ऊपर नीचे और दरमियान (कहानी) : सआदत हसन मंटो

Upar Neeche Aur Darmiyan (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto

मियां साहब- बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है।
बेगम साहबा- जी हाँ!
मियां साहब- मस्रूफ़ियतें....... बहुत पीछे हटता हूँ मगर ना-अहल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारीयां सँभालनी ही पड़ती हैं
बेगम साहबा- अस्ल में आप ऐसे मुआमलों में बहुत नर्म दिल वाक़े हुए हैं , बिल्कुल मेरी तरह
मियां साहब- हाँ! मुझे आप की सोशल ऐक्टिविटीज़ का इल्म होता रहता है । फ़ुर्सत मिले तो कभी अपनी वो तक़रीरें भेजवा दीजिएगा जो पिछले दिनों आप ने मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर की हैं.... मैं फ़ुर्सत के औक़ात में इन का मुतालआ करना चाहता हूँ।
बेगम साहबा- बहुत बेहतर
मियां साहब- हाँ बेगम ! वो मैंने आप से इस बात का ज़िक्र किया था!
बेगम साहबा- किस बात का?
मियां साहब- मेरा ख़याल है , ज़िक्र नहीं किया ..... कल इत्तिफ़ाक़ से मैं मँझले साहब ज़ादे के कमरे में जा निकला , वो लेडी चटरलीज़ लवर पढ़ रहा था
बेगम साहबा- वो रुस्वा-ए-ज़माना किताब!
मियां साहब- हाँ बेगम
बेगम साहबा- आप ने क्या किया?
मियां साहब- मैंने उस से किताब छीन कर ग़ायब कर दी।
बेगम साहबा- बहुत अच्छा किया आप ने।
मियां साहब- अब मैं सोच रहा हूँ कि डाक्टर से मश्वरा करूं और उसकी रोज़ाना ग़िज़ा में तबदीली क़रा दूँ
बेगम साहबा- बड़ा सही क़दम उठाईंगे आप।
मियां साहब- मिज़ाज कैसा है आप का?
बेगम साहबा- ठीक है
मियां साहब- मेरा ख़याल था कि आज आप से .... दरख़ास्त करूं।
बेगम साहबा- ओह ! आप बहुत बिगड़ते जा रहे हैं।
मियां साहब- ये सब आप की करिश्मा साज़ीयाँ हैं।
बेगम साहबा- लेकिन आप की सेहत?
मियां साहब- सेहत? अच्छी है लेकिन डाक्टर से मश्वरा किए बगै़र कोई क़दम नहीं उठाऊंगा.... और आप की तरफ़ से भी मुझे पूरा इतमीनान होना चाहिए।
बेगम साहबा- मैं आज ही
मिस सलढाना- से पूछ लूंगी।
मियां साहब- और में
डाक्टर जलाल- से
बेगम साहबा- क़ाइदे के मुताबिक़ ऐसा ही होना चाहिए।
मियां साहब- अगर
डाक्टर जलाल- ने इजाज़त दे दी?
बेगम साहबा- अगर
मिस सलढाना- ने इजाज़त दे दी ..... मफ़लर अच्छी तरह लपेट लीजिए। बाहर सर्दी है।
मियां साहब- शुक्रिया

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डाक्टर जलाल- तुम ने इजाज़त दे दी?
मिस सलढाना- जी हाँ
डाक्टर जलाल- मैंने भी इजाज़त दे दी..... हालाँ कि शरारत के तौर पर....
मिस सलढाना- मुझे भी।
डाक्टर जलाल- पूरे एक बरस के बाद वो .....
मिस सलढाना- हाँ पूरे एक बरस के बाद।
डाक्टर जलाल- मेरी उंगलीयों के नीचे उस की नब्ज़ तेज़ होगई , जब मैंने उस को इजाज़त दी।
मिस सलढाना- उस की भी यही कैफ़ियत थी।
डाक्टर जलाल- उस ने मुझ से डरते हुए कहा , डाक्टर! ऐसा मालूम होता है , मेरा दिल कमज़ोर होगया है.... आप का रडीवग्राम लीजिए....
मिस सलढाना- उस ने भी मुझ से यही कहा।
डाक्टर जलाल- मैंने उस के टीका लगा दिया।
मिस सलढाना- मैंने भी .... सिर्फ़ सादा पानी का
डाक्टर जलाल- सादा पानी बेहतरीन चीज़ है।
मिस सलढाना- जलाल! अगर तुम इस बेगम के शौहर होते ?
डाक्टर जलाल- अगर तुम इस मियां की बीवी होतीं?
मिस सलढाना- मेरा कैरेक्टर ख़राब हो गया होता !
डाक्टर जलाल- मेरा जनाज़ा उठ गया होता !
मिस सलढाना- ये भी तुम्हारे कैरेक्टर की ख़राबी कहलाती।
डाक्टर जलाल- हम जब भी सोसाइटी के इन आलूओं को देखने आते हैं , हमारा कैरेक्टर ख़राब हो जाता है।
मिस सलढाना- आज भी होगा?
डाक्टर जलाल- बहुत ज़्यादा
मिस सलढाना- मगर मुसीबत ये है कि इन का लंबे लंबे वक़्फ़ों के बाद होता है।

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बेगम साहबा- लेडी चटरलीज़ लवर, ये आप ने तकीए के नीचे क्यूँ रख्खी हुई है?
मियां साहब- मैं देखना चाहता था कि ये किताब कितनी बेहूदा और वाहीयात है।
बेगम साहबा- मैं भी आप के साथ देखूंगी।
मियां साहब- मैं जस्ता-जस्ता देखूंगा। पढ़ता जाऊंगा। आप भी सुनती जईए।
बेगम साहबा- बहुत अच्छा रहेगा।
मियां साहब- मैंने मँझले साहब ज़ादे की रोज़ाना ग़िज़ा में डाक्टर के मश्वरे से तबदीलियां करा दी हैं।
बेगम साहबा- मुझे यक़ीन था कि आप ने इस मुआमले में ग़फ़लत नहीं बरती होगी।
मियां साहब- मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी आज का काम कल पर नहीं छोड़ा।
बेगम साहबा- मैं जानती हूँ ..... और ख़ास कर आज का काम तो आप कभी ....
मियां साहब- आप का मिज़ाज कितना शगुफ़्ता है....
बेगम साहबा- ये सब आप की करिश्मा साज़ीयाँ हैं।
मियां साहब- मैं बहुत महफ़ूज़ हुआ हूँ.... अगर आप की इजाज़त हो तो ....
बेगम साहबा- ठहरिए! क्या आप ने दाँत साफ़ किए?
मियां साहब- जी हाँ! मैं दाँत साफ़ कर के और डीटॉल के ग़रारे कर के आया था।
बेगम साहबा- मैं भी
मियां साहब- अस्ल में हम दोनों एक दूसरे के लिए बनाए गए थे
बेगम साहबा- इस में क्या शक है
मियां साहब- में जस्ता-जस्ता ये बेहूदा किताब पढ़ना शुरू करूं।
बेगम साहबा- ठहरिए! ज़रा मेरी नब्ज़ देखिए।
मियां साहब- कुछ तीज़ चल रही है ..... मेरी देखिए।
बेगम साहबा- आप की भी तेज़ चल रही है
मियां साहब- वजह?
बेगम साहबा- दिल की कमज़ोरी!
मियां साहब- यही वजह हो सकती है ..... लेकिन डाक्टर जलाल ने कहा था कोई ख़ास बात नहीं।
बेगम साहबा-
मिस सलढाना- ने भी यही कहा था।
मियां साहब- अच्छी तरह इम्तिहान कर के उस ने इजाज़त दी थी?
बेगम साहबा- बहुत अच्छी तरह इम्तिहान कर के इजाज़त दी थी।
मियां साहब- तो मेरा ख़याल है कोई हरज नहीं
बेगम साहबा- आप बेहतर समझते हैं..... ऐसा न हो, आप की सेहत ....
मियां साहब- और आप की सेहत भी...
बेगम साहबा- अच्छी तरह सोच समझ कर ही क़दम उठाना चाहिए।
मियां साहब-
मिस सलढाना- ने इस का तो बंद-ओ-बस्त कर दिया है न?
बेगम साहबा- किस का .....? हाँ, हाँ, इस का तो बंद-ओ-बस्त कर दिया है उस ने।
मियां साहब- यानी इस तरफ़ से तो पूरा इतमीनान है।
बेगम साहबा- जी हाँ!
मियां साहब- ज़रा अब देखिए नब्ज़?
बेगम साहबा- अब तो.... ठीक चल रही है.... मेरी?
मियां साहब- आप की भी नोर्मल है।
बेगम साहबा- इस बेहूदा किताब का कोई पैरा तो पढ़ीए।
मियां साहब- बेहतर .... नब्ज़ फिर तेज़ होगई
बेगम साहबा- मेरी भी।
मियां साहब- नौकरों से मतलूबा सामान रखू इदेह आप ने कमरे में?
बेगम साहबा- जी हाँ! सब चीज़ें मौजूद हैं।
मियां साहब- अगर आप को ज़हमत न हो तो मेरा टैमप्रेचर ले लीजिए
बेगम साहबा- क्या आप तकलीफ़ नहीं कर सकते... स्टप वाच मौजूद है । नब्ज़ की रफ़्तार भी देख लीजिए।
मियां साहब- हाँ! ये भी नोट होनी चाहिए
बेगम साहबा- सिमलिंग सालट कहाँ है?
मियां साहब- दूसरी चीज़ों के साथ होना चाहिए
बेगम साहबा- जी हाँ! पड़ा है तिपाई पर।
मियां साहब- कमरे का टैमप्रेचर मेरा ख़याल है थोड़ा सा बढ़ा देना चाहिए
बेगम साहबा- मेरा भी यही ख़याल है
मियां साहब- नक़ाहत ज़्यादा होगई तो मुझे दवा देना न भूलीएगा
बेगम साहबा- मैं कोशिश करूंगी अगर....
मियां साहब- हाँ हाँ....! बसूरत-ए-दीगर आप तकलीफ़ न उठईएगा
बेगम साहबा- आप ये सफ़ा... ये पूरा सफ़ा पढ़ीए...
मियां साहब- सुनीए!....
बेगम साहबा- ये आप को छींक क्यूँ आई?
मियां साहब- मालूम नहीं
बेगम साहबा- हैरत है
मियां साहब- मुझे ख़ुद हैरत है
बेगम साहबा- ओह .... मैंने कमरे का टैमप्रेचर बढ़ा ने के बजाय घटा दिया था .... माफ़ी चाहती हूँ
मियां साहब- ये अच्छा हुआ कि छींक आगई और बर-वक़्त पता चल गया ।
बेगम साहबा- मुझे बहुत अफ़सोस है।
मियां साहब- कोई बात नहीं। बारह क़तरे ब्रांडी इस की तलाफ़ी कर देंगे
बेगम साहबा- ठहरिए....! मुझे डालने दें। आप से गिन्ने में ग़लती हो जाया करती है।
मियां साहब- ये तो दुरुस्त है। आप डाल दीजिए।
बेगम साहबा- आहिस्ता आहिस्ता पीछे
मियां साहब- उस से ज़्यादा आहिस्ता और क्या होगा?
बेगम साहबा- तबीयत बहाल हुई?
मियां साहब- हो रही है
बेगम साहबा- आप थोड़ी देर आराम कर लें
मियां साहब- हाँ.... मैं ख़ुद इस की ज़रूरत महसूस कर रहा हूँ

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नौकर- क्या बात है , आज
बेगम साहबा- नज़र नहीं आएं?
नौकरानी- तबीयत नासाज़ है उन की
नौकर-
मियां साहब- की तबीयत भी नासाज़ है
नौकरानी- हमें मालूम था।
नौकर- हाँ! लेकिन कुछ समझ में नहीं आता
नौकरानी- क्या?
नौकर- ये क़ुदरत का तमाशा .... हमें तो आज बिस्तर-ए-मर्ग पर होना चाहिए था।
नौकरानी- कैसी बातें मुँह से निकालते हो। बिस्तर-ए-मर्ग पर हूँ वो....
नौकर- न छेड़ो उन के बिस्तर-ए-मर्ग का ज़िक्र .... बड़ा शानदार होगा.... ख़्वाह मख़्वाह मेरा जी चाहेगा कि उठा कर अपनी कोठरी में ले जाऊं।
नौकरानी- कहाँ चले?
नौकर- बढ़ई ढूँढने जा रहा हूँ..... चारपाई अब बिल्कुल जवाब दे चुकी है।
नौकरानी- हाँ! इस में कहना, मज़बूत लकड़ी लगाए ।

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