मिली आलस की सज़ा : मनोहर चमोली 'मनु'

Mili Aalas Ki Saza : Manohar Chamoli Manu

ये उन दिनों की बात है, जब बिल्ली ख़ूब मेहनत करती थी। खेती किसानी से अपना पेट भरती थी। वहीं विशालकाय चूहे दिन-रात खर्राटें लिया करते थे। एक दिन बिल्ली ने चूहों से कहा-"पेटूओं, कुछ काम क्यों नहीं करते?" चूहों का सरदार बोला-"हमारे पास काम ही नहीं हैं। तुम ही कोई काम दिला दो।"

बिल्ली सोचने लगी। कहने लगी-"तुम तो जानते हो, मेरे खेत जंगल के उस पार हैं। मैं बगीचे की देखभाल करती हूँ तो मेरे खेतों की फसलें बरबाद होती हैं। ये अखरोट का बगीचा यहाँ है। तुम सब मिलकर मेरे बगीचे की रखवाली करो। तुम्हें रोजाना भरपेट भोजन बगीचे में ही भिजवा दूंगी। याद रहे, अखरोट पक जाने पर उन्हें बोरों में रखकर मुझे देने होंगे।" चूहों के सरदार ने हामी भर दी। चूहे खुश हो गए। बिल्ली चूहों को बगीचे में ही खाना भिजवाती। वहीं चूहे भरपेट भोजन करते और चादर तानकर सो जाते। वे दिन-प्रतिदिन और भी आलसी हो गए थे।

दिन बीतते गए। पेड़ों पर अखरोट के फूल आए। पत्तियाँ आईं। अखरोट के फल लगे। पकने लगे। पककर खोल से बाहर आकर नीचे गिरने लगे। बगीचे में चूहों के खर्राटें ही सुनाई दे रहे थे। फिर एक दिन बिल्ली ने संदेशा भिजवाया-"सर्दियाँ आने से पहले अखरोट पक जाते हैं। बोरों के ढेर एक कोने में इकट्ठा कर दिए?"

बंदर जैसे नींद से जागे हों। उछलकर खड़े हो गए। सरदार जम्हाई लेते हुए बोला-"चिंता न करें। अखरोट अपने खोल से बाहर आ गए हैं। पेड़ों के नीचे अखरोटों का अंबार लगा हुआ होगा। कल से उन्हें बोरों में भर देंगे। फिलहाल चादर ओढ़कर सो जाओ।" चूहों ने ऐसा ही किया।

सुबह हुई। चूहों को देर से उठने की आदत थी। वे सोते ही रह गए। बगीचे में बंदरों का झुण्ड आ गया। गिलहरियों और खरगोश भी आ गए। बंदरों को मनपंसद भोजन जो मिल गया था। दोपहर हो गई। चूहे हड़बड़ाकर उठ बैठे। तभी बिल्ली भी आ पहुँची। बगीचा तहस-नहस हो चुका था। सारा नजारा देखकर बिल्ली आग बबूला हो गई। बिल्ली चिल्लाई-"आलसियों। तुम्हारा ये विशालकाय शरीर पिद्दी भर का हो जाए। तुम चैन से न रहोगे। दिन-रात खाते-कुतरते रहोगे। यदि ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हारे दांत बढ़ते ही चले जाएंगे। दूर हो जाओ, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊंगी।"

ऐसा ही हुआ। पलक झपकते ही विशालकाय चूहे नन्हे से हो गए। सींग के बदले उनकी मूंछें उग आईं। चूहों में अफरा-तफरी मच गई। बेचारे चूहे डर के मारे खरगोशों के बिलों में दुबक गए। कहते हैं, तभी से चूहे बिल में रहने लगे। चूहों को देखते ही बिल्ली उन पर झपट पड़ती है।