एक बेवकूफ और उड़ने वाला पानी का जहाज़ : रूसी लोक-कथा
A Fool and a Flying Ship : Russian Folk Tale
बहुत पुरानी बात है कि रूस के किसी गाँव में एक किसान अपनी पत्नी और तीन बेटों के साथ रहता था। किसान के दो बड़े बेटे तो बहुत अक्लमन्द थे परन्तु उसके तीसरे सबसे छोटे बेटे को सभी लोग संसार का सबसे बड़ा बेवकूफ कहते थे।
वह बच्चों की तरह भोला भाला और सीधा था। उसने अपने जीवन में न तो कभी किसी को कष्ट पहुँचाया था और न ही कभी उसने कोई उतार चढ़ाव देखा था।
किसान पति पत्नी को अपने दोनों बड़े बेटों से तो बड़ी बड़ी आशाऐं थीं परन्तु उस बेवकूफ को तो अगर रोटी भी मिल जाये तो उसकी खुशकिस्मती। पर कभी कभी आदमी सोचता कुछ और है और होता कुछ और है। कैसे? यह एक ऐसी ही कहानी है।
एक दिन रूस के राजा ज़ार ने अपने राज्य में दूर दूर तक यह ढिंढोरा पिटवा दिया कि वह अपनी बेटी किसी ऐसे आदमी को देगा जो उसे उड़ने वाला जहाज़ ला कर देगा। उस जहाज़ को समुद्र में भी चलना चाहिये और आसमान में उड़ने के लिये उसके पंख भी होने चाहिये।
यह सन्देश किसान के बेटों ने भी सुना तो उसके दोनों अक्लमन्द बेटों ने सोचा “ज़ार की बेटी से शादी करने का यह हमारे लिये सुनहरा मौका है।” और वे दोनों उसी दिन उड़ने वाले जहाज़ की खोज में चल दिये।
उनके पिता ने उनको आशीर्वाद दिया। अपने कपड़ों में से निकाल कर उन्हें अच्छे अच्छे कपड़े पहनने के लिये दिये।
उनकी माँ ने उनके रास्ते के लिये बढ़िया बढ़िया खाना बना कर रखा। कई तरह के पके गोश्त रखे और मक्का की बढ़िया शराब रखी। जब वे जाने लगे तो वह दूर तक उन्हें छोड़ने भी गयी और तब तक हाथ हिलाती रही जब तक कि वे आँखों से ओझल नहीं हो गये।
इस तरह वे खुशी खुशी अपना भाग्य आजमाने चले। उनके साथ क्या हुआ यह तो पता नहीं क्योंकि अभी तक उनकी कोई खबर नहीं आयी है।
पर जब उस बेवकूफ बेटे ने अपने भाइयों को जाते हुए देखा तो उसका मन भी अच्छे अच्छे कपड़े पहनने, अच्छा खाना खाने तथा अच्छी शराब पीने को करने लगा।
उसने अपनी माँ से कहा — “माँ, मैं भी उड़ने वाले जहाज़ की खोज में जाऊँगा। मुझे भी अच्छा खाना और मक्का की शराब दो। मैं भी ज़ार की बेटी से शादी करूँगा।”
माँ ने उसे झिड़का — “बेवकूफ कहीं का, तुझको क्या आता है। तू तो अगर घर से बाहर भी जायेगा न, तो भालू के चंगुल में फँस जायेगा। और अगर भालू से किसी तरह से बच भी गया तो भेड़िया तुझे खा जायेगा।”
मगर उस बेवकूफ को तो रट लगी हुई थी — “मैं तो जा रहा हूँ माँ मैं तो जा रहा हूँ।”
उसकी माँ उसकी इस रट से परेशान हो गयी तो उसने यही ठीक समझा कि उसको भी उस उड़ने वाले जहाज़ की खोज में भेज दिया जाये ताकि घर में शान्ति रहे।
सो उसने उसके रास्ते में खाने के लिये सूखी काली रोटी के कुछ टुकड़े और पीने के लिये एक थर्मस में पानी रख दिया। वह उसको बाहर तक छोड़ने भी नहीं आयी, उसने उसको घर के दरवाजे से ही विदा कर दिया।
और जैसे ही वह घर से बाहर निकला वह घर का दरवाजा बन्द कर के घर के जरूरी कामों में लग गयी। उस बेवकूफ ने वह थैला अपने कन्धे पर लटकाया और गाता हुआ चल दिया।
उसे इस बात का बहुत दुख था कि उसे उसके भाइयों की तरह उसकी माँ ने अच्छा खाना, मक्का की शराब आदि खाने पीने को नहीं दिया। वह उसको बाहर तक छोड़ने भी नहीं आयी पर फिर भी वह अपनी धुन में गाता हुआ मस्त हो कर चलता चला जा रहा था।
उसको काली रोटी के मुकाबले में सफेद रोल ज़्यादा अच्छे लगते थे मगर यात्रा में सबसे जरूरी बात यह थी कि पास में कुछ खाना होना चाहिये बस, न कि इस बात की कि वह खाना क्या था सो वह उसके पास था ही।
हरी हरी घास, नीले नीले आसमान को देख कर वह खुशी से गाना गाता हुआ आगे बढता जा रहा था कि कुछ दूर जाने पर उसे एक बहुत बूढ़ा दिखायी दिया। उसकी कमर झुकी हुई थी, लम्बी सफेद दाढ़ी थी और आँखें अन्दर को धँसी हुई थीं।
उस बूढे आदमी ने कहा — “नमस्ते बेटा।”
उस बेवकूफ ने भी जवाब दिया — “नमस्ते दादा जी।”
बूढ़े ने पूछा — “तुम कहाँ जा रहे हो बेटा?”
बेवकूफ ने जवाब दिया — “अरे, क्या आपने सुना नहीं कि ज़ार ने सारे राज्य में यह ढिंढोरा पिटवाया है कि जो कोई उसको उड़ने वाला पानी का जहाज़ ला कर देगा उसी से वह अपनी बेटी की शादी करेगा?”
“तो क्या तुम वैसा जहाज़ बनाना जानते हो?”
“नहीं, मैं तो नहीं जानता।”
“तब फिर तुम क्या करोगे?”
“भगवान ही मालिक है।”
“अगर ऐसी बात है तो आओ यहाँ बैठते हैं। साथ साथ कुछ खायेंगे और फिर थोड़ा आराम करेंगे। मैं बहुत थक गया हूँ। लाओ दिखाओ क्या है तुम्हारे थैले में? वही खाते हैं।”
“दादा जी, मेरे पास जो कुछ है वह सब तो मुझे आपको दिखाते हुए भी शर्म आ रही है क्योंकि हालाँकि वह मेरे लिये तो ठीक है परन्तु किसी मेहमान के लिये ठीक नहीं है।”
“कोई बात नहीं बेटा, हमको भगवान पर भरोसा रखना चाहिये और जो कुछ वह दे उसे ही प्रेम सहित ले लेना चाहिये।”
बेवकूफ ने सकुचाते हुए अपना थैला खोला तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। सूखी काली रोटी के टुकड़ों की जगह उस थैले में ताजा पकाया गया माँस और मुलायम सफेद रोल महक रहे थे।
वही उसने उस बूढ़े आदमी को खाने के लिये दिये तो वह बूढ़ा बोला — “देखा, भगवान अपने सीधे सादे आदमियों को कितना प्यार करता है हालाँकि तुम्हारी माँ तुमको इतना प्यार नहीं करती। उसने तुम्हारा हिस्सा तुमको नहीं दिया पर भगवान तो सबको प्यार करता है। लाओ, अब मक्का की शराब का स्वाद चखा जाये।”
जब उस बेवकूफ ने अपना थर्मस खोला तो उसमें तो पानी की जगह मक्का की बढ़िया शराब निकली। सो उस बेवकूफ और बूढ़े ने उस जंगल में खूब मंगल किया। एक दो गाने भी साथ साथ गाये।
फिर बूढ़ा बोला — “अब तुम मेरी बात ध्यान से सुनो। इसी जंगल में दूर तक चले जाओ और जो तुम्हें सबसे बड़ा पेड़ खड़ा दिखायी दे वहाँ उसके सामने तीन बार क्रास का निशान बनाना।
फिर अपनी छोटी कुल्हाड़ी से उसे छूना और फिर पीछे की तरफ गिर जाना। और तब तक पैर पसार कर वहीं लेटे रहना जब तक कोई आ कर तुम्हें जगाये नहीं।
तब तुम देखोगे कि तुम्हारे लिये उड़ने वाला पानी का जहाज़ तैयार है। उसमें बैठ जाना और फिर जहाँ चाहो वहाँ उड़ना। लेकिन एक बात का और ख्याल रखना, रास्ते में जो भी तुम्हें मिले तुम उन सबको अपने जहाज़ में जरूर बिठा लेना।”
उस बेवकूफ ने बूढ़े को धन्यवाद दिया और उससे विदा ले कर जंगल की तरफ चल दिया।
आगे जा कर जो उसे सबसे बड़ा पेड़ सबसे पहले दिखायी दिया उसके सामने उसने तीन बार क्रास का निशान बनाया, अपनी छोटी कुल्हाड़ी से उसे छुआ और फिर पीछे की तरफ पैर पसार कर लेट गया। आँखें बन्द कर लीं और सो गया।
कुछ ही देर में उसको लगा कि कोई उसको उसकी बाँह हिला कर जगा रहा है। वह जाग गया। उसकी कुल्हाड़ी उसके पास ही पड़ी थी। अब वह बड़ा पेड़ तो वहाँ से गायब हो गया था और उसकी जगह एक छोटा सा जहाज़ उड़ने के लिये तैयार खड़ा था।
उस बेवकूफ ने कुछ भी नहीं सोचा विचारा और तुरन्त ही जहाज़ में कूद कर बैठ गया। उसके बैठते ही जहाज़ उठा और पेड़ों के ऊपर से हो कर उड़ चला।
यह जहाज़ उसी तरह आसमान में भी उड़ रहा था जैसे पानी में
चलता है। उड़ते उड़ते उसने देखा कि एक आदमी ने पानी से भीगी
जमीन पर कान लगा रखा है। वह बेवकूफ ऊपर से ही चिल्लाया
— “नमस्ते चाचा जी, आप यहाँ क्या कर रहे हैं?”
उस आदमी ने जवाब दिया — “नमस्ते बेटा, दुनियाँ में क्या हो रहा है मैं वही सब सुनने की कोशिश कर रहा हूँ।”
“आप मेरे जहाज़ में आ जाइये।”
वह आदमी भी उड़ने वाले पानी के जहाज़ में बैठना चाहता था सो वह भी उस जहाज़ में बैठ गया और वे दोनों गाना गाते गाते उड़ चले।
कुछ दूर आगे जाने पर उन्होंने देखा कि एक आदमी एक टाँग से चल रहा है और दूसरी टाँग उसने अपने गले से बाँधी हुई है। बेवकूफ ने उससे पूछा — “नमस्ते बड़े चाचा जी, आप इस तरह एक टाँग पर कूद कूद कर क्यों चल रहे हैं?”
उस आदमी ने कहा — “बेटा, अगर मैं अपनी दूसरी टाँग भी खोल दूँ तो मैं सारी दुनियाँ को एक छलाँग में नाप सकता हूँ।”
बेवकूफ ने कहा — “आइये, तो मेरे साथ मेरे जहाज़ में आ जाइये।” वह आदमी उस जहाज़ में बैठ गया और वे सब फिर गाना गाते हुए चले।
कुछ दूर आगे जाने पर उन्होंने देखा कि एक आदमी बन्दूक लिये खड़ा है और निशाना साध रहा है। लेकिन वह निशाना किस पर लगा रहा है यह उनको पता नहीं चल सका।
वह बेवकूफ ऊपर से ही चिल्लाया — “नमस्ते मामा जी, आप किस पर निशाना लगा रहे हैं? मुझे तो आस पास कोई चिड़िया भी नजर नहीं आ रही।”
वह आदमी बोला — “अगर कोई ऐसी चिड़िया हुई भी जो तुम्हें नजर आ गयी तो मैं उसे अपनी बन्दूक का निशाना नहीं बनाऊँगा। जो चिड़िया या जानवर यहाँ से हजारों मील दूर है वही मेरा निशाना है।”
बेवकूफ ने कहा — “आइये, तो आप हमारे साथ आ जाइये।” वह आदमी भी सबके साथ उस जहाज़ में बैठ गया और वे सब लोग फिर ज़ोर ज़ोर से गाना गाते हुए उड़ चले।
आगे बढ़ने पर उन्होंने देखा कि एक आदमी एक बोरा भरी डबल रोटी लिये उदास बैठा है। जहाज़ को नीचे उतारते हुए उस बेवकूफ ने कहा — “नमस्ते बड़े मामा जी, आप इतने उदास क्यों हैं?”
“मुझे खाने के लिये डबल रोटी चाहिये बहुत भूख लगी है।”
“मगर आपकी पीठ पर तो पूरे का पूरा बोरा बँधा है डबल रोटी का।”
“इतना थोड़ा सा? यह तो मेरा एक कौर भी नहीं है।”
“अच्छा तो आइये मेरे साथ मेरे जहाज़ में बैठ जाइये।” वह आदमी भी उस जहाज़ में बैठ गया और उन सबके गाने की आवाज और तेज़ हो गयी।
कुछ दूर आगे जाने पर उन्होंने देखा कि एक आदमी एक झील के चारों ओर चक्कर काट रहा है। बेवकूफ बोला — “नमस्ते ताऊ जी, आप क्या खोज रहे हैं?”
“बेटा, मुझे पीने के लिये कुछ चाहिये पर मुझे पानी नहीं दिखायी दे रहा है।”
“मगर आपके सामने तो पानी की झील भरी पड़ी है, आप उसमें से पानी पी लीजिये।”
“क्या? यह पानी? यह पानी तो मेरा गला तर करने के लिये भी काफी नहीं है।”
“अच्छा तो फिर आप मेरे साथ बैठ कर मेरे इस जहाज़ की सैर करें।” और वह आदमी भी उस जहाज़ में बैठ गया और फिर वे सब कोरस गाते हुए आगे बढ़े।
उड़ते उड़ते उन्होंने देखा कि एक आदमी जंगल की तरफ लकड़ी का गठ्ठर लिये जा रहा है। उस बेवकूफ ने उससे पूछा — “बड़े ताऊ जी नमस्ते, आप यह लकड़ी जंगल की तरफ क्यों लिये जा रहे हैं?”
वह आदमी बोला — “बेटा, यह कोई साधारण लकड़ी नहीं है। अगर इस लकड़ी को चारों तरफ बिखेर दिया जाये तो लकड़ी के हर टुकड़े से एक भारी सेना निकल आयेगी।”
बेवकूफ बोला — “तो फिर आइये और हमारे जहाज़ में सैर कीजिये।” और वह आदमी भी जहाज़ में चढ़ गया और जहाज़ फिर से गाते हुए लोगों को ले कर उड़ चला।
कुछ दूर आगे जाने पर उन्होंने देखा कि एक आदमी एक बोरे में भूसा भर कर लिये जा रहा है। बेवकूफ ने जहाज़ पास लाते हुए उस आदमी से पूछा — “नमस्ते छोटे चाचा जी, आप यह भूसा कहाँ ले जा रहे हैं?”
“गाँव को।”
“क्यों क्या गाँव में भूसे की कमी हो गयी है?”
“नहीं नहीं, यह कोई मामूली भूसा नहीं है। यह करामाती भूसा है। अगर इस भूसे को किसी गर्म जगह पर फैला दिया जाये तो उसी समय वहाँ ठंडा होना शुरू हो जायेगा और बर्फ जमनी शुरू हो जायेगी।”
“आहा, तो आइये, मेरे जहाज़ में आपके लिये बहुत जगह है।”
“बड़ी कृपा होगी।” कह कर वह भी जहाज़ में बैठ गया और वह जहाज़ गाती हुई टोली को ले कर फिर आगे बढ़ चला।
उसके बाद उन्हें और कोई नहीं मिला और वे धीरे धीरे ज़ार के महल के ऊपर पहुँच गये। वहाँ पहुँच कर वे नीचे उतरे और अपने जहाज़ का लंगर डाल दिया।
ज़ार उस समय शाम का खाना खा रहा था। उसने उनके गानों की तेज़ आवाजें सुनी तो खिड़की से झाँका तो देखता क्या है कि एक उड़ने वाला पानी का जहाज़ उसके महल के कम्पाउंड में खड़ा है।
उसने अपने नौकरों को बुलाया और यह जानने के लिये बाहर भेजा कि यह उड़ने वाला जहाज़ कौन ले कर आया है और कौन ये खुशी के गाने गा रहा है।
नौकर कम्पाउंड में आ कर जहाज़ को आश्चर्य से देखने लगा। उसने यह भी देखा कि जहाज़ में बैठे सभी आदमी बहुत ज़ोर ज़ोर से हँसी मजाक कर रहे थे।
पर वे सभी साधारण किसान और मजदूर जैसे लग रहे थे सो वह बिना कोई सवाल पूछे ही वापस लौट गया और ज़ार को बताया कि उस जहाज़ में कोई भी भला आदमी नहीं था बल्कि सभी किसान और मजदूर जैसे लोग थे।
ज़ार को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था कि वह अपनी एकलौती बेटी को किसी गँवार किसान के पल्ले बाँध दे सो वह सोच में पड़ गया कि किस तरह इन लोगों से छुटकारा पाया जाये।
उसने सोचा कि “मैं इनको कोई ऐसा काम दे देता हूँ जो ये कर ही न सकें और अपनी जान की भीख माँगते नजर आयें। इस तरह मैं अपनी बेटी की शादी इन गँवारों से करने से भी बच जाऊँगा और मुझे यह जहाज़ भी मुफ्त में मिल जायेगा।”
ऐसा सोच कर ज़ार ने अपने एक नौकर को बुलाया और उस बेवकूफ के पास जा कर उससे यह कहने को कहा कि “ज़ार इस समय खाना खा रहे हैं। ज़ार के खाना खत्म होने से पहले तुम्हें अमृत जल लाना होगा।”
अब जिस समय ज़ार यह सब अपने नौकर से कह रहा था वह तेज़ सुनने वाला यह सब सुन रहा था।
जब उसने यह बात उस बेवकूफ को बतायी तो बेवकूफ तो यह सुन कर परेशान हो गया “अब मैं क्या करूँ? ज़ार के खाना खत्म होने से पहले तो क्या मैं तो सौ साल में भी वह जल नहीं खोज सकता और ज़ार को वह जल अपना खाना खत्म होने से पहले ही चाहिये।”
पर तेज़ चलने वाला बोला — “तुम चिन्ता न करो मेरे दोस्त। मैं करूँगा तुम्हारा यह काम।”
इतने में ज़ार का नौकर आया और उसने उस बेवकूफ को ज़ार का हुक्म सुनाया। बेवकूफ लापरवाही से बोला — “ज़ार को बोलो उसका यह काम हो जायेगा।”
ज़ार के नौकर को यह सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस लड़के पर तो इस बात का कोई असर ही नहीं हुआ पर फिर वह वहाँ से चला गया।
तेज़ चलने वाले ने अपना दूसरा पैर अपनी गर्दन से खोला और एक अँगड़ाई ले कर भाग लिया। वह तो तुरन्त ही आँखों से ओझल हो गया।
हमारे कहने में देर हो सकती है, पर उसके अमृत जल को लाने में देर नहीं हो सकती।
पलक झपकते ही उसने शीशी में अमृत जल भरा और सोचने लगा “मैं तो तुरन्त ही पहुँच जाऊँगा इसलिये मैं ज़रा यहाँ आराम कर लेता हूँ।” सो वह पास में लगी एक हवाई चक्की के पास बैठ गया और सो गया।
शाही खाना खत्म होने वाला था और उस तेज़ चलने वाले का कोई पता नहीं था। उस समय जहाज़ में न कोई गाना गा रहा था और न कोई हँस रहा था। सभी अमृत जल का इन्तजार कर रहे थे।
इतने में तेज़ सुनने वाला जहाज़ से कूदा और गीली जमीन पर कान रख कर सुनता हुआ बोला — “यह भी क्या आदमी है। जनाब हवाई चक्की के नीचे सो रहे हैं । मुझे उसके खर्राटों की आवाज साफ सुनायी पड़ रही है। उसके सिर के पास एक मक्खी भी भिनभिनाती भी सुनायी पड़ रही है।”
निशानेबाज बोला — “मैं आया।” और वह तुरन्त ही जहाज़ के ऊपर खड़ा हो कर अपनी बन्दूक सँभालने लगा। उसने मक्खी का निशाना साधा और बन्दूक चला दी।
बन्दूक की गोली की आवाज से वह तेज़ चलने वाला जाग गया और पल भर में जहाज़ पर हाजिर हो गया।
बेवकूफ ने उससे अमृत जल ले कर ज़ार के नौकर को दे दिया और नौकर उसे ज़ार के पास ले गया। ज़ार अभी खाना खा ही रहा था इसलिये उसकी यह इच्छा पूरी हुई।
ज़ार ने सोचा “ये किस तरह के किसान हैं कि इन्होंने यह इतना मुश्किल काम कर लिया? अब इनको कोई दूसरा मुश्किल काम दिया जाये।”
उसने अपने नौकर को फिर बुलाया और जहाज़ के कप्तान को यह कहने को कहा — “अगर तुम इतने ही चतुर हो तो तुम्हारी भूख भी ज़्यादा होनी चाहिये। तुमको और तुम्हारे दोस्तों को एक बार में बानवै भुने बैल तथा चालीस भट्टियों में जितनी डबल रोटी बनायी जा सकती हैं वह सब खानी होंगी।”
तेज़ सुनने वाले ने यह सन्देश सुना और बेवकूफ को बताया तो वह बेवकूफ अपना सिर पकड़ कर बैठ गया और बोला — “मैं तो एक बार में पूरी एक डबल रोटी भी नहीं खा सकता तो चालीस भट्टियों में बनी डबल रोटी कैसे खा पाऊँगा?”
ज़्यादा खाने वाले ने कहा — “तुम केवल अपनी ही भूख की ही चिन्ता क्यों कर रहे हो? मेरी भूख की चिन्ता क्यों नहीं कर रहे? तुम केवल अपनी ही चिन्ता न करो भाई मेरा भी तो कुछ ख्याल करो।
वह सब तो मेरे लिये एक कौर के समान है। आज खाने की जगह पर कुछ नाश्ता ही सही। यह भी मेरे लिये खुशी की बात होगी।”
इतने मे ज़ार का नौकर आया और उसने ज़ार का सन्देश सुनाया तो बेवकूफ ने कहा — “ठीक है ठीक है, तुरन्त खाना ले आओ फिर सोचेंगे कि हमें क्या करना है।”
कुछ ही देर में बानवै भुने साबुत बैल और चालीस भट्टियों में पकी डबल रोटी वहाँ हाजिर थी। सभी साथियों के बैठते बैठते ही उस ज़्यादा खाना खाने वाले ने काफी खाना खत्म कर दिया।
ज़्यादा खाना खाने वाले ने उस नौकर से कहा — “यह क्या भाई? अगर तुमने खाना खिलाने के बारे में सोचा ही था तो ठीक से खाना खिलाना चाहिये था। यह तो मेरा नाश्ता भी नहीं हुआ। चलो हम भी याद रखेंगे कि ज़ार के महल में हमें खाना नहीं मिला।”
ज़ार को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना सारा खाना उन सभी ने कैसे खा लिया पर वह भी अभी हार मानने वाला नहीं था। फिर उसने उस बेवकूफ को चालीस बैरल जिनमें हर एक बैरल में चालीस बालटी शराब थी, पीने के लिये कहा।
तेज़ सुनने वाले ने फिर यह सन्देश बेवकूफ को बताया तो वह बोला — “मैंने तो आज तक अपने जीवन में एक बार में एक बालटी से ज़्यादा शराब कभी नहीं पी फिर ये चालीस बैरल ...।”
ज़्यादा पीने वाले ने कहा — “दुखी न हो मेरे दोस्त, यह काम तुम मेरे ऊपर छोड़ दो। आज मुझे थोड़ी सी शराब पीने का मौका मिला है तो उसे क्यों गँवाया जाये।”
ज़ार के नौकरों ने चालीस बैरल ला कर रखे और हर बैरल में चालीस बालटी शराब थी। वह प्यासा आदमी चालीस घूँटों में ही वह सारी शराब पी गया और बोला — “बस, इतनी सी शराब? मैं तो अभी भी प्यासा हूँ।”
यह सब देख कर ज़ार ने अपने नौकरों से कहा कि वे उसको जा कर कहें — “अब उस बेवकूफ से कहो कि वह शादी के लिये तैयार हो जाये। उसको स्नान घर दिखा दो ताकि वह ताजा हो सके। मगर उस कमरे में जो लोहे का टब है उसे खूब गर्म लाल कर दो ताकि जैसे ही वह उसमें वह पैर रखे वह मर जाये।”
तेज सुनने वाले ने ज़ार का यह सन्देश ज्यों का त्यों उस बेवकूफ को सुना दिया। बेवकूफ के पैरों तले तो जमीन ही खिसक गयी और सारा हँसी मजाक रुक गया।
भूसे वाला आदमी बोला — “क्या हुआ दोस्त, चिन्ता क्यों करते हो, मैं किस दिन काम आऊँगा?”
राजा के नौकरों ने नहाने के टब को खूब गर्म किया और सोचा कि अब तो यह बेवकूफ मर ही जायेगा मगर उस भूसे वाले आदमी ने बेवकूफ के अन्दर जाते ही अपना कुछ भूसा उस टब के अन्दर फैला दिया और कुछ पलों में ही उस टब का उबलता पानी बर्फ जैसा ठंडा हो गया।
वे लोग भट्टी के ऊपर ही आराम से काँपते हुए लेटे रहे। सुबह को नौकरों ने दरवाजा खोला तो उन्होंने देखा कि बेवकूफ और उस का साथी भट्टी पर लेटे गाना गा रहे हैं।
उन्होंने जा कर जब यह ज़ार को बताया तो ज़ार बहुत गुस्सा हुआ और मुठ्ठियाँ भींच कर बोला — “ओह, मैं तो इस आदमी से तंग आ गया। लगता है मैं इससे नहीं जीत सकता।
आखिरकार मुझे अपनी बेटी इसको देनी ही होगी पर उससे जा कर बोलो कि अगर वह मेरी बेटी से शादी करना ही चाहता है तो उसे कम से कम मेरी बेटी की रक्षा का साधन, यानी सेना, तो रखनी ही चाहिये न।”
तेज़ सुनने वाले ने ज़ार की यह बात उस बेवकूफ को बतायी तो बेवकूफ बोला — “दोस्तो, कई बार आप सबकी सहायता से मैंने अपनी मुश्किलों को दूर किया है पर अबकी बार लगता है कि मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा।”
लकड़ी के गठ्ठर वाला आदमी बोला — “तुम कैसे आदमी हो? मुझे तो तुम भूल ही गये। इस छोटे से काम के लिये मैं हाजिर हूँ।”
ज़ार के नौकरों ने जब बेवकूफ को ज़ार का हुक्म सुनाया तो वह बेवकूफ बोला — “अच्छा, अच्छा, सुन लिया। मगर अपने राजा से कहना कि अगर अबकी बार उसने अपनी बेटी की शादी मुझसे नहीं की तो मैं उसकी बेटी को जबरदस्ती उठा कर ले जाऊँगा।”
नौकर ने उस बेवकूफ का यह सन्देश भी जा कर ज़ार को दे दिया और इधर जहाज पर सभी हँसने और गाने लगे। रात को जब सब सो गये तो वह आदमी अपनी लकड़ियाँ ले कर इधर उधर गया और उनको फैला दिया।
जैसे ही वह कोई लकड़ी रखता वैसे ही वहाँ एक बड़ी सेना प्रगट हो जाती। कोई भी उन सेनाओं के सिपाहियों को नहीं गिन सकता था। उन सेनाओं में पैदल तथा कई प्रकार के बन्दूक वाले सिपाही सुन्दर नयी चमकीली पोशाक पहने खड़े थे।
सुबह को जब ज़ार उठा और उसने खिड़की से झाँका तो अपने आपको एक बहुत बड़ी सेना से घिरा हुआ पाया। वह बेवकूफ उस सेना का सेनापति था जो अपने जहाज में बैठा हँसी मजाक कर रहा था।
अबकी बार डरने की बारी ज़ार की थी। तुरन्त ही उसने अपने नौकरों के हाथ बेवकूफ को हीरे जवाहरात तथा वेशकीमती पोशाकों की भेंट भेजी और अपनी बेटी की शादी के लिये उसको निमन्त्रित किया।
उस बेवकूफ ने भी अपने सबसे सुन्दर कपड़े पहने और राजकुमारी के सामने राजकुमार बन कर आ खड़ा हुआ।
राजकुमारी तो उसको देखते ही मोहित हो गयी। ज़ार और उसकी पत्नी दोनों ही उस बेवकूफ को अपना दामाद बना कर खुश थे। उसी दिन उन दोनों की शादी हो गयी और वे दोनों खुशी से रहने लगे।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)