ताबीज (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Taabeej (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

एक राजकुमार और राजकुमारी थे जिनकी तभी शादी हुई थी। वे बहुत खुश थे, पर उन्हें एक चिंता थी; उन्हें डर था कि हो सकता है बाद में वे इतने खुश न रह सकें जितने तब थे। इसलिए वे एक ऐसा ताबीज चाहते थे जो उनकी शादी में असंतोष न आने दे। उन्होंने एक विद्वान्‌ साधु के बारे में सुना था जो जंगल में रहता था और दुनिया के हर दुःख का इलाज जानता था। ये दोनों उसके पास गए, उसे अपने दिल की बात बताई और सलाह माँगी।

होशियार साधु ने सारी बात सुनी और कहा, “दुनिया के हर देश में जाओ, जब तुम्हें ऐसा जोड़ा मिले जो अपनी शादी में पूरी तरह खुश है तो उनसे कहना कि अपने बदन के साथ चिपके कपड़े का एक टुकड़ा दे दे। एक बार वह मिल जाए तो उसे हर वक्‍त अपने साथ रखना। वह छोटा-सा टुकड़ा बड़ा ताकतवर ताबीज होगा।'

राजकुमार और राजकुमारी यात्रा पर चल दिए। अभी बहुत दूर नहीं गए थे कि उन्होंने एक ऐसे सूरमा के बारे में सुना जो शादी से बहुत खुश था। वे उसके महल तक गए और उन दोनों से पूछा कि क्या यह सच है कि वे अपनी शादी से पूरी तरह संतुष्ट हैं।

“हाँ," सूरमा ने जवाब दिया, 'यह सच है, पर एक बात है कि हमारे कोई बच्चा नहीं है।' यहाँ ताबीज नहीं मिला, इसलिए जोड़ा फिर अपनी यात्रा पर बढ़ गया।

वे एक बड़े शहर में पहुँचे जहाँ कहा जाता था कि एक इज्जतदार आदमी बहुत लंबे समय से अपनी पत्नी के साथ बिल्कुल प्यार से रह रहा है। ये उस जोड़े के घर गए। और पूछा कि क्या उनकी शादी में उतनी खुशी है जितनी सब लोग कहते हैं ?

"हाँ, है!” अच्छे आदमी ने जवाब दिया, 'मैं और मेरी पत्नी बड़े चैन से रह रहे हैं। बस काश हमारे इतने बच्चे न होते क्योंकि उनकी वजह से हमें बहुत परेशानियाँ हैं।' यहाँ भी ताबीज माँगने का कोई फायदा नहीं था।

और वे दोनों चलते गए, सबसे पूछते जाते थे कि क्या किसी की शादी में सिर्फ सुख है, पर ऐसा कोई नहीं मिला।

एक दिन वे नदी के किनारे के मैदान से गुज़र रहे थे। उन्होंने देखा कि एक गड़रिया बैठा बाँसुरी बजा रहा था। उसी वक्‍त उसकी पत्नी गोदी में छोटा बच्चा और साथ में छोटा लड़का लिए पति के पास आई। जैसे ही गड़रिये ने अपनी पत्नी को देखा वह कूदकर उससे मिलने को दौड़ा। उसने उसकी बाँहों से बच्चा लेकर प्यार किया । गड़रिये का कुत्ता भी आ गया। वह लड़के के चारों तरफ घूमकर उसका हाथ चाटने लगा। पत्नी जो बरतन लाई थी उसे नीचे रखकर पति से बोली, 'आओ, खाना खा लो ।' गड़रिया भूखा था पर उसने पहला ग्रास छोटे बच्चे को दिया, फिर अपने बेटे और कुत्ते के साथ बाँटकर खाने लगा।

राजकुमार और राजकुमारी ने यह सब देखा-सुना। वे उस परिवार तक गए और पूछा, 'तुम्हें देखकर हमें लग रहा है कि तुम एक खुश जोड़ा हो, हो ना?'

गड़रिया बोला, 'हाँ, हम सच में खुश हैं, मेरे ख्याल से कोई राजकुमार- राजकुमारी हमारी तरह खुश नहीं हो सकते ।' राजकुमार ने कहा, 'मेरी बात सुनो। कृपा करके अपने बदन के साथ लगे कपड़े का एक छोटा-सा टुकड़ा हमें दे दो। हम तुम्हें उसकी कीमत देंगे।'

गड़रिया और उसकी पत्नी एक-दूसरे को देखकर शरमा गए। आखिर वह बोला, 'भगवान जानते हैं कि हम तुम्हें टुकड़ा ही नहीं पूरी कमीज ही दे देते, पर अगर हमारे पास होती तभी न, हमारे पास नहीं है।'

राजकुमार राजकुमारी यात्रा करते रहे क्योंकि वे जिस ताबीज को ढूँढ़ रहे थे, वह मिली नहीं थी। आखिर इस अंतहीन यात्रा से तंग आकर वे घर की तरफ चल दिए। उनका रास्ता जंगल में से जाता था जहाँ उस साधु की कुटिया थी। वे रुके और उसके पास गए ताकि बता दें कि उसकी सलाह कितनी बेकार थी।

विद्वान्‌ मुस्कराया और बोला, 'क्या सचमुच तुम्हारी यात्रा बेकार रही ? क्या तुमने अपने अनुभवों से कुछ नहीं सीखा ?'

राजकुमार मान गया, 'हाँ, मैंने जान लिया है कि धरती पर संतोष का वरदान बहुत कम मिलता है।'

राजकुमारी ने कहा, 'मैंने यह समझ लिया है कि संतोष के लिए ज़रूरी है कि हम संतुष्ट हों।'

राजकुमार ने राजकुमारी का हाथ अपने हाथ में लिया और गहरे प्यार से दोनों एक-दूसरे की तरफ देखने लगे।

विद्वान्‌ ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, "तुम्हें अपने दिल में सच्चा ताबीज मिल गया। इसे ध्यान से रखना, और तब तुम कितना भी लंबा जीवन जीओ, असंतोष की बुरी नज़र तुम पर अपना असर नहीं डाल पाएगी।'

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