Bulgaria Yatra-1 : Asghar Wajahat

बल्गारिया यात्रा 1 : असग़र वजाहत

इशारों ही इशारों में

यात्राएं करना बहुत मुश्किल भी है और बहुत सरल भी है। अगर चीजों को सरसरी तौर पर देखते हुए गुजर जाना है तो यात्रा करना बहुत आसान है लेकिन अगर रास्ते के हर पत्थर से उलझने का मन हो और हर पेड़ पौधे को जानने की इच्छा हो तो यात्रा करना मुश्किल भी है। मेरे साथ दिक्कत यह है कि मैं यात्राएं लोगों को समझने और जानने के लिए करता हूं । इसमें मुझे मजा आता है। आज की दुनिया में इमारतें और शहर देखना तो बहुत आसान है । कोई अपने घर बैठ कर भी पूरी दुनिया की सैर कर सकता है। लेकिन किसी देश के लोगों को, समाज को जानने की इच्छा हो तो वहां जाना पड़ता है ।और फिर शुरू होती हैं मुश्किलें है ।हर तरह की मुश्कलें है। इसी तरह की यात्रा के बारे में कुछ बताना चाहता हूं । हुआ यह कि पिछली गर्मियों में यूरोप के एक ऐसे देश में जाना हुआ जहां से यूरोप शुरू होता है ।यह देश है बल्गारिया। शायद इस देश के बारे में लोग कम ही जानते हैं क्योंकि आमतौर से लोग ऐसे देशों में घूमने जाते हैं जहां मौज मस्ती की जा सके। इसलिए पश्चिमी यूरोप और अमरीका जैसे देशों में टूरिस्ट भरे रहते हैं। बुलगारिया जाने की चिंता कौन करता है। लेकिन अपना अपना शौक है मुझे ऐसी जगहों पर जाना भी पसंद है जहां कम लोग जाते हैं।

बल्गारिया की राजधानी सोफिया पहुंच कर मन में यह इच्छा जगी कि इस देश के ग्रामीण इलाकों को देखा जाए । शहरों में जाना तो आसान है लेकिन गांव में तुम उस समय तक नहीं जा सकते जब तक वहां किसी को जानते न हो। इस सिलसिले में डॉक्टर मौना कौशिक ने मेरी मदद की।वे बुलगारिया के विश्वविद्यालय में हिंदी की प्रोफेसर हैं और सांस्कृतिक सामाजिक कामों में बहुत आगे आगे रहती हैं । उन्होंने मेरे सामने गांव जाने का एक प्रस्ताव रखा जो मुझे बहुत नया और आकर्षक लगा। उन्होंने कहा कि आप पवलीना के साथ उनके गांव चुकोवेस्त जा सकते हैं जो राजधानी से बहुत दूर नहीं है । केवल डेढ़ घंटे की ट्रेन यात्रा के बाद वहां पहुंचा जा सकता है। आप गांव में दो-तीन दिन उनके घर में रह सकते हैं लेकिन एक छोटी सी दिक्कत यह है कि 76 वर्ष की पवलीना यानी पॉली बुल्गारियन के अलावा और कोई भाषा नहीं जानती और आप बुल्गारियन नहीं जानते।

मुझे लगा यह तो बड़ा नया, यादगार और रोचक सफर हो सकता है। ऐसा मेरे साथ कभी नहीं हुआ कि दो-तीन दिन तक किसी ऐसे के साथ रहा हूँ जो मेरी भाषा न जानता हो और मैं उसकी भाषा न जानता हूँ। मैं फौरन तैयार हो गया। सोच चलो भाषा की सीमा को तोड़ा जाए।

रेलवे स्टेशन पर डॉ. मौना ने मुझे पॉली के हवाले कर दिया और यह बिल्कुल तय हो गया कि हम दोनों एक दूसरे का एक शब्द भी समझ और बोल नहीं सकते। यहां तक कि वे मेरा नाम भी ठीक से नहीं ले सकती थीं। इसलिए मुझे उनकी सुविधा के अनुसार अपना नाम कुछ बदलना पड़ा। मैंने मौना जी से कहा कि पॉली मुझे असग़र के बजाय ऑस्कर कह सकती हैं।

ट्रेन चल दी और पॉली अपने साथ बैठी एक अजनबी महिला से बातचीत करने लगीं और धीरे-धीरे मुझे यह अंदाजा हुआ कि पॉली को बातचीत करना बहुत पसंद है क्योंकि उन्होंने अजनबी महिला से जो बातचीत शुरू की थी वह लगभग डेढ़ घंटे तक चलती रही और इस डेढ़ घंटे में अजनबी औरत ने शायद दो-चार शब्द ही बोले होंगे ।पूरे समय पॉली उससे बोलती रहीं। इसका मतलब यह था कि पॉली को बातचीत करने का बहुत शौक है तब मेरे साथ उनकी कैसे निभेगी?

कोई डेढ़ घंटे के बाद पॉली ने इशारा किया कि उनका स्टेशन आने वाला है ।पाली सामान लेकर दरवाजे पर पहुंच गई। मैंने इधर उधर देखा ।स्टेशन का कोई अता पता न था। गाड़ी की रफ्तार धीमी हो गई थी। दोनों तरफ झाड़ियां, खेत और दूर फैले हुए छोटे-छोटे पहाड़ नजर आ रहे थे । कुछ ही देर में गाड़ी रुक गई ।पाली में दरवाजा खोला। बाहर एक कार खड़ी दिखाई दी। 76 वर्षीय पाली ने एक छोटी सी छलांग लगाई और वे एक छोटी सी मुंडेर रहनुमा दीवार पर पहुंच गई। मैं समझ गया कि यह चाहे स्टेशन हो या न हो पर यही उतरना है ।मैंने भी छलांग लगाई और मुंडेर पर आ गया। कार से एक अधेड़ उम्र आदमी उतरा और हमारा सामान कार की डिक्की में रख दिया गया। पाली अधेड़ उम्र आदमी के साथ पिछली सीट पर बैठ गई और मैं ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठ गया। ड्राइवर ने भूतपूर्व समाजवादी देशों के लोगों की तरह मुझे देख कर कोई ऐसा आभास नहीं दिया कि वह मेरा स्वागत कर रहा है। उसके चेहरे पर न तो कोई मुस्कुराहट आई और न उसके चेहरे की सख़्ती में कोई कमी आई।

गाड़ी कच्चे रास्ते पर चलने लगी।दोनों तरफ खेत थे और उनके बीच से होता हुआ रास्ता आगे बढ़ रहा था। कुछ देर बाद यह रास्ता कच्ची सड़क में बदल गया और फिर यह रास्ता पक्की सड़क में तब्दील हो गया ।गांव आ गया था ।इधर उधर बिखरे मकान दिखाई दे रहे थे। गाड़ी एक मकान के सामने रुक गई। मैंने अंदाजा लगाया यही पाली के घर होगा।

पूर्वी यूरोप और मध्य यूरोप के गांव में लोगों के घर एक ही तरह के होते हैं ।आमतौर से हर घर के सामने एक बाग होता है जिसमें फलों के पेड़ों के अलावा बहुत शौक से फूल पत्तियों के पौधे लगाए जाते हैं। उसके बाद घर होता है और घर के पीछे भी कुछ खुला हुआ हिस्सा होता है। पाली का घर भी देखने में बहुत सुंदर लगा । सामने वाले बाग में सेब, नाशपाती के पेड़ थे और अंगूर की लताएं थीं जिसमें अंगूर लदे पड़े थे। एक छोटा सा लॉन था जिसके इधर-उधर फूलों की क्यारियां थी। फूल खिले हुए थे। लगता था कि उनकी काफी देख रखी जाती है। पाली ने घर खोला हम उनके लिविंग रूम में आ गए जिसमें एक तरफ किचन भी था। पाली में जल्दी से दो गिलासों में दही डाला और नमकीन लस्सी बनाई। नमकीन लस्सी पीने के बाद लगा कि वास्तव में उसकी जरूरत थी। कमरे में एक खाने की मेज़, कुछ सोफे थे। खिड़कियों पर पर्दे थे। फर्श पर एक कालीन बिछा हुआ था। कुल मिला जुला कर लगता था कि अकेली होने के बावजूद पाली बहुत सलीके से रहती हैं।

पाली ने इशारा किया कि मैं अपना सामान लेकर उनके साथ आऊं। हम मकान के ऊपर बने कमरों में आ आए। तीन छोटे छोटे कमरे थे। लेकिन सभी बहुत साफ सुथरे थे। सभी में बेड लगा हुआ था। पाली ने इशारे से समझाया कि इनमें से जो कमरा मुझे पसंद हो मैं ले सकता हूं। मैंने एक कमरा पसंद कर लिया जिस की खिड़कियां सामने की तरफ खुलती थी इस कमरे के साथ मिली हुई एक बालकनी हुई थी।
पाली बहुत अच्छा खाना बनाती हैं इसका अंदाजा मुझे लंच करते हुए हुआ। दो तरह की सब्जियां थी एक में कुछ मांस के टुकड़े पड़े हुए थे और दूसरी सरे साग की सब्जी थी इसके अलावा देशभर तरह तरह के तरह तरह की अचार नवा चीजें और कुछ सूखे मसाले थे जिन्हें खाने पर जरूरत के मुताबिक छिड़का जा सकता था। यह कुछ वैसा था जैसे हमारे यहां चाट मसाला होता है। खाना खाने के बाद मैं वह पर आराम करने चला गया।

कुछ देर बाद तैयार होकर में नीचे उतरा। इरादा यह था कि गांव का दर्शन करूंगा। यहां इसीलिए आया हूं। पाली से जब मैंने इशारे में कहा कि मैं गांव देखना चाहता हूं तब उन्होंने इशारे से कहा कि नहीं मैं न जाऊं । मेरी समझ में नहीं आया कि वे मुझे क्यों रोक रही हैं ।अब मैं लगातार इशारे कर रहा था कि मैं जाना चाहता हूं और वे लगातार इशारा कर रही थी कि मैं न जाऊं ।मैंने इशारा कर के कारण पूछा तो पॉली कुत्ते की तरह भौंकने लगीं। ओ हो, मैं समझ गया ।कह रही हैं कि गांव में बहुत कुत्ते हैं जो मुझे परेशान कर सकते हैं। पाली ने बाहर गार्डन में एक कुर्सी रख दी और मुझे इशारा किया कि मैं वहां बैठ जाऊं। मैं बैठ गया वे लकड़ी का एक पटरा ले आई उसके ऊपर उन्होंने गूँधा हुआ मैदा रखा और एक साफ लकड़ी से उसे फैलाने लगी। उसी तरह जैसे रोटी बनाने के लिए बेली जाती है। मैं समझ गया जब मैं आराम कर रहा था तब पॉली रात के खाने की तैयारी कर रही थी। मैदा जब फैल गया तब उन्होंने उसे एक गहरे गोल बर्तन में फैला दिया। इस तरह जमाया कि उसका आधा हिस्सा बाहर रहे। उसके बाद उन्होंने मैदे के ऊपर तरह-तरह की सब्जियां रखीं जिन्हें शायद से पहले ही पका चुकी थी। उसके बाद उन्होंने उसे मैदे से ढक दिया और इशारे से समझाया कि यह गांव के तंदूर में भेजा जाएगा जहां यह 'बेक' किया जाएगा।

पाली के साथ गांव घूमने निकले ।उनके मकान के बराबर वाला मकान खंडहर हो गया है। वे उस मकान के सामने रुक गई ।गांव घुमाने की उत्साह में पाली यह भूल चुकी थी कि मैं बुल्गेरियन नहीं जानता। उन्होंने काफी विस्तार से बुल्गेरियन भाषा में उस मकान के खंडहर होने की कहानी मुझे सुनाई। मैं इस तरह गर्दन हिलाता रहा जैसे पूरी तरह सारी बातें मेरी समझ में आ रही है। मैँ पाली के इस विश्वास को न तोड़ना चाहता था कि मैं बुल्गेरियन नहीं समझता। जो कुछ समझ पाया वह इतना था कि इस मकान में रहने वाले कहीं और चले गए हैं और मकान की देखरेख न हो पाने के कारण वह खंडहर हो गया है। हम और आगे बढ़े। दूसरे मकानों के कंपाउंड में लोग काम कर रहे थे । एक घर के कंपाउंड में एक औरत घास काटने की मशीन चला रही थी वह पाली को देख कर अपने घर के फाटक पर आ गई और दोनों में बातचीत शुरू हो गई। पाली ने उससे मेरा परिचय कराया ।मैंने उसको नमस्ते किया उसने भी हाथ जोड़े और बहुत उत्सुकता और जिज्ञासा से मुझे देखने लगी। शायद पहली बार किसी भारतीय को देख रही थी। पाली अपनी पड़ोसन से काफी देर तक बात करती रही फिर हम और आगे बढ़े । पाली हर घर के सामने रुक कर उसके बारे में मुझे कुछ बताती थी। गांव में एक दो नए और कुछ शानदार घर भी देखने को मिले। पाली में मेरे कान में बहुत रहस्यमयी ढंग से कुछ कहा। जिसका अर्थ यह था कि इस घर के रहने वाले कोई खराब काम करते हैं और उन्होंने काफी पैसा कमा लिया है। इस तरह यह बढ़िया मकान बनाया गया है।

मुख्य सड़क से हम एक पगडंडी पर आ गए जो पहाड़ के ऊपर जा रही थी। निर्जन और ऊबड़ खाबड़ पगडंडी पर चढ़ाना पाली के लिए आसान था। शायद उनको उसका अभ्यास था लेकिन मैं कुछ असुविधा महसूस कर रहा था। लेकिन बाहर हाल चिकने गोल पत्थरों चढ़ते हुए हम एक छोटे से चर्च तक पहुंचे। यह चर्च काफी वीरान सा लगा। मालूम होता था यहां लोग शायद साल में एक ही बार बार आते हैं चर्च के अंदर ईसा मसीह की तस्वीर लगी थी। कुछ दूसरी तस्वीरें भी थी ।कुछ मोमबत्तियां पड़ी थी ।लेकिन चर्च एक ऐसी जगह था जहां से दूर दूर तक घाटी दिखाई देती थी ।यह दृश्य बड़ा सुंदर था।

सूरज डूबने से पहले हम लौट कर वापस चले आए ।अचानक पाली ने मेरे हाथ में एक थैला पकड़ा दिया जिसमें अखरोट भरे हुए थे। उन्होंने दो छोटे बड़े बर्तन भी दिए। एक पत्थर का टुकड़ा भी दिया। मैं उनका मतलब समझ गया । वे चाहती थी कि मैं अखरोट तोड़कर एक बर्तन में अखरोट और दूसरे बर्तन में छिलके के रखता जाऊं ।कुछ क्षण के लिए तो मैं चकराया लेकिन फिर बात समझ में आ गई । मैंने सोचा ठीक है, मैं इनके घर में ठहरा हूं ।खाना खा रहा हूं तो मुझे कुछ काम भी करना चाहिए। मैं सीढ़ियों पर बैठकर अखरोट तोड़ने लगा। काफी देर तक अखरोट तोड़ता रहा। सूरज डूब गया ।मुझे मालूम था कि पाली ने शाम को गांव के कुछ लोगों को खाने पर बुलाया है जिनमें एक महिला ऐसी हैं जो अंग्रेजी जानती हैं। उनके माध्यम से बातचीत हो सकते । मैं अखरोट तोड़ ही रहा था कि वे महिला आ गई और उन्होंने मुझसे अंग्रेजी में पूछा कि तुम क्या कर रहे हो? मैंने उन्हें अखरोट दिखाएं। वे हंसने लगी और पाली से उन्होंने कुछ बल्गेरियन में कहा। पाली ने मुझसे साफ किए गए अखरोट ले लिए और थैली में बचे अखरोट मुझे देते हुए ऐसे संकेत दिए कि मैं उन्हें अपने साथ ले जा सकता हूं। मैं अखरोट लिए कहां कहां फिरता । मैंने इंकार कर दिया।

अंग्रेजी जाने वाली महिला के बाद दो लोग और आ गए वे शायद पति और पत्नी थे। हम सब ने मिलकर अंगूर की लताओं के नीचे, सेब के पेड़ के बराबर खाने की मेज लगा दी ।कुर्सियां लगा दीं और बैठ गए। खाना पीना शुरू हो गया । अंग्रेजी जानने वाली महिला के माध्यम से बातचीत होने लगी। पता चला कि गांव के बहुत से घर बिल्कुल वीरान हैं ।उनमें से बहुतेरे गिर चुके हैं कुछ गिरने वाले हैं। कारण यह बताया गया की गांव में कोई काम नहीं है। पहले सहकारी खेती हुआ करती थी जिसमें छोटे बड़े किसानों का हिस्सा होता था लेकिन समाजवादी व्यवस्था के समाप्त हो जाने के बाद सहकारी खेती को भंग कर दिया गया था और इस तरह छोटे किसानों की ज़मीनें बेकार हो गई थी। उन्होंने अपनी ज़मीने या तो बड़े किसानों के हाथों बेच डाली थी या उन्हें परती छोड़ दिया था और रोजगार की तलाश में गांव से बाहर चले गए थे। दूसरी बात यह पता चली कि गांव में जवान लोग बहुत कम है ।जवानों के लिए वहां कोई काम नहीं है ।केवल बूढ़े लोग बचे हैं और जब तक वे हैं तब तक उनके घर आबाद हैं उसके बाद शायद ऐसा नहीं होगा कि जवान लोग लौट कर गांव आएंगे। यह भी मालूम हुआ जाड़े शुरू होते ही गांव के आधे से अधिक लोग शहर चले जाते हैं क्योंकि गांव में मकानों को गर्म करने की व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है। गांव में केवल वही लोग रह जाते हैं जिनके लिए वहां रुके रहना मजबूरी होती। फिर चर्चा देश में बढ़ती हुई महंगाई और बेरोजगारी पर होने लगी। राजनीति पर भी कुछ बातें हुई ।पता चला कि उनमें से कोई अपने देश के हालात से बहुत से संतुष्ट नहीं है। रात में देर तक पार्टी चलती रही।

सुबह पाली ने एक विशेष किस्म का बुल्गारियन नाश्ता परोसा । मैदे की भटूरे जैसी कोई चीज थी जिसके ऊपर शहद या एक तरह का मुरब्बा लगाकर खाते है। यह है मेरे लिए नया अनुभव था। भटूरे तो बहुत खाए हैं लेकिन उन पर शहद या मुरब्बा लगाकर खाने का यह पहला अवसर था। इसके साथ दूध और फल भी थे ।कॉफी भी थी ।बाहर हाल यह नया नाश्ता बड़ा रोचक लगा और मजेदार भी कहा जा सकता है।

नाश्ते के बाद रात वाले पति और पत्नी आ गए । वे अपनी कार से आए थे ।उनकी कार में बैठकर हम लोग एक बड़े गांव पहुंचे। गांव के रेस्टोरेंट के सामने गाड़ी रुक गई। रेस्टोरेंट देखकर तबीयत खुश हो गई ।यह एक बहुत सीधी-सादी और पुरानी इमारत थी। बरामदा खपरैल का था जिसके नीचे मेजें और कुर्सियां लगी हुई थी । मेजों पर सफेद मेज़पोश थे। फर्नीचर में कुछ भी आधुनिक नया चमकीला या भड़कीला न था। बहुत सादगी और सफाई थी। हम रेस्टोरेंट इतनी जल्दी पहुंच गए थे कि वहां सफाई का काम हो रहा था । कुछ देर धूप में खड़े होने के बाद हम बरामदे में बैठ गए। मैं चाहता था कि रेस्टोरेंट को अंदर जाकर देखूँ। कुछ सीढ़ियां उतरकर रेस्टोरेंट का मुख्य हाल था। एक तरफ बार काउंटर था जहां एक बहुत सुंदर लड़की काम कर रही थी। वेटर भी बहुत भला ग्रामीण लग रहा था । हम लोगों ने काफी का ऑर्डर दिया। मैंने अपने मोबाइल से चित्र लिए और सुबह का यह समय रेस्टोरेंट देखने की वजह से एक अच्छी याद में तब्दील हो गया।

रेस्टोरेंट से लौटकर पॉली के साथ उनके घर के फाटक के अंदर घुसा तो उन्होंने लान में बिखरी हुई पीली पत्तियों की तरफ इशारा किया और उसके बाद एक कोने में रखी बड़ी सी झाडू तरफ भी इशारा किया। मैं समझ गया कि पॉली चाहती हैं कि मैं उनके लान में पड़ी पीली पत्तियों को झाड़ू से साफ करूं। यह काम मुझे थोड़ा मुश्किल लगा और जानबूझकर मैं अनजान बन गया। ज़ाहिर किया कि मैं समझा नहीं कि पाली क्या चाहती हैं। पाली ने जब देखा कि मैं जानबूझ कर अंजान बन रहा हूं तो वे भी अनजान बन गयीं और दूसरी बार इशारा नहीं किया। इस तरह में झाड़ू लगाने से बच गया।

गांव घूमने का काम फिर शुरू हो गया। पाली कई घरों में ले गई ।कई घरों को अंदर से देखा। एक छोटी सी डेरी भी देखी जहां कुछ गाय पली थी। कुछ चर्च भी देखें। कुछ लोगों से मुलाकात भी हुई ।गांव के खूंखार कुत्तों से भी मुठभेड़ हुई।

गांव से वापसी की यात्रा भी बहुत रोचक थी ।गांव के उजाड़ और वीरान से चौराहे पर एक कोने में बस स्टॉप जैसी कोई चीज बनी हुई है हम वहां पहुंच गए। और एक बस आई जिसने बड़े से चौराहे का चक्कर लगाया और दो-तीन लोग जो बस स्टॉप पर मौजूद थे बस में चढ़ गए। बताया यह गया था कि यह बस निकटतम कस्बे तक ले जाएगी और वहां से हमें दूसरी बस मिलेगी। कोई आधे घंटे के बाद उस बस ने हमें एक बड़े बस अड्डे पर छोड़ दिया जहां हम सोफिया जाने वाली बस का इंतजार करने लगे। काफी देर हो गई सोफिया की कोई बस नहीं आई। इधर उधर से मुसाफिर आने लगे। एक लड़की दिखाई दी जो देखने में बिल्कुल जिप्सी लग रही थी। जिप्सी से मतलब वे लोग हैं जिनका संबंध राजस्थान के उन घुमंतु कबीलों से है जो सैकड़ों साल पहले घूमते घूमते यूरोप तक पहुंच गए थे और वे यूरोप के कई देशों में बसे हुए हैं। उनकी अनेकों समस्याएं हैं । उनकी चर्चा करने के लिए अलग से लिखने की जरूरत है इसलिए फिलहाल छोड़ रहा हूं। यह लड़की पूरी तरह भारतीय लग रही थी। रंग रूप नाक नक्शा बिल्कुल भारत के लोगों जैसा था । मैंने उससे बातचीत शुरू की ।पहला सवाल यह पूछा कि क्या तुम अंग्रेजी बोल सकती हो? मुझे यह बताया गया था कि नई पीढ़ी के लोग अंग्रेजी पढ़ते हैं और बोल सकते हैं । लड़की ने कहा, हां वह अंग्रेजी बोल सकती है। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम्हें पता है कि तुम पूरी तरह भारतीय लगती हो? लड़की ने कहा, नहीं नहीं मैं बुल्गेरियन हूँ। मैं समझ गया कि वह अपनी बुल्गेरियन पहचान को ही महत्व देती है। कुछ और बातें हुई उसके बाद वह चली गई ।

बैठे बैठे इधर उधर नजर दौड़ाई तो सामने एक महाशय खड़े दिखाई दिए ।मैदान के उस पार पेड़ों के झुरमुट में इतने विशाल इतने सुंदर और इतने गंभीर थे कि उन्हें देखते ही मैं उन पर आशिक हो गया। लगता था की एक बड़े मैदान में बहुत दृढ़ता से कोई जोगी खड़ा है, बिना हिले डुले अपने विचारों में लीन। उनके चेहरे पर संयम दिखाई पड़ा उनके व्यक्तित्व एक ऐसी गंभीरता नजर आई जो बहुत दुर्लभ है। विशालता के साथ साथ वे अपने आप को समेटे भी हुए थे। लगता था तूफानी हवाएं और समय की गति उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। वे अजर और अमर हैं किसी विचार की तरह। लगा वे आसपास खड़े छोटे-मोटे पेड़ों और झाड़ियों के दुख दर्द को अच्छी तरह समझते हैं। वे बरगद के पेड़ की तरह नहीं थे जिसके नीचे कोई और पौधा, कोई और पेड़, कोई और झाड़ी नहीं हो सकती । उनकी छत्रछाया में तो छोटे-छोटे पेड़ और झाड़ियां लहरा रही थी। मैं उन पर मोहित हो गया। मैंने तत्काल उनकी तस्वीर उतारी और मोनी को व्हाट्सअप करके पूछा इन महाशय का नाम क्या है? मोनी ने बताया यह इस क्षेत्र का बहुत सुंदर और लोकप्रिय पेड़ है जिसे टोपोला कहते हैं।

हम बस की प्रतीक्षा करते रहे बस नहीं आना थी तो नहीं आई। शाम ढलने लगी थी । पाली ने मुझे उठ जाने का इशारा किया और वे एक तरफ हो चल दीं। मैं भी उनके पीछे पीछे चल दिया। यह जाने बिना कि वे कहां जा रही हैं। हम कस्बे के अंदर चलते रहे, चलते रहे चलते रहे और चलते-चलते रेलवे स्टेशन पहुंच गए ।अब मैं समझा सोफिया जाने के लिए कोई बस नहीं है और हमें ट्रेन से सोफिया जाना पड़ेगा । ट्रेन के टिकट लिए और यह जानकारी मिली की ट्रेन 3 घंटे लेट है। शाम हो चुकी थी भागदौड़ भी काफी हो गई थी और बहुत चलने फिरने के कारण मुझे भूख लग आई थी। मैंने इशारों से पॉली को बताया कि मुझे भूख लगी है और वे मेरे साथ किसी रेस्टोरेंट में चले ।हम खाना खा ले। पाली ने इशारे से बताया कि यहां शाम होते ही सारे रेस्टोरेंट बंद हो जाते हैं और आसपास कहीं खाना नहीं मिलेगा। यह सुनकर मेरा बुरा हाल हो गया क्योंकि मुझे बहुत भूख लग रही थी। मैंने पेट पर हाथ रखा और पाली को समझाया कि मुझे बहुत भूख लगी है। पाली के पास हर मर्ज की दवा रहती है। उन्होंने अपना थैला खोला उसके अंदर से दो सेब निकाले एक चिप्स का पैकेट निकाला और मुझे पकड़ा दिया। जान में जान आ गयी।