लघुकथाएँ (भाग-3) : ख़लील जिब्रान-अनुवाद: सुकेश साहनी

Laghukathayen (Part-3) : Khalil Gibran

कोरा कागज

बर्फ से सफेद कागज़ ने कहा, "इसी शुद्ध सफेद रूप में मेरा निर्माण हुआ था और मैं सदैव सफेद ही रहना चाहूँगा। स्याही अथवा कोई और रंग मेरे पास आकर मुझे गंदा करे इससे तो मैं जलकर सफेद राख में बदल जाना पसन्द करूँगा।"
स्याही से भरी दवात ने कागज़ की बात सुनी तो मन ही मन हँसी, फिर उसने कभी उस कागज़ के नज़दीक जाने की हिम्मत नहीं की। कागज़ की बात सुनने के बाद रंगीन पेन्सिल भी कभी उसके पास नहीं आई.
बर्फ-सा सफेद कागज़ शुद्ध और कोरा ही बना रहा...शुद्ध कोरा...और रिक्त।

सफाई

दार्शनिक ने गली के सफाईकर्मी से कहा, "मुझे तुम पर दया आती है, तुम्हारा काम बहुत ही गंदा है।"
मेहतर ने कहा, "शुक्रिया जनाब, लेकिन आप क्या करते हैं?"
प्रत्युत्तर में दार्शनिक ने कहा, "मैं मनुष्य के मस्तिष्क उसके कर्मो और चाहतों का अध्ययन करता हूँ।"
तब मेहतर ने गली की सफाई जारी रखते हुए मुस्कराकर कहा, "मुझे भी आप पर तरस आता है।"

सुख

एक दिन पैगम्बर शरीअ को एक बाग में एक बच्चा मिला। वह दौड़ता हुआ उनके पास आया और बोला, "गुडमार्निग सर!"
"गुडमार्निग टू यू सर!" पैगम्बर ने कहा, "तुम अकेले हो?"
इस पर बच्चा खिलखिलाकर हँसते हुए बोला, "अपनी आया (नर्स) से पीछा छुड़ाने में बहुत देर लगी। अब वह सोच रही होगी कि मैं उन झाड़ियों के पीछे हूँ, पर...मैं...मैं तो यहाँ हूँ।" फिर पैगम्बर की ओर ध्यान से देखते हुए बोला, "आप भी तो अकेले हैं, आपकी आया कहाँ हैं?"
"अ...हाँ, वह एक अलग बात है," पैगम्बर ने कहा, "सच तो यह है कि मैं अक्सर पीछा नहीं छुड़ा पाता, पर अभी जब मैं बगीचे में आया तो वह मुझे झाड़ियों के पीछे ढूँढ़ रही थी।"
बच्चा तालियाँ बजाते हुए किलक उठा, "अच्छा...तो आप भी मेरी तरह जानबूझकर खो गए हैं। इस तरह गुम हो जाना कितना अच्छा लगता है! ...आप कौन हैं?"
"लोग मुझे पैगम्बर शरीअ कहते हैं," उन्होंने उत्तर दिया, "तुम कौन हो?"
"मैं...मैं हूँ," बच्चे ने कहा, "मेरी नर्स मुझे ढूँढ़ रही है और वह नहीं जानती कि मैं कहाँ हूँ।"
तब पैगम्बर ने आकाश की ओर देखते हुए कहा, "मैं भी थोड़ी देर के लिए अपनी नर्स से निकल भागा था लेकिन वह मुझे ढूँढ़ लेगी।"
"मैं जानता हूँ...मैं भी ढूँढ़ लिया जाऊँगा।" बच्चे ने कहा।
तभी बच्चे का नाम लेकर पुकारती एक औरत की आवाज़ सुनाई दी।
"देखा..." बच्चे ने कहा, "मैंने आपसे कहा था, वह मुझे ढूँढ़ लेगी।"
तभी एक और आवाज सुनाई दी, "आप कहाँ हैं, शरीअ?"
देखा मेरे बच्चे, उन्होंने मुझे ढूंढ़ लिया। "पैगम्बर ने कहा फिर आवाज़ की दिशा में मुँह करके उत्तर दिया," मैं यहाँ हूँ। "

विद्वान

प्राचीन शहर अफ्कार में दो विद्वान रहते थे, जो एक दूसरे की विचारधारा को नापसन्द करते और छोटा समझते थे। उनमें से एक ईश्वर के अस्तित्व को नकारता था जबकि दूसरा आस्तिक था।
एक दिन दोनों बाज़ार में मिले और अपने-अपने अनुयायिओं के बीच ईश्वर के अस्तित्व को लेकर आपस में बहस करते हुए झगड़ने लगे। कई घण्टों की कहा-सुनी के बाद अलग हो गए.
उस शाम नास्तिक पहली बार मन्दिर गया और ईश्वर के आगे गिरकर पिछली हठधर्मी के लिए क्षमा मांगते हुए गिड़गिड़ाने लगा। ठीक उसी समय दूसरे विद्वान ने अपनी पूज्य पुस्तकें जला डालीं। अब उसे ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं था।

पीड़ा के बाद

"मेरे पेट में बहुत जोरों का दर्द हो रहा है," एक सीप ने अपने पड़ोस की सीप से कहा, "भीतर कुछ भारी और गोल-सा है, जिसकी वजह से बहुत तकलीफ है।"
"शुक्र है भगवान का, यह दर्द मुझे नहीं है," दूसरी सीप ने घमण्ड भरे अंदाज में कहा, "मैं हर तरह से खुशहाल हूँ!"
वहाँ से गुजर रहे एक केकड़े ने उनकी बातचीत सुनी और खुशहाल सीप से कहा, "यह ठीक है कि तुम हर प्रकार से सुखी हो लेकिन तुम्हारी पड़ोसिन के दर्द का कारण उसके भीतर का एक अत्यधिक सुन्दर मोती है।"

नशा

उस धनी आदमी को अपने पास जमा शराब के भण्डार पर बहुत नाज़ था। उसके पास बहुत पुरानी शराब से भरा एक जग था, जिसे उसने किसी खास मौके के लिए सम्भाल कर रखा हुआ था।
राज्य का गर्वनर उसके यहाँ आया तो उसने सोचा, एक मामूली गवर्नर के लिए इस जग को नहीं खोलना चाहिए.
बिशप का आना हुआ तो उसने मन ही मन कहा, नहीं, मैं जग नहीं खोलूँगा। भला वह इसकी कीमत क्या जाने, उसकी नाक तो इसकी सुगन्ध को भी नहीं महसूस कर पाएगी।
राजा ने आकर उसके यहाँ भोजन किया तो उसने सोचा यह कीमती शराब एक राजा के लिए नहीं है।
यहाँ तक कि अपने भतीजे की शादी पर भी उसने खुद को समझाया-इन मेहमानों के लिए जग खोलना बेकार है।
वर्ष बीतते गए और एक दिन वह मर गया। उस बूढ़े आदमी को भी दूसरे लोगों की तरह दफना दिया गया।
जिस दिन उसे दफनाया गया, पुरानी शराब से भरा जग भी दूसरी शराब के साथ बाहर लाया गया। अड़ोस-पड़ोस के किसानों ने उस शराब का आनन्द लिया, पर किसी को भी शराब की उम्र की जानकारी नहीं थी। उनके लिए तो प्यालों में ढाली जा रही शराब महज शराब थी।

ज़रूरत

सूर्योदय के समय एक लोमड़ी ने अपनी परछाई देखकर कहा, "मुझे आज दोपहर के खाने के लिए एक ऊँट की ज़रूरत होगी।"
उसने सारी सुबह ऊँटों की तलाश में बिता दी। दोपहर को उसकी नज़र फिर अपनी परछाई पर पड़ी तो उसने कहा, "मेरे लिए तो चूहा ही काफी होगा।"

जीवन और मृत्यु

(एक)

मैंने ज़िन्दगी से कहा, "मैं मृत्यु को बोलते हुए सुनना चाहता हूँ।"
तब ज़िन्दगी ने अपने स्वर में परिवर्तन कर अंहकार भरे अंदाज में जोर से कहा, "लो, अब उसे सुनो।"

(दो)
हजारों साल पहले मेरे पड़ोसी ने मुझसे कहा, "मुझे ज़िन्दगी से नफ़रत है, क्योंकि इसमें दुख के सिवा कुछ भी नहीं है।"
और कल कब्रिस्तान से गुजरते हुए मैंने ज़िन्दगी को उसकी कब्र पर नृत्य करते देखा।

मेजबान

(एक)
उन्होंने हमारे सामने सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात बिछा दिए और हमने उनके लिए अपने दिलों के दरवाजे़ खोल दिए.
परन्तु फिर भी वे खुद को मेज़बानों में गिनते हैं और हमें मेहमानों में।

(दो)
मैंने अपने अतिथि को दरवाजे़ पर ही रोकते हुए कहा, " नहीं भीतर आते समय पैर पोंछने की ज़रूरत नहीं है, जाते समय इन्हें पोंछ के जाइएगा।

सूली पर चढ़ते हुए

मैंने लोगों से चिल्लाकर कहा, "मैं सूली पर चढूँगा!"
उन्होंने कहा, "हम तुम्हारा खून अपने सिर क्यों लें?"
मैंने जवाब दिया, "पागलों को सूली पर चढ़ाए बगैर तुम कैसे उन्नति कर सकोगे?"
वे सतर्क हो गए और मैं सूली पर चढ़ा दिया गया। इससे मुझे शान्ति मिली।
जब मैं धरती और आकाश के बीच झूल रहा था तो उन्होंने मुझे देखने के लिए सिर उठाया। उनके चेहरे चमक रहे थे क्योंकि इससे पहले कभी उनके सिर इतने ऊँचे नहीं हुए थे।
मेरी ओर देखते हुए उनमें एक ने पूछा, "तुम किस पाप का प्रायश्चित कर रहे हो?"
दूसरे ने चिल्लाकर पूछा, "तुमने अपनी जान क्यों दी?"
तीसरे ने कहा, "तुम क्या सोचते हो, इस तरह तुम दुनिया में अमर हो जाओगे?"
चौथा बोला, "देखो, कैसे मुस्करा रहा है? सूली पर चढ़ने की पीड़ा को कोई कैसे भूल सकता है?"
तब मैंने उन्हें उत्तर देते हुए कहा, " मेरी मुस्कान ही तुम्हारे सवालों का जवाब है। मैं किसी तरह का प्रायश्चित नहीं कर रहा, न ही मैंने कुछ त्यागा है, न मुझे अमरता की कुछ चाहत है और न ही भूलने के लिए मेरे पास कुछ है। मैं प्यासा था और यही एक रास्ता बचा था कि तुम मेरे खून से ही मेरी प्यास बुझाओ. भला एक पागल आदमी की प्यास उसके खून के अलावा और किसी चीज से बुझ सकती है! तुमने मेरे मुंह पर ताले लगाए इसलिए मैंने तुमसे अपनी कटी जबान मांग ली। मैं तुम्हारी छोटी-सी दुनिया में कैद था इसलिए मैंने बड़ी दुनिया चुन ली। अब मुझे जाना है, उसी तरह जिस तरह से दूसरे सूली पर चढ़ने वाले चले गए. यह मत समझना हम सूली पर चढ़ाए जाने से उकता गए है—अभी तो हमें तुम्हारी जैसी दुनिया के दूसरे लोगों द्वारा बार-बार सूली पर चढ़ाया जाता रहेगा।

दायरे

एक मछली ने दूसरी से कहा, "हमारे इस समुद्र से अलग एक और समुद्र है, जिसमें जीव तैरते हैं और हमारी तरह ही जीवन व्यतीत करते हैं।"
दूसरी मछली ने कहा, "बिल्कुल झूठ। ये तो कोरी सनक है। तुम्हें तो अच्छी तरह मालूम है कि हममें से कोई भी समुद्र से चाहे एक इंच ही बाहर बने रहने की कोशिश करता है तो मर जाता है। फिर तुम किस आधार पर अन्य समुद्र में अन्य जीवों की बात कर रही हो?"

पागल

आप मुझसे पूछते हैं कि मैं पागल कैसे हुआ? यह सब तरह हुआ, एक दिन मैं गहरी नींद से जागा तो देखा कि मेरे सभी मुखोैटे चोरी हो गए थे, वे सभी सात मुखौटे, जिन्हें मैंने सात जीवन जीते हुए बड़े शौक से पहना था। मैं पहली बार बिना किसी मुखौटे के भीड़ भरी गलियों में चिल्लाता हुआ दौड़ पड़ा, "चोर! चोर! चोट्टे!"
आदमी, औरतें मुझे देखकर हँसने लगे और कुछ तो मारे डर के घरों में जा घुसे।
जब मैं भरे बाज़ार में पहुँचा तो एक युवक छत पर से चिल्लाया, "पागल है!" मैंने उसकी ओर देखा तो सूर्य ने पहली बार मेरे नंगे चेहरे को चूमा और मेरी आत्मा सूर्य के प्रेम से अनुप्राणित हो उठी। अब मुझे अपने मुखौटों की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी। मैं स्तब्द्द-सा चिल्ला पड़ा, "भला हो! मेरे मुखौटे चुराने वालों का भला हो!"
इस तरह मैं पागल बन गया।
अपने इस पागलपन में मुझे आजादी और सुरक्षा दोनों ही महसूस हुई-अकेलेपन की आजादी और दूसरों द्वारा समझे जाने से सुरक्षा। क्योंकि जो लोग हमारी कमजोरियों को जान जाते हैं, वे हमारे भीतर किसी न किसी अंश को गुलाम बना लेते हैं।

दार्शनिक और मोची

एक दार्शनिक अपने फटे जूतों की मरम्मत कराने के लिए मोची के पास आकर बोला, "कृपया इनकी मरम्मत कर दो।"
मोची ने कहा, "मैं किसी दूसरे आदमी के जूते सिल रहा हूँ, आपके जूतों से पहले के तमाम जूतों पर मुझे काम करना है। आप अपने जूते छोड़ जाएँ, एक दिन के लिए दूसरा जोड़ा पहन लीजिए, कल आकर अपने वाले पहन जाइएगा।"
इस पर दार्शनिक क्रुद्ध होकर बोला, "मैं अपने अलावा किसी के जूते नहीं पहनता।"
मोची ने कहा, "तो क्या आप सही मायने में दार्शनिक हैं जो दूसरों के जूतों में पैर नहीं डाल सकते? इसी सड़क पर आगे एक और मोची है जो दार्शनिकों को मुझसे अच्छी तरह समझता है। आप अपने जूतों की वहीं मरम्मत करा लें।"

आजादी

उसने मुझसे कहा, "किसी गुलाम को सोते से मत जगाओ. हो सकता है कि वह आजादी के सपने देख रहा हो।"
मैंने कहा, "अगर किसी गुलाम को सोते देखो तो उसे जगाओ और आजादी के बारे में बताओ."

रुबरू

(एक)

वे मुझसे कहते हैं, "जब तुम खुद को जान लोगे तो सारी दुनिया को समझ जाओगे।"
मैं कहता हूँ, "जब मैं दूसरों को समझ लूँगा तभी खुद को पा सकूंगा।"

(दो)
मेरे दुश्मन ने मुझसे कहा, "दुश्मन से प्यार करो।"
मैंने उसका कहना मान लिया और खुद से प्यार करने लगा।

उसने कहा

पहले जब मैं एक अनार के दिल में रहता था मैंने एक बीज को कहते सुना, "किसी दिन मैं वृक्ष बन जाऊँगा, हवा मेरी शाखाओं के साथ झूम-झूम कर गाएगी, सूर्य की किरणें पत्तियों पर थिरकेंगी। तब मैं बारहों मास स्वस्थ और सुन्दर दिखूँगा।"
तब दूसरे बीज ने कहा, "तुम्हारी उम्र में मैं भी ऐसा ही सोचता था लेकिन अब मैं वस्तुओं का सही-सही आंकलन करना जान गया हूँ। मेरी सारी आशाएँ व्यर्थ थीं।"
तीसरे बीज ने कहा, "हमारा कोई भविष्य ही नहीं है।"
चैथे बीज ने कहा, "बिना उज्ज्वल भविष्य के हमारा जीवन एक मजाक बनकर रह जाएगा।"
पाँचवाँ बोला, "जब हमें अपने वर्तमान के बारे में ही नहीं पता तो भविष्य की बात करना बेकार है।"
छठे ने कहा, "हमारी तो ऐसी ही कट जाएगी।"
सातवें ने कहा, "मुझे अच्छी तरह पता है कि भविष्य में हमारा क्या होगा, पर मैं इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ।"
इसके बाद आठवाँ बोला-फिर नवाँ-दसवाँ और फिर सभी इस वाद-विवाद में जुट गए. शोर के कारण मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।
मैं उसी दिन अनार के दिल से निकलकर सख्त पीले बेल के दिल में बैठ गया। यहाँ के बीज पीले और कमजोर हैं, पर निराशावादी नहीं। यही वजह है कि वे संख्या में थोड़े हैं और ज्यादातर शान्त ही रहते हैं।

असंवाद

अपने जन्म के तीन दिन बाद भी मैं अपने चारों ओर नए संसार को हैरत और घबराहट से देख रहा था। मेरी माँ ने नर्स से पूछा, "ठीक तो है न मेरा बच्चा?"
नर्स ने कहा, "मैडम, बच्चा बिल्कुल ठीक है, मैंने इसे तीन बार दूध पिलाया है। मैंने आज तक ऐसा बच्चा नहीं देखा जो पैदा होते ही इतना हँसमुख हो।"
सुनकर मुझे गुस्सा आया, मैं चिल्ला पड़ा, "माँ, यह सच नहीं है। मेरा बिस्तर सख्त है, दूध का स्वाद बहुत कड़वा था, द्दाय की छातियों की दुर्गन्ध मेरे लिए असह्य है। मैं बहुत दयनीय हालत में हूँ।"
लेकिन मेरी बात माँ और नर्स दोनों ही नहीं समझ सकीं क्योंकि मैं उसी दुनिया की भाषा में बात कर रहा था, जहाँ से मैं आया था।
मेरे जीवन के इक्कीसवें दिन पुजारी जी आए और मुझपर पवित्र जल छिड़कते हुए माँ से बोले, "आपको खुश होना चाहिए कि आपका बच्चा जन्मजात पंडित मालूम होता है।"
मुझे ताज्जुब हुआ, मैंने पुजारी से कहा, "तब तो तुम्हारी स्वर्गवासी माँ को दुखी होना चाहिए, क्योंकि तुम तो जन्मजात पुजारी नहीं थे।"
पुजारी भी मेरी भाषा नहीं समझ सका।
सात महीने बाद एक भविष्यवक्ता ने मुझे देखकर माँ से कहा, "तुम्हारा बेटा बहुत बड़ा राजनीतिज्ञ बनेगा, उसमें महान नेता के सभी गुण हैं।"
मैं मारे गुस्से के चीख पड़ा, "गलत...मुझे संगीतज्ञ बनना है, संगीतज्ञ के अतिरिक्त मैं और कुछ नहीं बनूंगा।"
पर आश्चर्य...उस उम्र में भी मेरी भाषा किसी के पल्ले नहीं पड़ी।
आज मैं तैंतीस वर्ष का हो गया हूँ। इन वर्षों में मेरी माँ, नर्स और पुजारी सब मर चुके हैं पर वह भविष्यवक्ता अभी जीवित है। कल ही मेरी मुलाकात उससे मंदिर के प्रवेशद्वार पर हुई थी। बातों ही बातों में उसने कहा था, "मुझे शुरु से ही पता था कि तुम संगीतज्ञ बनोगे, इस बारे में मैंने तुम्हारे बचपन में ही भविष्यवाणी कर दी थी।"
मैंने उसकी बात पर आसानी से विश्वास कर लिया क्योंकि अब मैं स्वयं नन्हें बच्चों की भाषा नहीं समझ पाता हूँ।

बंधुत्व

प्राचीन समय में जब मैंने पहले-पहल बोलना सीखा तो पवित्र पर्वत पर चढ़कर ईश्वर से कहा, "भगवन् मैं आपका दास हूँ, आपका हर आदेश सिर आँखों पर!"
ईश्वर ने कोई उत्तर नहीं दिया और वह किसी तेज तूफान की तरह मेरे पास से गुजर गया।
एक हजार वर्ष के बाद मैंने पुनः उस पवित्र पर्वत पर चढ़कर ईश्वर से कहा, "हे विधाता, मैं आपकी सृष्टि हूँ। आपने मिट्टी से मेरा निर्माण किया है, जो कुछ भी है सब आपका है।"
इस पर ईश्वर चुप रहा, वह तत्काल असंख्य-असंख्य पक्षियों की तरह फड़फड़ाता हुआ मेरे पास से गुज़र गया।
हजार वर्ष बाद मैं फिर उस पवित्र पहाड़ पर चढ़ा और भगवान से बोला, "हे परमपिता, मैं आपकी संतान हूँ। दया करके आपने प्रेमपूर्वक मुझे जन्म दिया। प्यार और भक्तिभाव से ही मैं आपके राज्य का उत्तराधिकारी बनूंगा।"
ईश्वर ने कोई जवाब नहीं दिया और सुदूर पहाड़ियों पर छायी धुंध की तरह मेरे पास से निकल गया।
एक हजार साल बाद मैं फिर उस पुण्य पर्वत पर चढ़ा और ईश्वर से कहा, "मेरे प्रभु! मेरे लक्ष्य! ...मैं आपका बीता हुआ कल और आप मेरा भविष्य हैं। धरती में मैं आपकी जड़ हूँ और आकाश में आप मेरे पुष्प। हम दोनों ही सूर्य के प्रकाश में साथ-साथ पलते बढ़ते हैं।"
तब ईश्वर मुझ पर झुका, मेरे कानों में उसके शब्द झरे और जिस तरह समुद्र नदी नालों को अपने आगोश में ले लेता है, उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया।
जब मैं पहाड़ से नीचे उतरकर घाटियों और मैदानों में आया तो मैंने ईश्वर को वहाँ भी पाया...हरेक में।

जिंदगी

मेरा घर मुझसे कहता है, "मुझे मत छोड़ो क्योंकि तुम्हारा अतीत मुझसे जुड़ा है।"
और सड़क मुझसे कहती है, "आओ मेरे साथ चलते चलो क्योंकि मैं तुम्हारा भविष्य हूँ।"
मैं घर और सड़क दोनों से कहता हूँ, "न कोई मेरा अतीत है और न कोई भविष्य। अगर मैं यहाँ रूकता हूँ तो मेरे रूकने में जाना है, अगर मैं जाता हूँ तो मेरे जाने में रूकना निहित है। केवल जन्म और मृत्यु ही सभी चीजों को बदलते हैं।"

बड़ा पागलखाना

पागलखाने के बगीचे में मेरी उस नवयुवक से मुलाकात हुई. उसका सुंदर चेहरा पीला पड़ गया था और उस पर आश्चर्य के भाव थे।
उसकी बगल में बैंच पर बैठते हुए मैंने पूछा, "आप यहाँ कैसे आए?"
उसने मेरी ओर हैरत भरी नज़रों से देखा और कहा, "अजीब सवाल है, खैर...उत्तर देने का प्रयास करता हूँ। मेरे पिता और चाचा मुझे बिल्कुल अपने जैसा देखना चाहते हैं, माँ मुझे अपने प्रसिद्व पिता जैसा बनाना चाहती है, मेरी बहन अपने नाविक पति के समुद्री कारनामों का जिक्र करते हुए मुझे उस जैसा देखना चाहती है, मेरे भाई के अनुसार मुझे उस जैसा खिलाड़ी होना चाहिए. यही नहीं...मेरे तमाम शिक्षक मुझमें अपनी छवि देखना चाहते हैं। ...इसीलिए मुझे यहाँ आना पड़ा। यहाँ मैं प्रसन्नचित्त हूँ...कम से कम मेरा अपना व्यक्तित्व तो जीवित है।"
अचानक उसने मेरी ओर देखते हुए पूछा, "लेकिन यह तो बताइए...क्या आपकी शिक्षा और बुद्वि आपको यहाँ ले आई?"
मैंने कहा, "नहीं, मैं तो यूं ही...मुलाकाती के तौर पर आया हूँ।"
तब वह बोला, "अच्छा...तो आप उनमें से हैं जो इस चाहरदीवारी के बाहर पागलखाने में रहते हैं।"

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