J-1 : Asghar Wajahat

ज-1 : असग़र वजाहत

वे लोग अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी इसका ध्यान रखते थे कि उस आदमी, जिसको वे ‘ज’ कहा करते थे, को क्या परेशानी है या किस हद तक बढ़ी हुई है कि उसका इलाज कहां और कैसे हो सकता है। ‘ज’ के प्रति सहानुभूति दर्शाए बिना ही उनके सब काम जैसे तैसे चल सकते थे, लेकिन इसके बाद भी अगर वे ‘ज’ से हमदर्दी रखते थे तो कारण किसी बहुत मोटे और महान शब्द के पीडे छिपा हुआ था।
उन लोगों ने ‘ज’ को जब-जब जो-जो बीमारियां बतायीं तब-तब त्यों-त्यों ‘ज’ ने उन्हें स्वीकार किया। चूंकि मर्ज बताने वाले भी वही थे और इलाज करने वाले भी वही, इसलिए मामला काफी सुलझा हुआ था, इतना कि जब उन्होंने ‘ज’ से कहा कि उसका चेहरा बिगड़ गया है और उसका इलाज जरूरी है तो उन्हें ये बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि ‘ज’ इस बात से इनकार कर देगा। ‘ज’ ने उनसे कहा कि मेरे चेहरे में कई दोष हो सकते हैं, मसलन मैं दूर तक देख सकने वाली आंखें और खतरा सूंघ लेने वाली नाक रखता हूं, लेकिन इससे भी भयंकर रोग मेरे पेट में है। पहले उसका इलाज जरूरी है। उन लागों के लिए यह खतरे और आश्चर्य की बात थी कि ‘ज’ अपने मर्ज को पहचानने लगा है। इन लोगों ने ‘ज’ से कहा कि डॉक्टर ही मर्ज पहचान सकता है, मरीज नहीं इसलिए ‘ज’ को वह मर्ज है कि जो वे कहते हैं न कि वह जो ‘ज’ कहता है। इसलिए इस मामले में बहस की इतनी ही गुंजाइश थी कि बहस होती और ‘ज’ हार जाता।
वे ‘ज’ के चेहरे की चीर-फाड़ करके उसे सुन्दर बनाना शुरू ही करने वाले थे कि ‘ज’ ने कहा मेरे दर्द मेरे पेट में है।
वे बोले, ‘‘तुम्हारे पेट के दर्द के बारे में कितने लोगों को मालूम है या कितने लोग तुम्हें देखकर समझ सकते हैं कि तुम्हारे पेट में दर्द होगा’
‘ज’ ने कहा, ‘‘कोई नहीं। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि मेरे पेट में दर्द ही नहीं है।’’
उन लोगों ने कहा, ‘‘और तुम्हारे चेहरे को देखकर हर आदमी कह सकता है कि इसकी मरम्मत की जरूरत है।’’
उन्होंने ‘ज’ के चेहरे की मरम्मत शुरू कर दी। उसके मोटे होंठों को पतला कर दिया गया। उसकी आंखों की नशीला बना दिया गया। इसके गाल सेब की तरह सुर्ख कर दिए गए। उसका रंग चमचमा दिया गया। इस बीच वह दोनों हाथों से अपना पेट पकड़े कराहता, चीखता और रोता रहा, लेकिन वे जानते थे बुखार की दवा कुनैन ही होती है और एक बार कड़वी चीज निगल जाने की आदत पड़ जाना हमेशा के लिए अच्छा होता है। उन लोगों ने ‘ज’ की घिनौनी और गंदी नाक की प्लास्टिक सर्जरी करने के लिए जब नाक काटी तो ऐसे निशान मिले जिनसे अंदाजा लगाया गया कि ‘ज’ की नाक भी वह नाक नहीं है जो थी। यानी नकली है। ‘ज’ संबंधी पुराने कागजों को उलटने-पलटने के बाद डाक्टरों ने ‘ज’ से कहा कि पिछले बीसियों सालों में तुम्हारी नाक इतनी बार काटी और जोड़ी और काटी और जोड़ी गयी है कि तुम्हारी असली नाक क्या और कैसी थी ये किसी को नहीं मालूम।
‘ज’ ने कराहते हुए कहा, ‘‘लेकिन मेरा पेट वही है और दर्द भी वही।’’