आधे-अधूरे बच्चे : ब्रिटेन की लोक-कथा

Aaadhe-Adhure Bachche : British Folk Tale

जूली अकसर प्रभु से प्रार्थना करती थी, 'हे प्रभु! मुझे दो बच्चे चाहिए - एक बेटा और एक बेटी बेटा लंबा-तगड़ा हो और बेटी सुंदर व दूर दृष्टिवाली हो।' वह अकसर अपनी इस इच्छा को प्रकट करती रहती। एक दिन प्रभु ने उसकी पुकार सुन ली और उसके घर बेटा व बेटी दोनों का जन्म हो गया। लेकिन दोनों बच्चे आधे-अधूरे थे। बेटा हृष्ट-पुष्ट था लेकिन नेत्रहीन । वहीं बेटी बहुत सुंदर और तेज नेत्रवाली थी तो उसके पैर बहुत दुर्बल थे। उसने बेटे का नाम जॉन और बेटी का नाम जेनी रखा। अपने बच्चों की ऐसी हालत देखकर जूली बहुत उदास होती और कई बार अकेले में रोती भी थी। वह अकसर स्वयं से कहती, 'मेरे बाद मेरे इन अपाहिज बच्चों की देखभाल कौन करेगा?' यही बातें सोचते-सोचते वह तनावग्रस्त रहने लगी। एक दिन बेहद तनाव में वह घर में बैठी कुछ सोच रही थी। तभी तेज बरसात हुई। बरसात को देखकर पता नहीं जूली को क्या सूझा कि वह घर से बाहर निकलने लगी। माँ को निकलते देख जेनी बोली, 'माँ, आप इतनी तेज बारिश में कहाँ जा रही हैं? मुझे साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि नदी में बाढ़ आ रही है। आप कहीं मत जाओ।' तनावग्रस्त जूली की आँखों में आँसू थे। उसने बेटी की बात पर ध्यान नहीं दिया और बाहर निकल गई।

कई दिन बीत गए, पर जूली नहीं लौटी। बच्चे अपनी माँ की याद में और कमजोर हो गए। पड़ोस के लोग उन बच्चों से हमदर्दी दिखाकर उन्हें दो वक्त की रोटी दे देते थे। भाई-बहन आपस में कहते रहते, 'माँ जरूर वापस आएगी। वह हमें ऐसी हालत में छोड़कर नहीं जा सकती।' लेकिन माँ नहीं लौटी।

एक दिन गाँव में एक परदेसी आया। उसने रात भर ठहरने के लिए पूरे गाँव से एक दिन का ठिकाना माँगा। पर किसी ने उस अजनबी को रुकने के लिए नहीं कहा। मौसम खराब था। उस दिन भी बारिश आ रही थी। अचानक परदेसी ने इन भाई-बहनों का दरवाजा खटखटाया। नेत्रहीन जॉन ने दरवाजा खोला और प्रेम से उसे वहाँ रुकने के लिए कहा। दोनों भाई-बहन को देखकर परदेसी बोला, 'तुम बहुत अच्छे बच्चे हो। तुमने खराब मौसम में मेरी मदद की है। बताओ, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ?' इस पर जेनी बोली, 'अंकल, हमारी माँ हमें छोड़कर पता नहीं कहाँ चली गई है। हम दोनों का इस दुनिया में कोई नहीं है।' लड़की की बात सुनकर परदेसी बहुत दुःखी हुआ। तभी अचानक उसे ध्यान आया कि कुछ दिन पहले उसने जंगल में एक औरत को रोते हुए देखा था। रोते हुए वह औरत कहती जाती थी, 'प्रभु, मेरी बेटी पैरों से चल-फिर नहीं सकती और बेटा देख नहीं सकता। उन दोनों की मदद करना। हालाँकि उन दोनों के पास एक विशेष ताकत है। मेरा बेटा बहुत बलवान् है और बेटी की दृष्टि बहुत तेज ।' परदेसी की बात सुनकर दोनों भाई-बहन खुशी से उछल पड़े और बोले, 'वह हमारी माँ ही है।'

पर कुछ ही देर में दोनों उदास हो गए। उन्हें उदास देखकर परदेसी बोला, 'क्या हुआ ?' जेनी बोली, 'हम अपनी माँ के पास कैसे जाएँगे? मैं चल फिर नहीं सकती और भाई देख नहीं सकता।' इस पर परदेसी बोला, 'यह कोई मुश्किल बात नहीं है। तुम दोनों एक-दूसरे का सहारा बनो।' तुम भाई की आँखें बनो और भाई तुम्हारे पैर। बस इसके बाद तुम जो चाहे वो पा सकते हो।' परदेसी की बातों से दोनों खुश हो गए।

अगले दिन परदेसी वहाँ से चला गया। जॉन ने कहीं से एक बैलगाड़ी का इंतजाम किया। तेज दृष्टिवाली जेनी और नेत्रहीन जॉन उसमें बैठ गए। जेनी जॉन को रास्ता बताती जाती और जॉन उसके बताए अनुसार चलता जाता।

आखिर वे परदेसी के अनुसार बताई गई झोंपड़ी के पास पहुँच गए। वहाँ पर एक बूढ़ी सी औरत खड़ी थी। जेनी उस औरत को देखकर बोली, 'कहीं यही तो हमारी माँ नहीं।' जॉन बोला, 'मुझे भी ऐसा ही लगता है।' बूढ़ी औरत उनके मन की बात समझ गई और बोली, 'बच्चो, मैं तुम्हारी माँ जैसी ही हूँ। आ जाओ, आज रात तुम यहीं रुक जाओ और कल अपने गंतव्य की ओर चले जाना।'

उस औरत को ऐसे देखकर जॉन बोला, 'जेनी, मुझे लगता है कि रोते-रोते और अकेले रहते-रहते माँ हमें भूल गई है।'

'हाँ, मुझे भी ऐसा ही लगता है, जॉन।'

इसके बाद उन्होंने अपनी बैलगाड़ी एक ओर खड़ी की और उस बूढ़ी महिला की झोंपड़ी में आ गए। बूढ़ी औरत ने उन दोनों को स्वादिष्ट खाना बनाकर खिलाया। जॉन और जेनी दोनों ने उस बूढ़ी औरत को अपनी माँ के बारे में बताया। लेकिन उसे कुछ याद नहीं आया। उनकी बातें सुनकर वह चुप रही। अचानक वह जॉन की ओर देखते हुए बोली, 'क्या हुआ बेटा, तुम देख नहीं सकते क्या?' जॉन निराश होकर बोला, 'हाँ, मैं देख नहीं सकता और जेनी चल नहीं सकती। इसके पैर कमजोर हैं।'

यह सुनकर बूढ़ी औरत बोली, 'तुम दोनों कब तक एक-दूसरे का सहारा बनोगे। मुझे इस जंगल में रहते हुए कई साल हो गए हैं। इसी दौरान मैं जंगल की गुणकारी जड़ी-बूटियों के बारे में भी जान गई हूँ। तुम दोनों यहीं रुको। मैं ऐसी जड़ी-बूटी लाती हूँ, जिनका लेप करने से आँखें और पैर दोनों ठीक हो जाएँगे ।'

इसके बाद वह जंगल से जड़ी-बूटी तोड़ने के लिए चली गई। जेनी बोली, 'भाई, मुझे तो ध्यान नहीं, माँ कैसी दिखती थी, पर शायद ऐसी ही दिखती होगी न।' जॉन बोला, 'जेनी, मैं देख नहीं सकता, पर इतना जरूर कह सकता हूँ कि यही हमारी माँ है। बस वक्त की मार ने इसे हमारी याद भुला दी है। वह भी इसे याद आ जाएगी।'

थोड़ी देर में बूढ़ी औरत जड़ी-बूटी लेकर वापस आई। उसने उनका लेप बनाया और जॉन की आँखों में लगा दिया। फिर उसने दूसरा लेप बनाकर उसे जेनी के पैरों में लगा दिया। कुछ देर बाद ही जॉन को धुँधला-धुँधला दिखाई देने लगा और जेनी के पैरों में शक्ति आ गई। थोड़ी देर बाद ही दोनों बिल्कुल स्वस्थ हो गए।

अगले दिन बूढ़ी औरत बोली, 'बच्चो, अब तुम अपनी माँ को आराम से ढूँढ़ सकते हो।' जॉन आगे बढ़कर बोला, 'माँ, हमारी माँ तो हमें मिल गई। अब हम उसके पास ही रहेंगे।' बूढ़ी औरत हैरानी से झोंपड़ी में देखती हुई बोली, 'कहाँ है तुम्हारी माँ ?' इस पर जेनी बूढ़ी औरत के गले से लिपटकर बोली, 'यहाँ है हमारी माँ।' जेनी की बात सुनकर बूढ़ी औरत की आँखों से आँसू बहने लगे।

जेनी और जॉन ने वहीं रहना शुरू कर दिया और एक दिन सचमुच बूढ़ी औरत की याद वापस आ गई। इसके साथ ही उसे अपने जेनी और जॉन भी याद आ गए। जब उसने उन दोनों को बिल्कुल स्वस्थ पाया तो वह बोली, 'प्रभु ने मेरी सारी मनोकामनाएँ पूरी कर दीं।'

इसके बाद वे वापस अपने घर लौट आए और खुशी-खुशी रहने लगे।

(साभार : रेनू सैनी)

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