मिस यूगल का साईस : रुडयार्ड किपलिंग

Miss Youghal’s Sais : Rudyard Kipling

मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी।

-एक कहावत

कुछ लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान में कोई रोमांस नहीं है। वे गलत कहते हैं। हमारी जिंदगियों में तो इतना रोमांस होता है जितना हमारे लिए अच्छा हो सकता है। कभी-कभी तो उससे भी ज्यादा।

स्ट्रिकलैंड पुलिस में था और लोग उसे समझते नहीं थे। इसलिए वे उसे संदिग्ध किस्म का आदमी बताते और दूसरी तरफ हो जाते थे। स्ट्रिकलैंड खुद इसके लिए जिम्मेदार था। उसकी यह अलग ही सोच थी कि हिंदुस्तान में पुलिसवाले को यहाँ के बाशिंदों के बारे में उतनी ही जानकारी होनी चाहिए जितनी खुद उन बाशिंदों को। अब, पूरे ऊपरी हिंदुस्तान में बस एक ही आदमी है, जो हिंदू या मुसलमान, खाल साफ करनेवाला या पंडित, जिस रूप में चाहे चल सकता है। गोर कठड़ी से लेकर जामा मसजिद तक देशी बाशिंदे उससे डरते और उसका सम्मान करते हैं। और लोग समझते हैं कि उसमें गायब होने का हुनर है तथा कई प्रेतात्माएँ उसके वश में हैं, जिनसे वह कुछ भी करवा सकता है। लेकिन इससे हिंदुस्तान की सरकार की नजरों में उसका कोई भला नहीं हुआ है।

स्ट्रिकलैंड मूर्ख ही था, जो उसने उस आदमी को अपना आदर्श बनाया और उसकी बेहूदा सोच के मुताबिक ऐसी घटिया जगहों में हाथ-पाँव मारता रहा, जहाँ कोई इज्जतदार आदमी जाने के बारे में सोचेगा भी नहीं-यानी देशी कुली-कबाड़ियों के बीच। उसने इस इल्म को इस अलग ही तरीके से सात साल तक सीखा था, लेकिन लोग उसे सराह नहीं पाए। वह लगातार देशी लोगों के बीच जो कर रहा था, उसमें सूझ-बूझवाला कोई व्यक्ति कभी विश्वास नहीं करेगा। एक बार उसने इलाहाबाद में दीक्षा ली, जब वह छुट्टी पर था। उसे साँसियों के लिजर्ड गीत और हल्ली-हक्क नाच की जानकारी थी, जो एक किस्म का धार्मिक कामोद्दीपक नृत्य है। जब किसी आदमी को यह पता होता है कि कौन लोग कैसे और कब, कहाँ हल्ली-हक्क नृत्य करते हैं तो उसे ऐसा कुछ पता होता है जिस पर घमंड किया जा सकता है। वह सतह से नीचे गया होता है। लेकिन स्ट्रिकलैंड को घमंड नहीं था, हालाँकि एक बार जगाधरी में उसने मृत साँड़ की पेंटिंग में मदद की थी, जिसे किसी अंग्रेज को देखना भी नहीं चाहिए। उसने चाँगरों की चोरोंवाली बोली में महारत हासिल की हुई थी। उसने एक यूसुफजई घोड़ा-चोर को ऐटक के पास अकेले ही धर लिया था और एक सरहदी मसजिद में खड़े होकर एक सुन्नी मुल्ला की तरह नमाज पढ़वाई थी।

उसका सबसे बड़ा कारनामा था अमृतसर में बाबा अटल के बाग में फकीर बनकर ग्यारह दिन रहना और वहाँ बड़े नसीबन हत्याकांड के सुराग तलाशना। लोग ठीक ही कहते थे कि 'स्ट्रिकलैंड आखिर अपने सीनियरों की अयोग्यता उजागर करने के बजाय अपने दफ्तर में बैठकर अपनी डायरी क्यों नहीं लिखता और भरतियाँ क्यों नहीं करता और खामोश क्यों नहीं रहता?' इसलिए नसीबन हत्याकांड का कोई फायदा उसे अपने महकमे में नहीं मिला।

लेकिन, गुस्से के अपने पहले एहसास के बाद वह देशी लोगों की जिंदगी में ताक-झाँक करने की अपनी पुरानी आदत पर लौट आया। जब किसी आदमी को इस खास किस्म के मनोरंजन का चस्का लग जाता है तो वह सारी उम्र उसके साथ रहता है। दुनिया की सबसे सम्मोहक चीज है यह। प्यार भी इसका अपवाद नहीं है। जब कि अन्य लोग दस दिन की छुट्टी में पहाड़ियों पर जाते थे। वहीं स्ट्रिकलैंड उस काम के लिए छुट्टी लेता था, जिसे वह शिकार कहता था। तब वह ऐसा वेश धारण करता, जो उस समय उसे अच्छा लगता। वह साँवली भीड़ में जाता और कुछ समय के लिए गुम हो जाता। वह एक खामोश तबीयत का, गहरी रंगतवाला जवान शख्स था-साधारण, काली आँखोंवाला; और जब वह किसी और चीज के बारे में नहीं सोच रहा होता था तो एक बहुत दिलचस्प साथी होता था। देशी तरक्की को स्ट्रिकलैंड ने जिस नजरिए से देखा था, उस पर उसकी बातें सुनने लायक होती थीं। देशी लोग स्ट्रिकलैंड से नफरत करते थे; मगर उससे डरते भी थे। वह जरूरत से ज्यादा जानता था।

जब यूगल परिवार स्टेशन में आया तो स्ट्रिकलैंड-जैसे कि वह हर काम बहुत गंभीरता से किया करता था—मिस यूगल से प्यार कर बैठा। और वह भी कुछ दिनों बाद उससे प्यार करने लगी, क्योंकि वह उसे समझ नहीं पाई। तब स्ट्रिकलैंड ने यूगल दंपती को इस बारे में बताया। मगर मिसेज यूगल ने कहा कि वह अपनी बेटी को साम्राज्य के सबसे कम वेतनवाले महकमे में नहीं फेंकें गी और बुढ़ऊ यूगल ने इतने ही शब्दों में यह कहा कि वह स्ट्रिकलैंड के तौर-तरीकों व कामों पर भरोसा नहीं करते। वह स्ट्रिकलैंड के शुक्रगुजार होंगे कि वह आइंदा उनकी बेटी से बात या चिट्ठी-पत्री न करे। 'ठीक है।' स्ट्रिकलैंड ने कहा, क्योंकि वह अपनी प्रेमिका की जिंदगी को बोझ नहीं बनाना चाहता था। मिस यूगल से एक लंबी बात करने के बाद उसने इस शगल को बिल्कुल ही छोड़ दिया।

यूगल परिवार अप्रैल में शिमला चला गया।

जुलाई में स्ट्रिकलैंड ने 'बहुत जरूरी निजी काम' से तीन महीनों की छुट्टी ले ली। उसने अपने मकान में ताला लगा दिया हालाँकि प्रांत में एक भी देशी बाशिंदा ऐसा न था, जो एस्त्रीकिन साहब के सामान को हाथ लगाता-और अपने एक बूढ़े रँगरेज दोस्त से मिलने तरणतारण चला गया।

यहाँ आकर उसका कोई अता-पता नहीं रहा। और फिर शिमला मॉल पर मुझे एक साईस मिला, जिसने मुझे यह खास चिट्ठी दी-

प्रिय महोदय,

मेहरबानी से पत्रवाहक को एक डिब्बा चुरुट दें-सुपर्स नं. 1 हो तो बहुत अच्छा। क्लब में ये सबसे ताजा हैं। जब मैं फिर से प्रकट होऊँगा तो इसके पैसे दे दूंगा; लेकिन अभी तो मैं समाज से बाहर हूँ

-आपका,
ई. स्ट्रिकलैंड'

मैंने दो डिब्बे मँगवाए और प्यार के साथ उस साईस को पकड़ा दिए। वह साईस स्ट्रिकलैंड था और वह बूढ़े यूगल की नौकरी कर रहा था और मिस यूगल के घोड़े की देखरेख से जुड़ा था। बेचारा अंग्रेजी धूम्रपान के लिए बेचैन था और जानता था कि काम खत्म होने तक मैं अपना मुँह बंद रखूगा।

बाद में अपने नौकरों से घिरी रहनेवाली मिसेज यूगल ने उन घरों में, जिनमें वह जाती थीं, अपने सबसे आला और खास साईस के बारे में बताना शुरू किया, जो कभी इतना व्यस्त नहीं होता था कि सुबह उठ न सके और नाश्ते की मेज के लिए फूल न तोड़ सके और जो अपने घोड़े के खुरों को लंदन के किसी कोचवान की तरह काला कर देता–सचमुच काला कर देता था। मिस यूगल के घोड़े का साज-सामान गजब का और देखने लायक होता था। स्ट्रिकलैंड-मेरा मतलब है, डल्लू-को उसका इनाम उन प्यारी बातों में मिल जाता था, जो मिस यूगल उससे उस दौरान कहती थी, जब वह घुड़सवारी के लिए जाती थी। उसके माँ-बाप यह देखकर खुश थे कि वह जवान स्ट्रिकलैंड के लिए अपनी सारी मूर्खता को भूल चुकी थी, और वे कहते थे कि वह एक अच्छी लड़की है।

स्ट्रिकलैंड कसम खाकर कहता है कि उसकी नौकरी के वे दो महीने उसके लिए सख्त मानसिक अनुशासन के अभूतपूर्व महीने थे। यह उस छोटी सी सच्चाई से अलग था कि उसके साथी साईसों में से एक की बीवी उससे प्यार कर बैठी और उसने उसे आर्सेनिक जहर देने की कोशिश की; क्योंकि वह उससे कोई वास्ता नहीं रखता था। उसे अपने आपको यह सिखाना पड़ा था कि जब मिस यूगल किसी ऐसे आदमी के साथ घुड़सवारी पर जाए, जो उसके साथ फ्लर्ट करने की कोशिश करे तो वह चुप रहे और उसे मजबूर किया जाता था कि वह कंबल लेकर पीछे-पीछे आए और एक-एक शब्द सुने। और उसे तब अपने गुस्से को काबू में रखना पड़ा था, जब एक पुलिसवाले ने थिएटर की ड्योढ़ी में उसके साथ गाली-गलौज की थी-खासकर तब, जब एक बार एक नायक ने उसे गाली दी थी, जिसे खुद उसने इस्सर जंग गाँव में भरती किया था और इससे भी बदतर तो तब, जब एक जवान मातहत ने जल्दी से रास्ता न देने पर उसे 'सुअर' कहा था।

लेकिन जिंदगी ने उसकी भरपाई भी की थी। उसने साईसों के तौर-तरीकों और उनकी चोरियों का खूब भेद पा लिया था और उसका कहना था कि उसे इतने भेद मिल गए थे कि अगर वह अपने काम पर लग जाता तो पंजाब की आधी आबादी मुजरिम साबित हो जाती। वह नकल-बोन्स खेल का एक सबसे आला खिलाड़ी बन गया था, जिसे सभी झैपानी और कई साईस उस समय खेलते थे, जब वे रात में गेटी थिएटर या गवर्नमेंट हाउस के बाहर इंतजार कर रहे होते थे। उसने तंबाकू पीना सीख लिया था, जो तीन-चौथाई गोबर होता था और उसने गवर्नमेंट हाउस के साईसों के बूढ़े जमादार की अक्लमंदी भरी बातें सुनी थी, जिसके बोल अनमोल हैं। उसने ऐसी बहुत सी चीजें देखी थीं, जिनमें उसे मजा आया था और वह कसम खाकर कहता है कि शिमला को अगर सही से समझना है तो उसे साईसों की नजर से देखना होगा। वह यह भी कहता है कि उसने जो कुछ भी देखा है, अगर वह सब लिखने बैठे तो उसकी खोपड़ी के कई टुकड़े हो जाएंगे।

स्ट्रिकलैंड जब उन नम रातों का दर्द बयाँ करता है, जो उसने संगीत सुनकर और 'बेनमोर' की रोशनियाँ देखकर तथा सिर पर घोड़े का कंबल ओढ़े काटी थीं, जब उसके पैरों की उँगलियाँ वाल्ट्स नृत्य के लिए झनझनाती थीं तो उसे सुनकर मजा-सा आता है।

इन दिनों स्ट्रिकलैंड अपने अनुभवों पर एक छोटी पुस्तक लिख रहा है। वह पुस्तक खरीदने लायक तो होगी ही, उससे ज्यादा छिपाने लायक होगी।

इस तरह उसने वफादारी से इस खिदमत को अंजाम दिया, जैसा कि याकूब ने राहेल के लिए किया था (देखिए बाइबिल, उत्पत्ति—मो.मा.)। और उसकी छुट्टी खत्म ही होने वाली थी कि यह धमाका हुआ। जैसा कि मैं बता चुका हूँ, उसने फ्लर्ट करनेवाले की बातें सुनकर अपने आपको बखूबी काबू में रखा था; लेकिन आखिर में वह आपा खो ही बैठा। एक बार एक बूढ़ा और जाना-माना जनरल यूगल को घुड़सवारी पर ले गया और उससे 'तुम तो प्यारी बच्ची हो' जैसी बातें करके फ्लर्ट करने लगा, जिसे टालना किसी औरत के लिए तो मुश्किल होता है और सुनने में भी वे बातें बेहद पागल कर देनेवाली होती हैं। जो बातें जनरल कह रहा था, उन्हें मिस यूगल का साईस सुन सकता था और वह डर के मारे काँप रही थी। डल्लू-यानी स्ट्रिकलैंड-जब तक इसे बरदाश्त कर सकता था, उसने किया। फिर उसने जनरल की लगाम पकड़ी और बहुत फर्राटेदार अंग्रेजी में उसे नीचे उतरने और चट्टान से नीचे फेंक दिए जाने का न्यौता दिया। अगले मिनट मिस यूगल रोने लगी और तब स्ट्रिकलैंड की समझ में आया कि उसने अपना भेद खोल दिया था और सबकुछ खत्म हो चुका था।

जनरल को तो जैसे दौरा पड़ गया था, जबकि मिस यूगल सिसक-सिसककर वेश बदलने और उस रिश्ते की कहानी बता रही थी, जिसे उसके माता-पिता ने मान्यता नहीं दी थी। स्ट्रिकलैंड को अपने ऊपर बेहद गुस्सा आ रहा था और जनरल पर तो वह और भी गुस्सा था कि उसने उससे ऐसा करवाया। इसलिए, उसने कुछ नहीं कहा, बस घोड़े का सिर पकड़ा और एक तरह की तसल्ली के लिए जनरल की धुनाई करने लगा। लेकिन जब जनरल को सारी कहानी समझ में आ गई और उसे पता चला कि स्ट्रिकलैंड कौन है, तो वह काठी पर बैठा-बैठा हाँफने लगा और हँस-हँसकर ऐसा लोट-पोट हुआ कि गिरते-गिरते बचा। वह बोला कि स्ट्रिकलैंड को तो वी.सी. तमगा मिलना चाहिए, भले ही वह एक साईस का कंबल धारण करने के लिए ही हो। फिर उसने अपने आप पर लानत भेजी और कहा कि कसम से उसकी धुनाई होनी चाहिए। लेकिन, वह इतना बूढ़ा था कि स्ट्रिकलैंड की पिटाई तो नहीं कर सकता था। फिर उसने मिस यूगल को उसके प्रेमी के लिए बधाई दी। इस पूरे मामले का जो बुराईवाला पहलू था, वह जनरल की समझ में ही नहीं आया; क्योंकि वह तो एक नेक बुजुर्ग शख्स था और फ्लर्ट करना उसकी कमजोरी थी। तब वह फिर से हँसा और बोला कि बूढ़ा यूगल तो मूर्ख था। स्ट्रिकलैंड ने घोड़े के सिर को छोड़ दिया और कहा कि अगर जनरल की यही राय है तो उसे उन दोनों की मदद करनी चाहिए। स्ट्रिकलैंड को पता था कि बड़ी-बड़ी उपाधियों और ओहदेवाले लोग यूगल की कमजोरी थे।

"यह तो 40 मिनट की नौटंकी जैसा है।" जनरल ने कहा, "लेकिन भगवान् कसम, मैं जरूर मदद करूँगा, भले ही यह उस धुनाई से बचने के लिए हो, जिसका मैं हकदार हूँ। अपने घर जाओ मेरे साईस, पुलिसन, और जाकर बढ़िया कपड़े पहनो। तब तक मैं जनाब यूगल पर हमला करता हूँ। मिस यूगल, क्या मैं तुमसे कह सकता हूँ कि फटाफट घर पहुँचो और मेरा इंतजार करो?"

लगभग सात मिनट बाद क्लब में धमाल हुआ। कंबल और सिर की रस्सी लिये एक साईस अपने सभी जानकारों से कह रहा था, "भगवान् के लिए मुझे बढ़िया कपड़े दे दो।" वे लोग चूँकि उसे पहचान नहीं पा रहे थे तो कुछ अजीब तमाशे हुए और फिर स्ट्रिकलैंड को एक कमरे में से सोडा पड़े गरम पानी से नहाने को मिल गया; कहीं से कमीज तो कहीं से कॉलर और कहीं से पतलून वगैरह-वगैरह मिल गए। वह क्लब के आधे कपड़े लादे और एक बिल्कुल अजनबी शख्स के टटू घोड़े पर लदा बूढ़े यूगल के घर की तरफ सरपट दौड़ पड़ा। लिलन के बैंगनी और उम्दा कपड़े पहने मेजर उसके आगे था। जनरल ने ऐसा क्या कहा था, यह तो स्ट्रिकलैंड को कभी पता नहीं चला; लेकिन जब वह यूगल के घर पहुँचा तो यूगल ने उसका जोरदार स्वागत किया और बदले हुए डल्लू के समर्पण से प्रभावित मिसेज यूगल में उसके प्रति दयालुता-सी थी। जनरल चहक रहा था और मिस यूगल वहाँ आई तथा इससे पहले कि बुजुर्ग यूगल यह समझ पाता कि वह कहाँ था, माता-पिता की तरफ से रजामंदी ली जा चुकी थी। स्ट्रिकलैंड मिस यूगल के साथ अपने यूरोपीय साज-सामान के लिए तार करने तार घर जा चुका था। आखिरी परेशानी तब आई, जब मॉल पर एक अजनबी ने उस पर हमला कर दिया और चुराए गए टटू घोड़े की बाबत पूछा।

आखिर में स्ट्रिकलैंड और मिस यूगल की शादी इस आपसी समझ के साथ हो गई कि स्ट्रिकलैंड अपनी पुरानी आदतें छोड़ देगा और अपने महकमे के काम से काम रखेगा, जिसमें बहुत अच्छा पैसा है और जो शिमला पहुंचाता है। उस समय स्ट्रिकलैंड के दिल में अपनी पत्नी के लिए इतना प्यार था कि वह अपना वादा तोड़ ही नहीं सकता था। लेकिन यह उसका कड़ा इम्तिहान था, क्योंकि गलियाँ-बाजार और उनकी आवाजें स्ट्रिकलैंड के लिए बहुत मायने रखती थीं और उसे वापस बुलाती रहती थीं कि आओ, अपना घूमना और अपनी खोजें चालू रखो। किसी दिन मैं आपको बताऊँगा कि उसने अपने एक दोस्त की मदद करने के लिए अपना वादा किस तरह तोड़ दिया। उस बात को बहुत दिन हो गए और इस बीच वह उस काम के लिए बेकार-सा हो गया है। वह उस गँवारू बोली को, भिखारियों की खास बोलचाल को, चिह्नों व निशानों को तथा खुफिया धाराओं के बहाव को भूलता जा रहा है, जिसमें आकर किसी को महारत हासिल करनी है तो उसे उन्हें लगातार सीखते रहना होता है। लेकिन वह अपने महकमे में रिटर्न्स को खूबसूरती से फाइल करता है।

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