं अपने खुदा के हुक्म को किसी भी तरह नहीं टाल सकता।" बस, फिर क्या था-ज़मीन काँपने लगी और चुपचाप एक मुट्ठी मिट्टी लेकर उनके हवाले कर दी। इज़राईल मिट्टी लेकर खुशी-खुशी खुदा के पास आए। खुदा उनके इस कार्य से बहुत खुश हुए और पुरस्कार में मल्कुल्मौत (जान निकालने वाला फरिश्ता) का औहदा उन्हें दे दिया। फिर वह मिट्टी जहाँ आजकल मक्का नामक नगर है वहाँ रखी गई, और उस पर अल्लाह ने आठ वर्ष तक वर्षा की तो वह शुद्ध हो गई। उसको खुदा ने चालीस दिन तक अपने हाथ से गूंधकर आदम का पुतला बनाया। कुछ मिट्टी बची रह गई तो उससे खुदा ने खजूर का वृक्ष बना दिया। फिर वह पुतला चालीस वर्ष तक ज़मीन पर ही पड़ा रहा। चालीस वर्ष बाद खुदा ने उसमें जान डालने का हुक्म दिया तो उसकी रूह' को तबाक में रखकर, नूर से ढाँका गया और उस तबाक को सत्तर हज़ार फरिश्ते आदम के पास लाए, फिर रूह को कहा गया-"ऐ रूह! तू इस पुतले में प्रविष्ट हो जा।"

रूह ने कहा-“हे अल्लाह ! मैं प्रकाशवान हूँ और यह पुतला अन्धकारमय है; फिर मैं इसमें कैसे प्रवेश करूँ?"

खुदा ने कहा-"नफरत के साथ घुस जा!"

और रूह नाक के रास्ते से पुतले के दिमाग़ में पहुँच गई और लगभग दो सौ वर्ष दिमाग में ही घूमती रही। दो सौ वर्ष दिमाग में घूमने के बाद वह शरीर में जिस-जिस स्थान पर जाती रही वहाँ-वहाँ ही रगो-रेशा, माँस और लोहू बनता गया। जब आधा शरीर ठीक हो गया तो हज़रत आदम ने आँखें खोल दी और दोनों हाथ पृथ्वी पर टेककर उठना चाहा, लेकिन शीघ्र ही गिर पड़े इसलिए खुदा ने कुरान में कहा है कि इन्सान जल्दबाज है।

जब यह प्राण-प्रतिष्ठा हो रही थी तो एक अपूर्व आनन्द उमड़ा पड़ रहा था जिसे देखने के लिए सातों आसमान के फरिश्ते एकत्र हो गए थे।

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