लघुकथाएँ (भाग-1) : ख़लील जिब्रान

Laghukathayen (Part-1) : Khalil Gibran

स्वत्व के साथ

मैं मानसिक रुग्णालय के उद्यान में टहल रहा था. वहां मैंने एक युवक को बैठे देखा जो तल्लीनता से दर्शनशास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा था. वह युवक स्वस्थ प्रतीत हो रहा था और उसका व्यवहार अन्य रोगियों से बिलकुल अलग था. वह यकीनन रोगी नहीं था.
मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उससे पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
उसने मुझे आश्चर्य से देखा. जब वह समझ गया कि मैं डॉक्टर नहीं हूँ तो वह बोला:
“देखिये, यह बहुत सीधी बात है. मेरे पिता बहुत प्रसिद्द वकील थे और मुझे अपने जैसा बनाना चाहते थे.”
“मेरे अंकल का बहुत बड़ा एम्पोरियम था और वह चाहते थे कि मैं उनकी राह पर चलूँ”.
“मेरी माँ मुझमें हमेशा मेरे मशहूर नाना की छवि देखतीं थीं”.
“मेरे बहन चाहती थी कि मैं उसके पति की कामयाबी को दोहराऊँ”.
“और मेरा भाई चाहता था कि मैं उस जैसा शानदार एथलीट बनूँ”.
“और यही सब मेरे साथ स्कूल में, संगीत की कक्षा में, और अंग्रेजी की ट्यूशन में होता रहा – वे सभी दृढ़ मत थे कि अनुसरण के लिए वे ही सर्वथा उपयुक्त और आदर्श व्यक्ति थे.”
“उन सबने मुझे एक मनुष्य की भांति नहीं देखा. मैं तो उनके लिए बस एक आइना था.”
“तब मैंने यहाँ भर्ती होने का तय कर लिया. आखिर यही एक जगह है जहाँ मैं अपने स्वत्व के साथ रह सकता हूँ”.

मेजबान

'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।'

करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा

'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।'

भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।

खोज

एक हजार वर्ष पहले की बात है, लेबनान की एक ढलान पर दो दार्शनिक आकर मिले । एक ने दूसरे से पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो ?”
दूसरे ने उत्तर दिया, “मैं एक यौवन के झरने की तलाश में जा रहा हूँ । मुझे लगता है कि उसका स्त्रोत इन्हीं पहाड़ियों के बीच कहीं है । मुझे कुछ ऐसे लिखित प्रमाण मिले हैं, जो उसका उद्गम पूर्व की ओर बताते हैं । तुम क्या खोज रहे हो ?”
पहले व्यक्ति ने उत्तर दिया, “मैं मृत्यु के रहस्य की तलाश में हूँ ।”
फिर दोनों दार्शनिकों ने एक-दूसरे के प्रति यह धारणा बना ली कि दूसरे के पास उसके समान महान विद्या नहीं है । वे आपस में बहस करने लगे और एक-दूसरे पर अंधविश्वासी होने का आरोप लगाने लगे ।
दोनों दार्शनिकों के शोर से सारा वातारवरण गूँज उठा । तभी एक अजनबी उधर आ निकला, जो अपने गाँव में महामूर्ख समझा जाता था । जब उसने दोनों को उत्तेजनापूर्ण बहस करते हुए देखा, तो वह थोड़ी देर तक खड़ा उनके तर्कों को सुनता रहा ।
उसके बाद वह उनके निकट आकर बोला, “सज्जनो, ऐसा लगता है कि तुम दोनों वास्तव में एक ही सिद्धात के माननेवाले हो और एक ही बात कह रहे हो । अंतर केवल शब्दों का है । तुममें से एक यौवन के झरने की तलाश कर रहा है और दूसरा मृत्यु के रहस्य को पाना चाहता है । हैं तो दोनों एक ही , परंतु अलग-अलग रुप में तुम्हारे दिमाग में घूमते है ।”
फिर वह अपरिचित यह कहते हुए मुड़ा, “अलविदा संतो !” और वह हँसते हुए वहाँ से चला गया ।
फिर उन में से एक ने कहा, “अच्छा, तो क्यों न अब हम दोनों मिलकर खोज करें ?”

दूसरी भाषा

मुझे पैदा हुए अभी तीन ही दिन हुए थे और मैं रेशमी झूले में पड़ा अपने आसपास के संसार को बड़ी अचरज भरी निगाहों से देख रहा था । तभी मेरी माँ ने आया से पूछा, “कैसा है मेरा बच्चा ?”
आया ने उत्तर दिया, “वह ख़ूब मज़े में है । मैं उसे अब तक तीन बार दूध पिला चुकी हूँ । मैंने इतना ख़ुशदिल बच्चा आज तक नहीं देखा ।”
मुझे उसकी बात पर बहुत गुस्सा आया और मैं चिल्लाने लगा, “माँ यह सच नहीं कह रही । मेरा बिस्तर बहुत सख़्त है और, जो दूध इसने मुझे पिलाया है वह बहुत ही कड़वा था और इसके स्तनों से भयंकर दुर्गंध आ रही है । मैं बहुत दुखी हूँ ।”
परंतु न तो मेरी माँ को ही मेरी बात समझ में आई और न ही उस आया को ; क्योंकि मैं जिस भाषा में बात कर रहा था वह तो उस दुनिया की भाषा थी जिस दुनिया से मैं आया था ।
और फिर जब मैं इक्कीस दिन का हुआ और मेरा नामकरण किया गया, तो पादरी ने मेरी माँ से कहा, “आपको तो बहुत ख़ुश होना चाहिए; क्योंकि आपके बेटे का तो जन्म ही एक ईसाई के रूप में हुआ है ।”
मैं इस बात पर बहुत आश्चर्यचकित हुआ । मैंने उस पादरी से कहा, “तब तो स्वर्ग में तुम्हारी माँ को बहुत दुखी होना चाहिए ; क्योंकि तुम्हारा जन्म एक ईसाई के रुप में नहीं हुआ था ।”
किंतु पादरी भी मेरी भाषा नहीं समझ सका ।
फिर सात साल के बाद एक ज्योतिषी ने मुझे देखकर मेरी माँ को बताया, “तुम्हारा पुत्र एक राजनेता बनेगा और लोगों का नेतृत्व करेगा ।”
परंतु मैं चिल्ला उठा, “यह भविष्यवाणी गलत है; क्योंकि मैं तो एक संगीतकार बनूंगा । कुछ और नहीं, केवल एक संगीतकार ।”
किंतु मेरी उम्र में किसी ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया । मुझे इस बात पर बहुत हैरानी हुई ।
तैंतीस वर्ष बाद मेरी माँ, मेरी आया और वह पादरी सबका स्वर्गवास हो चुका है , (ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे), किंतु वह ज्योतिषी अभी जीवित है । कल मैं उस ज्योतिषी से मंदिर के द्वार पर मिला । जब हम बातचीत कर रहे थे, तो उसने कहा, “मैं शुरु से ही जानता था कि तुम एक महान संगीतकार बनोगे । मैंने तुम्हारे बचपन में ही यह भविष्यवाणी कर दी थी । तुम्हारी माँ को भी तुम्हारे भविष्य के बारे में उसी समय बता दिया था ।”
और मैंने उसकी बात का विश्वास कर लिया क्योंकि अब तक तो मैं स्वयं भी उस दुनिया की भाषा भूल चुका था ।

मोती

एक बार, एक सीप ने अपने पास पड़ी हुई दूसरी सीप से कहा,
“मुझे अंदर ही अंदर अत्यधिक पीड़ा हो रही है । इसने मुझे चारों ओर से घेर रखा है और मैं बहुत कष्ट में हूँ ।”
दूसरी सीप ने अंहकार भरे स्वर में कहा,
“शुक्र है. भगवान का और इस समुद्र का कि मेरे अंदर ऐसी कोई पीड़ा नहीं है । मैं अंदर और बाहर सब तरह से स्वस्थ और संपूर्ण हूँ ।”
उसी समय वहाँ से एक केकड़ा गुजर रहा था । उसने इन दोनों सीपों की बातचीत सुनकर उस सीप से, जो अंदर और बाहर से स्वस्थ और संपूर्ण थी, कहा,
“हाँ, तुम स्वस्थ और संपूर्ण हो; किन्तु तुम्हारी पड़ोसन जो पीड़ा सह रही है वह एक नायाब मोती है ।”

तीन चीटियाँ

एक व्यक्ति धूप में गहरी नींद में सो रहा था । तीन चीटियाँ उसकी नाक पर आकर इकट्ठी हुईं । तीनों ने अपने-अपने कबीले की रिवायत के अनुसार एक दूसरे का अभिवादन किया और फिर खड़ी होकर बातचीत करने लगीं ।
पहली चीटीं ने कहा, “मैंने इन पहाड़ों और मैदानों से अधिक बंजर जगह और कोई नहीं देखी ।” मैं सारा दिन यहाँ अन्न ढ़ूँढ़ती रही, किन्तु मुझे एक दाना तक नहीं मिला ।”
दूसरी चीटीं ने कहा, मुझेभी कुछ नहीं मिला, हालांकि मैंने यहाँ का चप्पा-चप्पा छान मारा है । मुझे लगता है कि यही वह जगह है, जिसके बारे में लोग कहते हैं कि एक कोमल, खिसकती ज़मीन है जहाँ कुछ नहीं पैदा होता ।
तब तीसरी चीटीं ने अपना सिर उठाया और कहा, मेरे मित्रो ! इस समय हम सबसे बड़ी चींटी की नाक पर बैठे हैं, जिसका शरीर इतना बड़ा है कि हम उसे पूरा देख तक नहीं सकते । इसकी छाया इतनी विस्तृत है कि हम उसका अनुमान नहीं लगा सकते । इसकी आवाज़ इतनी उँची है कि हमारे कान के पर्दे फट जाऐं । वह सर्वव्यापी है ।”
जब तीसरी चीटीं ने यह बात कही, तो बाकी दोनों चीटियाँ एक-दूसरे को देखकर जोर से हँसने लगीं ।
उसी समय वह व्यक्ति नींद में हिला । उसने हाथ उठाकर उठाकर अपनी नाक को खुजलाया और तीनों चींटियाँ पिस गईं ।

बिजली की कौंध

एक तूफानी रात में, एक ईसाई पादरी अपने गिरजाघर में था । तभी एक गैर-ईसाई स्त्री उसके पास आई और कहने लगी,
“मैं ईसाई नहीं हूँ । क्या मुझे नर्क की अग्नि से मुक्ति मिल सकती है?”
पादरी ने उस स्त्री के ध्य़ान से देखा अऔर य़ह कहते हुए अत्तर दय़ा,
“नहीं, ईसाई धर्म के अनुसार मुक्ति केवल उन लोगों को ही मिलती है जिनके अनुसार शरीर और आत्मा का शुद्धिकरण करके दीक्षा दी गई है।”
जैसे ही पादरी ने ये शब्द कहे, उसी समय गिरजाघर पर आकाश से तेज गर्जना के साथ बिजली गिरी और उस गिरजाघर में आग लग गई ।
शहर के लोग भागते हुए आए और उस स्त्री को बचा लिया, किंतु पादरी को आग ने अपना ग्रास बना लिया।

परछाई

जून के महीने का एक प्रभात था। घास अपने पड़ोसी बलूत वृक्ष की परछाई से बोली,
‘‘तुम दाएं-बाएं झूल-झूलकर हमारे सुख को नष्ट करती हो।’’
परछाई बोली,
‘‘अरे भाई, मैं नहीं, मैं नहीं ! जरा आकाश की ओर देख तो। एक बहुत बड़ा वृक्ष है जो वायु के झोकों के साथ पूर्व और पश्चिम की ओर सूर्य और भूमि के बीच झूलता रहता है।’’
घास ने ऊपर देखा तो पहली बार उसने वह वृक्ष देखा। उसने अपने दिल में कहा,
‘‘घास ! यह मुझसे भी लम्बी और ऊंची-ऊंची घास ही तो है।’’
और घास चुप हो गई।

उकाव और कौआ

पहाड़ी की एक ऊंची चोटी पर एक कौआ एक उकाव से मिला।
कौए ने उसका अभिवादन किया।
उकाव ने अभिमान से उसकी ओर देखा और धीरे से उसका अभिवादन किया।
कौए ने पूछा, ‘‘आशा है, श्रीमान् जी कुशल से होंगे ?’’
‘‘हूं’’ उकाव बोला, ‘‘हम सकुशल हैं। परन्तु क्या तुम यह नहीं जानते कि हम सब पक्षियों के राजा हैं और राजा से सम्बोधन करने का साहस उस समय तक न करना चाहिए जब तक हम स्वयं ऐसा पसन्द न करें ?’’
कौआ बोला, ‘‘मेरा तो विचार है कि हम सब एक कुटुम्ब से हैं।’
उकाव ने उसकी तरफ बड़ी घृणा से देखा और कहा, ‘‘यह तुझे किसने बताया है कि हम और तुम एक ही कुटुम्ब से हैं ?’’
कौआ बोला, ‘‘तो फिर शायद मुझे श्रीमान को यह जतलाना ही पड़ेगा कि मेरी उड़ान श्रीमान की उड़ान से ऊंची है और मेरी बोली आपकी बोली से सुरीली है और मैं गाकर दूसरे जीवों को आनंद देता हूं और श्रीमान् न किसी को प्रसन्न कर सकते हैं और न आनन्द दे सकते हैं।’’

वेश

एक दिन समुद्र के किनारे सौन्दर्य की देवी की भेंट कुरूपता की देवी से हुई। एक ने दूसरी से कहा, ‘‘आओ, समुद्र में स्नान करें।’’
फिर उन्होंने अपने-अपने वस्त्र उतार लिए और समुद्र में तैरने लगीं।
कुछ देर बाद कुरूपता की देवी समुद्र से बाहर निकली, तो वह चुपके-से सौन्दर्य की देवी के वस्त्र पहनकर खिसक गई।
और जब सौन्दर्य की देवी समुद्र से बाहर निकली, तो उसने देखा कि उसके वस्त्र वहां न थे। नंगा रहना उसे पसन्द न था। अब उसके लिए कुरूपता की देवी के वस्त्र पहनने के सिवा और कोई चारा न था। लाचार हो उसने वही वस्त्र पहन लिये और अपना रास्ता लिया।
आज तक सभी स्त्री-पुरुष उन्हें पहचानने में धोखा खा जाते हैं।
किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे अवश्य हैं, जिन्होंने सौन्दर्य की देवी को देखा हुआ है और उसके वस्त्र बदले होने पर भी उसे पहचान लेते हैं। और यह भी विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि कुछ व्यक्ति ऐसे भी जरूर होंगे जिन्होंने कुरूपता की देवी को भी देखा होगा और उसके वस्त्र उसे उनकी दृष्टियों से छिपा न सकते होंगे।

आवारा

मैं उसे चौराहे पर मिला। वह एक अपरिचित व्यक्ति था; जिसके हाथ में लाठी, शरीर पर एक चादर और चेहरे पर एक अथाह दर्द का अज्ञेय परदा था।
हमारे इस मिलन में गरमी और प्रेम था। मैंने उससे कहा, ‘‘मेरे घर पधारिए और मेरा आतिथ्य स्वीकार कीजिए।’’ और वह मेरे साथ हो लिया।
मेरी पत्नी और बच्चे हमें द्वार पर ही मिल गए। वे सब उससे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए और उसके आने पर फूले न समाए। फिर हम सब एक साथ भोजन के लिए बैठे। हम बहुत प्रसन्न थे और वह भी खुश था, किन्तु मौन। उसका मौन रहस्यपूर्ण था।
भोजन के बाद हम आग के पास आ बैठे। और मैं उससे उसकी यात्राओं की बाबत पूछता रहा।
इस रात और दूसरे दिन उसने हमें बहुत-सी कहानियां सुनाईं। किन्तु यह जो मैं लिख रहा हूं, यह पुस्तक उसके कटु दिनों का अनुभव है। यद्यपि वह स्वयं अत्यन्त कृपालु तथा दयालु था, परन्तु ये कहानियां ! ये तो उसके मार्ग की धूलि और धीरज की कहानियां हैं।
और तीन दिन पीछे जब वह हमसे विदा हुआ तो हमें यह अनुभव नहीं होता था कि अतिथि को विदा किया, वरन् ऐसा मालूम होता था, जैसे हममें से ही कोई बाहर वाटिका में गया है और उसे अभी घर आना है।

बच्चे

तुम्हारे बच्चे तुम्हारी संतान नहीं हैं
वे तो जीवन की स्वयं के प्रति जिजीविषा के फलस्वरूप उपजे हैं
वे तुम्हारे भीतर से आये हैं लेकिन तुम्हारे लिए नहीं आये हैं
वे तुम्हारे साथ ज़रूर हैं लेकिन तुम्हारे नहीं हैं.
तुम उन्हें अपना प्रेम दे सकते हो, अपने विचार नहीं
क्योंकि उनके विचार उनके अपने हैं.
तुमने उनके शरीर का निर्माण किया है, आत्मा का नहीं
क्योंकि उनकी आत्मा भविष्य के घर में रहती है,
जहाँ तुम जा नहीं सकते, सपने में भी नहीं
उनके जैसे बनने की कोशिश करो,
उन्हें अपने जैसा हरगिज़ न बनाओ,
क्योंकि ज़िन्दगी पीछे नहीं जाती, न ही अतीत से लड़ती है
तुम वे धनुष हो जिनसे वे तीर की भांति निकले हैं
ऊपर बैठा धनुर्धर मार्ग में कहीं भी अनदेखा निशाना लगाता है
वह प्रत्यंचा को जोर से खींचता है ताकि तीर चपलता से दूर तक जाए.
उसके हाथों में थामा हुआ तुम्हारा तीर शुभदायक हो,
क्योंकि उसे दूर तक जाने वाले तीर भाते हैं,
और मज़बूत धनुष ही उसे प्रिय लगते हैं.

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