करमू और धरमू : संथाली लोक-कथा

Karmu Aur Dharmu : Santhali Lok-Katha

किसी समय करमू और धरमू दो सगे भाई थे। करमू किसान था और धरमू व्यापारी। एक बार जब धरमू अपने घर से बाहर गया हुआ था तब करमू ने एक धार्मिक सहभोज का आयोजन किया ओर उसमें धरमू के परिवार वालों को नहीं बुलाया; जब धरमू लौट कर आया तो उसे यह सब विदित हुआ, उसने अपनी गृहिणी से कहा की वह भी अपने घर में एक धार्मिक उत्सव का आयोजन करेगा, इसलिए वे देर रात तक तैयारी करते हुए भात और तरकारी पका रहे थे; तब करम गोसाई नीचे यह देखने आये की धरमू उनके सम्मान में क्या व्यवस्था कर रहा है और वह उसके घर के पिछवाड़े से यह सब देखने लगे।

ठीक उसी समय धरमू पकाया हुआ भात से माँड़ पसा कर और उसे झरोखा से बाहर की तरफ फेंक दिया, जो की करम गोसाई के उपर जा गिरा और गर्म माँड़ से वह झुलस गए और इस कारण झुलसने से हुए घाव पर मक्खी एवं कीड़े तंग करने लगे, और व्याकुल करम गोसाई ने गंगा नदी के बिच धारा में जा कर जल समाधि ले लिया। इस प्रकार करम गोसाई को अप्रसन्न करने के कारण व्यवसाय विफल हो गया और धरमू निर्धनता में डूब गया, और यहाँ तक की उसके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं रह गया था, इसलिए उसने अपने भाई करमू से मदद माँगी जब धान रोपण का समय आया तब सभी श्रमिकों के साथ धरमू भी हल जोतता, गड्ढे खोदता दरारों की मरम्मत करता। करमू ने उससे कहा की स्वयं काम न किया करे केवल दूसरे श्रमिकों के कार्य का निरीक्षण करे और श्रमिकों ने भी कहा की एक उसका एक मजदूर की तरह कार्य करना उचित नहीं है, लेकिन धरमू ने कहा की उसे भी मजदूरी करके कुछ कमाना चाहिए और ज़िद्द करते हुए काम करता रहा; और उसी तरह धरमू की पत्नी भी महिलाओं के निरीक्षक की तरह कार्य कर रही थी, लेकिन वह मजदूर की तरह कार्य न करने से लज्जित थी।

एक दिन जब वे लोग धान का रोपण रहे थे तब करमू श्रमिकों के लिए अल्पाहार ले कर आया; उसने धरमू और उसके पत्नी से कहा तुम लोग भी हाथ धो कर आओ और खा लो; लेकिन उन्होंने कहा की श्रमिकों को मजदूरी पर लाया गया है, इसलिए वह पहले खा लें हम तो परिवार के लोग हैं, बाद में खा लेंगे। इस प्रकार मज़दूरों ने पहले खाया और वे सब भात खा गये और धरमू और उसकी पत्नी के लिए वहां कुछ भी नहीं बचा। जब दोपहर में मध्याह्न भोजन आया तो वही घटना हुई और पुनः धरमू उसकी पत्नी दोनों को कुछ भी नहीं मिला; किंतु वे आशा करते थे कि उनके लिए भोजन बनाई जाएगी, और जब तक मजदूरी का भुगतान किया जाने लगा तब तक वे भूखे ही कार्य करते रहे। सांझ को जब मजदूरी में पैसे के बदला में धान दिया जाने लगा तो सबसे पहले धरमू का नाम पुकारा गया, लेकिन धरमू अपने भाई को बोला मज़दूरों को पहले दे दो, और ऐसा करने में पूरा धान एकदम समाप्त हो गया और धरमू और उसके पत्नी के लिए कुछ भी नहीं बचा इसलिए वे दोनों बड़े व्यथा के साथ अपने घर गए उनके बच्चे खाने के लिए रोने-चिल्लाने लगे परन्तु इनके पास बच्चों को देने हेतु कुछ भी नहीं था।

रात में धरमू की पत्नी ने कहा की उन लोगों ने वादा किया था की कार्य के देखभाल के बदले में कुछ देंगे, हमने मेहनत से कार्य भी किया और इसके बावजूद हमें कुछ नहीं मिला। हम लोग उनके लिए अब और कार्य नहीं करेंगे; चलो हमने जो भी कार्य किया है उसे नष्ट कर दें तुमने जिस मेंड़ की मरम्मत की है उसे काट देना और मैंने जो बीज का रोपण किया है मैं उसे उखाड़ दूंगी। इस प्रकार वे दोनों अपने द्वारा किये कार्य का अंत करने के लिए रात में खेत पर गए। लेकिन जब भी धरमू अपना कुदाल आगे बढ़ता तो एक आवाज आती “ठहरो, ठहरो!” तब दोनों ने कहा तुम कौन हो हम लोगों को रोकने वाले? और उस आवाज ने उत्तर दिया “तुम लोगों ने करम गोसाई को गरम माँड़ से झुलसा कर एक अशुभ कार्य करके अप्रसन्न कर दिया है, “यही कारण है कि तुम लोग दरिद्र हो गये हो और आज तुम्हें बिना भोजन और बिना मजदूरी के काम करना पड़ा; करम गोसाई गंगा नदी में समाधिस्थ हो गए हैं। तुम्हें जा कर उनको प्रसन्न करना चाहिये।” तब उन्होंने पूछा की हम कैसे उनको प्रसन्न करें, तब आवाज आई “एक तश्तरी में कुटाई किया हुआ हल्दी लो, नया वस्त्र खरीद कर हल्दी से रंग लो और साथ में तेल ले लो और इन सभी चीजों को ले कर गंगा नदी में जाओ और करम गोसाई का आह्वान करो और उन्होंने इस आवाज पर भरोसा करते हुए अगले दिन वैसा ही किया जैसा उस आवाज ने उनको आदेश दिया था, दोनों अपने बच्चों को करमू के पास छोड़ कर गंगा नदी की ओर चल पड़े। रास्ते में गूलर का एक पेड़ फल से लदा हुआ मिला दोनों फल खाने के लिए पेड़ के पास गए; लेकिन पेड़ के पास जाने पर पाया की गूलर का फल दूषित था, और तब उन्होंने गीत गाया:-

“हम भूख से क्लांत गूलर के पेड़ के पास आये
और पाया की गूलर दूषित था,
ओ, करम गोसाई तुम हम से अब कितना दूर हो?”

तब दोनों आम के पेड़ के पास आए और वहां भी ठीक पहले जैसा ही घटना हुई और तब दोनों ने एक गाय और बछड़ा देखा उन्होंने सोचा की गाय का दूध दुह के पी लेंगे, लेकिन जब वे गाय को पकड़ने गए तो गाय भाग गई और उसे वे पकड़ नहीं पाए। और तब उन्होंने गीत गाया:-

“हम लोग गाय पकड़ने गए तो गाय भाग गई
और जब हम लोग बछड़ा पकड़ने गए तो बछड़ा भी भाग गया,
ओ, करम गोसाई तुम हम से अब कितना दूर हो?”

किन्तु गाय ने उनसे कहा- “गंगा नदी के तट पर जाओ।” तब वे भैंस के पास उसको दुहने गए, लेकिन भैंस इन पर सींग से हमला करने के लिए अपना माथा झुका के तैयार हो गया, तब धरमू रोने लगा लेकिन उसकी पत्नी उसको सांत्वना देते हुए गीत गाया:-

“यदि तुम भैंस को पकड़ने जाओगे, धरमू,
भैंस तुम्हारी जान ले लेगा।
हम लोग दूध कैसे पियेंगे? हम लोग दूध कैसे पियेंगे?
ओ, करम गोसाई तुम हम से अब कितना दूर हो?”

और भैंस ने उनसे कहा- “गंगा नदी के तट पर जाओ।” तब वे घोड़ा के पास आये उन्होंने सोचा की वे घोड़ा को पकड़ के और उस पर बैठ के घुड़सवारी करते हुए गंगा नदी तक चले जायेंगे, लेकिन हिनहिनाते हुए घोड़ा ने दुलत्ती झाड़ा; और तब उन्होंने गीत गाया:-

“धरमू घोड़ा पकड़ने का उपाय किया
लेकिन घोड़ा दुलत्ती झाड़ के भाग गया।
अब हम लोग गंगा नदी तक कैसे पहुंचेंगे?
ओ, करम गोसाई तुम हम से अब कितना दूर हो?”

और घोड़ा ने उनसे कहा- “गंगा नदी के तट पर जाओ।” तब उन्होंने एक हाथी देखा परन्तु वे हाथी तक नहीं पहुँच पाए, इस लिए उन्होंने निर्णय लिया की वे सीधे नदी के ओर जाएँगे; रस्ते में एक बरगद के पेड़ के नीचे रुपयों से भरा हुआ एक बड़ा मटका देखा, लेकिन अब तक वे इतना निराश हो गए थे कि उन्होंने उसे छूने का कोशिश भी नहीं किया; तब उनको रास्ते में एक औरत मिली उसने पूछा की वे कहाँ जा रहे हैं और औरत ने सब कुछ सुनने का बाद कहा “पिछले बारह वर्षों से उसके गले में पाई (½ सेर वज़न या ½ पैईला का नपना) अटका हुआ है करम गोसाई से पूछना की मुझे इससे कैसे छुटकारा मिलेगा,” और उन्होंने उसे वचन दिया की वह अवश्य ही पूछेगा, उसी रास्ते में एक और स्त्री मिली उसके माथा पर छप्पर का छाजन करने वाला घास का एक गट्ठर फंस हुआ था, उसने भी इन से वादा लिया की करम गोसाई के मिलने पर यह पूछेंगे की इससे मुक्ति कैसे होगी। तब उनको एक औरत मिली जिसके दोनों पैर आग से जल रहे थे, दूसरी मिली जिसके पीठ में एक बैठने वाला तिपाई फंसा हुआ था, उन्होंने सभी से वादा किया की करम गोसाई के मिलने पर मैं सब के बारे में पूछ कर तुम लोगों को बताऊंगा।

इस प्रकार अंततोगत्वा वे दोनों गंगा नदी के किनारे पहुँचे और तट पर खड़ा हो कर करम गोसाई का आह्वान किया; और जब करम गोसाई आये तो उन्होंने उनको पकड़ लिया, तो उन्होंने कहा “छी, छिः किस नीच जाति का व्यक्ति मुझे छू रहा है?” तब धरमू बोला, “हम लोग नीच जाती के नहीं हैं और धरमू ने उनको स्नान कराया और उन पर तेल और हल्दी का लेप किया और अपने साथ जो नया वस्त्र लाया था उस वस्त्र से उनके शरीर को ढंक दिया, इस प्रकार उनको घर वापस चलने के लिए मनाया; और वे सभी लौट पड़े, धरमू ने उन से उन औरतों के बारे में पूछा जिससे उसकी भेंट रास्ते में हुई थी, करम गोसाई ने कहा: उस औरत के पीठ में तिपाई इसलिए फंसा हुआ है कि उसने अपने घर आने वाले किसी आगंतुक को बैठने के लिए कभी कुछ नहीं दिया; उसने जैसा बोया है वैसा ही काटेगी और वह इससे मुक्त हो जायेगी; औरत जिसके दोनों पैर आग में जल रहे हैं उसने अपने पैर से आग जलाने के लिए इंधन को पैर से धकेल के आग में डाला था: यदि वह भविष्य में ऐसा नहीं करेगी तो वह इससे मुक्त हो जायेगी; औरत उसका माथा छाजन वाले घास के गट्ठर में इसलिए फंसा हुआ है कि इसने अपने साथी के बाल में तिनका को समाते हुए देखा था लेकिन उस को इसके बारे में कुछ नहीं बताया उसे वैसे ही रहने दो वह भी भविष्य इससे मुक्त हो जायेगी; औरत उसके गले में पाई इसलिए अटका हुआ है कि जब भी उसके पड़ोसी उससे नपना माँगते तो उसने उनको नपना मांगने पर नहीं दिया; उसे वैसे ही रहने दो वह भी भविष्य इससे मुक्त हो जायेगी” और करम गोसाई ने पूछा क्या कभी उन दोनों को एक हाथी, एक घोड़ा, एक भैंस, एक गाय, ढेर पैसा, आम और गूलर का फल दिखा था तब धरमू ने कहा “हाँ,” लेकिन वे लोग जानवरों को पकड़ने में सफल नहीं हो सके और फल दूषित थे इसलिए खा नहीं सके। करम गोसाई ने आशीर्वाद दिया की उनके घर वापसी पर यह सब कुछ उनके पास होगा; और वैसा ही हुआ, वे हाथी पर बैठ के वापस अपने घर बहुत संपत्ति ले कर आये। वापसी के रास्ते में उनको वही चार औरतें मिली और धरमू ने उनको बताया की कैसे उनको अपनी समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। धरमू का गाँव वालों ने बहुत स्वागत किया और धरमू ने एक बृहद प्रीतिभोज का आयोजन किया। सभी गाँव वालों को छांटने के लिए धान दिया; लेकिन धान उबालने के बाद आसमान मेघाच्छन्न हो गया और वे धान नहीं सुखा सके, इसलिए उन्होंने सूर्य भगवान से प्रार्थना किया की एक बार धूप दिखा दें और उन्होंने धान को सूखा लिए।

तब से एक दिन निश्चित किया गया है, जब वे हँड़िया बनाते हैं और करम गोसाई की पूजा करते हैं, पूरी रात नाचते हैं, हँड़िया पीते और आमोद-प्रमोद करते हैं।

कहानी का अभिप्राय: व्यक्ति को अपने कार्य पूरे मनोयोग से करना चाहिए निश्चित ही परिणाम सुखद होगा।

(Folklore of the Santal Parganas: Cecil Heny Bompas);

(भाषांतरकार: संताल परगना की लोककथाएँ: ब्रजेश दुबे)

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