एक संत और एक विद्यार्थी : चीनी लोक-कथा

A Monk and a Student : Chinese Folktale

एक बार एक स्कूल में एक संत पढ़ाया करते थे। उनको सबसे अच्छा यही लगता था कि वह कुछ थोड़ा सा खा लें और फिर थोड़ी देर के लिये सो जायें। पर वह हमेशा ही पढा,ने से पहले इतना सारा खा लेते थे कि उनको हिलना भी मुश्किल हो जाता था।

खाने के बाद और पढ़ाने से पहले वह सो जाते और फिर तब तक सोते रहते जब तक कि उनके पढ़ाने के खत्म होने की घंटी नहीं बज जाती।

उसी स्कूल में एक बहुत ही गरीब आदमी का लड़का ली भी पढ़ता था। एक दिन उसने उन संत जी से पूछा — “गुरू जी, मैं आपसे एक बात पूछूँ? आप हमारी पढ़ाई के हर घंटे में क्यों सोते हैं?”

संत ने बिना किसी झिझक के जवाब दिया — “मेरे दोस्त, मुझे ऐसे ही अच्छा लगता है। इस थोड़े से समय में बुद्ध जी से मिल लेता हूँ, कुछ उनके उपदेश सुन लेता हूँ।

इसी लिये मैं जितना ज़्यादा से ज़्यादा हो सके सोने की कोशिश करता हूँ ताकि मैं उनके ज़्यादा से ज़्यादा उपदेश सुन सकूँ।”

ली यह सुन कर चुप रह गया पर उसने यह बात अपने दिमाग में रख ली।

एक बार ली का पिता बीमार पड़ गया तो ली को रात में उसकी देखभाल करनी पड़ी।

अगले दिन सुबह जब वह स्कूल गया तो सुबह सुबह ही वहाँ जा कर सो गया और इतनी गहरी नींद सोया कि उसको तो पढ़ाई खत्म होने की घंटी भी सुनायी नहीं पड़ी जबकि घंटी सुन कर वह संत जाग गया था।

संत ने जब देखा कि ली अभी भी सो रहा है तो वह बहुत गुस्सा हुआ। उसने उसके कान पकड़े और चिल्लाया — “ओ कबूतर के बच्चे, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी क्लास में सोने की?”

ली बोला — “गुरू जी, बस ज़रा मेरी आँख लग गयी तो मैंने देखा कि मैं बुद्ध जी के साथ था और उनके उपदेश सुन रहा था।”

संत बोला — “और बुद्ध जी क्या कह रहे थे?”

ली बोला — “उन्होंने कहा कि तुम्हारा गुरू कौन है मैंने उसे ज़िन्दगी में कभी देखा नहीं।”

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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