Kidhar Nahin Khuda Ka Ghar ?

किधर नहीं खुदा का घर ?

गुरु नानक जी और मरदाना ने भारत के लगभग सभी मुख्य वैष्णव, शैव, जैन, बौद्ध और मुसलमान तीर्थ स्थानों की यात्रा कर ली थी। मरदाना मक्का-मदीना की यात्रा करना चाहता था। गुरु नानक जी ने उसके मन की बात जान ली और मरदाना को साथ लेकर वे मक्का-मदीना की यात्रा के लिए निकल पड़े। उन्होंने अपना वेश हाजियों जैसा बना लिया-नीले कपड़े, बगल में अपनी रचनाओं की पोथी, कंधे पर बंदगी करते समय जमीन पर बिछाया जाने वाला 'मुसल्ला', एक हाथ में पानी का कुज्जा दूसरे हाथ में छड़ी। वे गुजरात के हिंगलाज बंदरगाह से दूसरे यात्रियों के साथ मक्का जाने वाले समुद्री जहाज पर चढ़े।

कुछ दिन की समुद्री यात्रा और फिर पैदल यात्रा करते हुए गुरु नानक और मरदाना मक्का पहुंचे।

कई दिनों की यात्रा करने के कारण सभी यात्री बहुत थक गये थे। इसलिए जिसको जहां जगह मिली वह वहीं थोड़ा सा विश्राम करने के लिए लेट गया । गुरुजी भी लेट गये । संयोग से उनके पैर उस ओर थे जिधर 'काबा' था और जिसकी ओर मुंह करके लोग नमाज पढ़ते हैं।

सुबह सुबह किसी ने आकर बड़े गुस्से में आकर उन्हें ठोकर मारी, "अरे तुम कौन हो ? क्या तुम्हें इतना भी पता नहीं कि काबा की तरफ पैर करके नहीं सोया जाता...काबा तो खुदा का घर है।"

गुरुजी की आंख खुलीं । उन्होंने बड़े शान्त भाव से कहा-'भाई, नाराज क्यों होते हो । तुम मेरे पैर उस तरफ कर दो जिधर खुदा का घर नहीं है।"
उस व्यक्ति ने बड़े गुस्से से गुरुजी के पैर उठाकर दूसरी तरफ कर दिये परन्तु उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ, जब उसने देखा कि काबा भी उसी तरफ है, जिधर गुरुजी के पैर हैं।

वह व्यक्ति थोड़ा चकराया उसने फिर उनके पैर उठाये और उन्हें दूसरी तरफ कर दिया। परन्तु इसबार फिर उसे काबा घूमता उसी ओर नजर आया।
एकाएक गुरुजी की कही बात का भेद उसके सामने स्पष्ट हो गया। गुरुजी ने कहा था-"तुम मेरे पैर उस तरफ कर दो, जिधर खुदा का घर न हो। पर खुदा का घर किस तरफ नहीं है। वह तो सभी स्थानों पर बसता है उसका घर हर दिशा में है. हर ओर है।"

मक्का-मदीना में गुरु नानक जी की भेंट अनेक मुसलमान मौलवियों और फ़कीरों से हुई। उनमें से एक ने पूछा- "हे खुदा के नेक बंदे, आप हमें यह बताइए कि हिन्दू बड़ा है या मुसलमान ।"

गुरुजी ने कहा-"कोई व्यक्ति हिन्दू या मुसलमान होने से बड़ा या छोटा नहीं होता। हर व्यक्ति के कर्म ही उसे बड़ा या छोटा बनाते हैं । इस समय ना हिन्दू अच्छे कर्म कर रहे हैं, ना मुसलमान।"

अपनी इस यात्रा में गुरुजी और मरदाना बगदाद भी गये फिर वहां से अफ़गानिस्तान होते हुए भारत वापस आये ।

(डॉ. महीप सिंह)